तुलसी के राम
भक्त कवि तुलसीदास से पूर्व श्रीराम के चरित्र का चित्रण -
जैसा कि मैंने पहले कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पावन चरित्र को अनेकानेक कवियों ने अपनी लेखनी से उकेरा है, उनमें सर्वोपरि स्थान महर्षि वाल्मीकि का है। उन्होंने भक्ति - भावना से उद्वेलित न होकर, चाक्षुष प्रत्यक्ष - दर्शी बनकर शुद्ध पौराणिक रचना की शैली में राम का चरित्र - चित्रण किया।
वाल्मीकि जी को रामायण के चरितनायक की प्रेरणा मुनि - श्रेष्ठ नारद से मिली। तदुपरांत रामायण के रामचरित के आधार पर अन्य अनेक कुशल कृतियों का निर्माण हुआ। अग्नि पुराण में तो रामायण के सातों कांडों की कथा का अनुसरण - मात्र मिलता है।अन्य पुराणों जैसे, विष्णु पुराण, वायु पुराण, ब्रह्म पुराण, वैवर्त पुराण, वाराह पुराण, स्कन्द पुराण में भी रामकथा संक्षिप्त रूप में मिलती है। महाभारत में मार्कण्डेय ऋषि द्वारा रामोपाख्यान प्राप्त होता है। इसका अतिरिक्त आध्यात्म रामायण, आनंद रामायण, भुसुंडि रामायण,लोमन रामायण,मंजुल रामायण आदि अनेक कृतियों में रामाख्यान के विविध रूप और प्रसंग आते हैं। हनुमन्नाटक में एक विशेष पद्धति से राम के जीवन की प्रमुख घटनाओं और स्थितियों का वर्णन मिलता है।रघुवंश काव्य में तो रामचरित का विशेष आकलन मिलता है। अतः संस्कृत साहित्य के अंतर्गत रामचरित के अनेकानेक रूप और सौंदर्य चित्रण मिलते हैं।
भक्त कवि तुलसीदास के राम - मर्यादा पुरुषोत्तम -
रामचरित के रचनाकारों में सर्वोत्तम उत्तराधिकारी हिंदी के सर्वमान्य मूर्धन्य महाकवि श्रेष्ठ भक्तप्रवर तुलसीदास हैं।इन्होंने जिस तन्मयता से रामचरित मानस की कल्पना की, इससे उनका काव्य अभूतपूर्व बन गया है।उनके मानस का मुख्य प्रतिपाद्य राम का चरित्र है तथा राम के माध्यम से परंपरागत लोक - संस्कृति एवं मर्यादा को उभारते हुए सत् पक्ष की विजय सिद्ध करना है।
तुलसीदास जी ने राम का प्रभावशाली वर्णन किया है तथा विभिन्न स्थितियों के मध्य राम के चरित्र को विकसित करते हुए उन्होंने राम को संघर्षशील मानव बताते हुए भी अलौकिकता का जामा पहनाया है।राम के जन्म के समय लिखित पंक्तियाँ 'भये प्रकट कृपाला .. ' इसी अलौकिक पृष्ठभूमि का निर्माण करती है। तुलसी के राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं - भारतीय संस्कृति के संपूर्ण आदर्शों का एकीकृत रूप।उनमें महामानव के समस्त गुण विद्यमान हैं। कर्तव्यनिष्ठा, पितृ भक्ति , मातृ भक्ति, उदारता, धीरता, गंभीरता, परदुख कातरता, मर्यादापूर्ण, सौहार्द, लोक व्यवहारपटुता, लोक मर्यादा एवं लोक मंगल के संस्थापक, सहिष्णुता, त्याग, शील, क्षमा, दया, विनय और सौंदर्य की प्रतिमूर्ति, कुलीनता, तेजस्विता, दृढ़ता, शूरता, कृतज्ञता,विशाल हृदयता तथा मातृभूमि - प्रेम आदि प्रवृतियाँ राम के भव्य रूप को अपेक्षित विस्तार देती हैं। वे धर्म के संस्थापन के लिए अवतरित हुए हैं इसलिए उनकी प्रतिज्ञा उनके संपूर्ण जीवन का व्यवहार बन जाती है। राम कहते हैं -
