रेखाचित्र
अगर आप हिंदी की गद्य विधा 'रेखाचित्र' के विषय में जानना चाहते हैं तो आपको इस पोस्ट में रेखाचित्र से संबंधित संपूर्ण जानकारी प्राप्त होगी।
इस लेख में आप रेखाचित्र के विकास, रेखाचित्र की विशेषताएँ और हिंदी साहित्य के प्रमुख रेखाचित्र एवं रचनाकारों के विषय में जानेंगे।
रेखाचित्र - साहित्य का विकास हिंदी साहित्य के छायावादोत्तर काल में ही हुआ। यद्यपि इसके पूर्व 'हंस' तथा 'मधुकर' के रेखाचित्र - विशेषांकों के माध्यम से इस विधा को विकसित करने का सफल प्रयास किया गया।
~ रेखाचित्र किसे कहते हैं? (What is Rekhachitra?)
रेखाचित्र मूलतः चित्रकला का शब्द है।चित्रकला में जिस प्रकार रेखाओं के माध्यम से दृश्य या रूप को उभार दिया जाता है, उसी प्रकार साहित्य में शब्दों के माध्यम से दृश्य या रूप को उभारने की कला एवं विधा रेखाचित्र कहलाती है। जिस प्रकार एक चित्रकार अपने कौशल से, कुछ आड़ी - तिरछी रेखाओं के ज़रिए किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, घटना, दृश्य आदि का उद्घाटन करता है, उसी प्रकार सटीक शब्दों से निर्मित वाक्यों को विशेष रूप से व्यवस्थित कर, लेखक अपनी वक्तव्य - वस्तु को उभार देता है। एक उदाहरण देखिए - "जब अखबारों ने शोर मचाया तो नेताओं ने भी भाषण शुरू किए या शायद नेताओं ने भाषण दिए, तब अखबारों ने शोर मचाया। पता नहीं पहले क्या हुआ? खैर ! सरकार जागी, मंत्री जागे, अफ़सर जागे, फ़ाइल उदित हुई। बैठकें चहचहाईं, नींद से सोए चपरासी कैंटीन की ओर चाय लेने चल पड़े। वक्तव्यों की झाड़ुएँ सड़कों पर फिरने लगीं ..." -(शरद जोशी)
इस पूरे दृश्य में आधुनिक जीवन का एक हड़बड़ाया - सा दृश्य दिखाया गया है। अखबार, नेता, मंत्री, अफ़सर, बैठकें अर्थात पूरा सरकारी तंत्र सक्रिय हो बैठता है।इस पूरे दृश्य में अंतिम वाक्य तिरछा होकर वक्रता पैदा कर रहा है। जिससे आधुनिक जीवन का स्वार्थ, पाखंड और उसकी विडंबना उद्घाटित होती है।
~ रेखाचित्र की विशेषताएँ (Characteristic of Rekhachitra)
रेखाचित्र की सर्वप्रमुख विशेषता उसकी चित्रात्मकता है।इसमें शब्दों को इस प्रकार चुन - चुनकर रखा जाता है जिससे चित्रित विषय का चित्र (फ़ोटो), पाठक के सम्मुख उपस्थित हो जाता है। दृश्य या रूप की बाहरी और भीतरी विशेषताओं को पहचान लेने वाली तेज़ दृष्टि के बिना सफल रेखाचित्र नहीं लिखा जा सकता।
रेखाचित्र में गति का विशेष महत्त्व है। जिस प्रकार वक्र रेखाओं से गति का आभास होता है, उसी प्रकार वाक्य अपनी बनावट में चाहे जितने सीधे हों इस प्रकार व्यवस्थित होते हैं कि उनसे वक्रता का आभास होता है।
एकात्मकता रेखाचित्र का अन्यतम महत्त्वपूर्ण तत्व है। इस विषय में डॉ० नगेंद्र लिखते हैं, " रेखाचित्र का विषय निश्चय ही एकात्मक होता है, उसमें एक व्यक्ति या वस्तु ही उद्दिष्ट रहती है।
रेखाचित्र का अन्य आवश्यक उपकरण है तटस्थता। जिस रेखाचित्र में तटस्थता जितनी अधिक होती है, वह उतना ही सफल रेखाचित्र माना जाता है। डॉ० पदमसिंह शर्मा 'कमलेश' के शब्दों में कहें तो, " आनुपातिक दृष्टि से वैयक्तिकता तथा तटस्थता की मात्रा को देखकर ही यह निर्णय किया जा सकता है कि कोई रचना संस्मरण है अथवा रेखाचित्र।"
रेखाचित्र में यथार्थवादी दृष्टि का आग्रह होता है। रेखाचित्र में दृश्य रूप या व्यक्ति वास्तविक होते हैं किंतु उनके चित्रण में कल्पना का उपयोग किया जाता है। कहानी की भांति ही रेखाचित्र का भी अपना एक विशेष उद्देश्य होता है। लेकिन रेखाचित्र कहानी से भिन्न इस बात में होते हैं कि उनमें चित्रात्मकता के माध्यम से ही सब कुछ कहना होता है।
'रामवृक्ष बेनीपुरी' का हिंदी रेखाचित्र के विकास में अतुलनीय योगदान है। अपने रेखाचित्र - संग्रहों 'लाल - तारा', 'माटी की मूरतें', 'गेहूँ और गुलाब' तथा 'मील का पत्थर' के माध्यम से इन्होंने केवल अपने अद्भुत शब्द - शिल्प का ही परिचय नहीं दिया बल्कि रेखाचित्र - साहित्य को भी समृद्ध किया है। हिंदी के संस्मरणात्मक रेखाचित्र - साहित्य की श्री वृद्धि में महादेवी वर्मा ने भी अपनी रचनाओं - 'अतीत के चलचित्र', 'स्मृति की रेखाएँ' आदि उल्लेखनीय संग्रहों के द्वारा अत्यधिक महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
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