"निसिचरहीन करौं मही, भुज उठाई पन कीन्ह ।
सकल मुनिन्ह के आश्रमहिं, जाय जाय सुख दीन्ह ॥"
भक्त कवि तुलसीदास के राम - धीरोदात्त नायक -
काव्य - दृष्टि से, राम में धीरोदात्त नायक के शास्त्र - प्रतिपादित सभी सामान्य तथा विशिष्ट गुणों के दर्शन होते हैं - कुलीनता, सुंदरता, सुशीलता, तेजस्विता, शूरता आदि। उनका संपूर्ण चरित्र इन विशेषताओं से परिपूर्ण है। उनका स्वभाव निश्छल है। भाइयों पर अगाध स्नेह, गुरुजनों के प्रति आदर - श्रद्धा, दास - दासियों पर असीम अनुकंपा, उनका एक पत्नीव्रत, अपकारियों के प्रति भी उदारता आदि अपने महान गुणों के कारण वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। 'मानस ' में तुलसीदास जी ने उन्हें सीता - निर्वासन और लक्ष्मण - त्याग के दोष से बचा लिया है।
भक्त कवि तुलसीदास के राम - धर्म संस्थापक, लोक रक्षक और लोकरंजक गुणों से युक्त -
भगवान की तीन विभूतियों की चर्चा प्रायः की गई है - शील, शक्ति और सौंदर्य।वे क्रमशः धर्म स्थापन, लोक रक्षण और लोक रंजन के लिए आवश्यक हैं।भारतीय महाकाव्यों के नायक में ये तीनों गुण नियमतः पाए जाते हैं। तुलसी के राम भगवान होने के साथ ही महाकाव्य के नायक भी हैं।उनमें तीनों के उत्कर्ष की पराकाष्ठा है।
साधारण मानव के रूप में, भक्त कवि तुलसीदास के राम -
रामचरितमानस में राम के केवल अलौकिक रूप की ही व्यंजना नहीं है, कहीं - कहीं अनायास ही वे साधारण मनुष्य भी बन गए हैं और जहाँ वे मनुष्य बन गए हैं, वहाँ वे हमारे हृदय को संवेदित भी करते हैं किंतु ऐसे प्रसंग कम ही हैं।सीता के प्रति राम की विवाह - पूर्व अनुरक्ति, समुद्र पर क्रोध करना, सीता हरण, लक्ष्मण - मूर्छा पर विलाप करना वस्तुतः उनके सहज मानव के रूप को धारण करने का परिणाम है। सीता हरण के समय, राम कहते हैं -
"हे खग - मृग हे मधुकर श्रेनी । तुम देखी सीता मृग नैनी ॥"
उसी प्रकार बालि को छिपकर मारने का आरोप भी राम के उज्ज्वल चरित्र पर लगा है। इस संबंध में आचार्य रामचंद्र शुक्ल लिखते हैं - "राम के चरित्र की इस उज्ज्वलता के बीच एक धब्बा भी दिखाई देता है।वह है बालि को छिपकर मारना। वाल्मीकि और तुलसीदास जी दोनों ने इस धब्बे पर सफ़ेद रंग पोतने का प्रयत्न किया है। पर हमारे देखने में तो यह धब्बा ही संपूर्ण रामचरित को उच्च आदर्श के अनुरूप एक कल्पना मात्र समझे जाने से बचाता है।यदि यह धब्बा न होता तो राम की कोई बात मनुष्य की - सी न लगती और वे मनुष्यों के बीच अवतार लेकर भी मनुष्यों के काम के न होते।" इसी एक धब्बे के कारण मानस के राम मानव - जीवन से तटस्थ नहीं दिखाई पड़ते।
आशा है उपरोक्त विषय - सामग्री आपको पसंद आई होगी। इस ब्लॉग के माध्यम से आपको निम्नलिखित विषयों से संबंधित जानकारी प्राप्त हुई -