# हमारे विचार ही हमें विलक्षण बनाते हैं। (Hamare vichaar hi humein Vilakshan Banate hain)
# विचार ही मनुष्य के व्यक्तित्व की आधारशिला है। (Vichaar hi manushye ke vyaktitva ki aadharshila hai.)
# हमारी विचारधारा हमें विलक्षणता प्रदान करती है। ( Hamari vichardhara humein Vilakshanta pradan karti hai.)
# मनुष्य के विचार, उसके व्यक्तित्व का दर्पण। (Manushye ke vichaar, uske vyaktitva ka darpan.)
# विलक्षण सोच, विशिष्ट व्यक्तित्व। (Vilakshan soch, vishisht vyaktitva.)
# विलक्षण सोच (Vilakshan soch.)
आज इस ब्लॉग में हम उपरोक्त विषयों के अनुकूल सामग्री प्रस्तुत करने जा रहे हैं -
सृष्टि उस परम अलौकिक शक्ति अर्थात् ईश्वर की अनमोल रचना है, जिसे उसने अनेक गुणों से सँवारा है। प्रकृति के कण - कण में ईश्वर की उपस्थिति प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से विद्यमान है। प्रकृति के समस्त उपादान अपनी क्षमताओं के साथ-साथ अपने गुणों के कारण वंदनीय है। प्राकृतिक उपादानों के प्रयोग का अधिकार सभी जीव-जंतुओं को प्राप्त है। अनंत काल से समस्त चराचर प्राकृतिक उपादानों से, उनके गुणों से, लाभान्वित होते आए हैं। इसी प्रकृति के समान ईश्वर की अन्य विशिष्ट कृति है- मनुष्य। ईश्वर ने मनुष्य को संसार के अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ बनाया है। मनुष्य की श्रेष्ठता का प्रमाण उसमें निहित विशिष्ट गुण हैं। मनुष्य में अन्य प्राणियों से अधिक क्षमताएँ विद्यमान हैं। उसका बौद्धिक- स्तर संसार के समस्त जीव-जंतुओं से उच्च कोटि का है। निः संदेह अपनी क्षमताओं के कारण, संसार के समस्त प्राणियों में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ माना गया है परंतु अपनी श्रेष्ठता को कायम रखने का उत्तरदायित्व स्वयं मनुष्य का ही है।
यद्यपि मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है तथापि स्वतंत्र जीव होने के कारण उसमें कुछ कमियाँ भी हैं। इन्हीं कमियों, कमज़ोरियों पर विजय प्राप्त करना मनुष्य का एकमात्र धर्म कहा गया है। संसार में व्याप्त नकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण न कर मनुष्य अपनी सोच, अपनी समझ से स्वयं को विलक्षण बनाए रखने में पूर्णतः सक्षम है।
भारतीय दर्शन के अनुसार जीवन यापन के लिए दो दृष्टिकोण हैं। एक में मानव स्वलक्ष्य सिद्धि प्रक्रिया व उसके परिणाम पर अटल विश्वास और निष्ठा रखते हुए कर्म में संलग्न रहकर जीवन को अविराम गति देता है। वह जीवन के संघर्षों से जूझता है उनका सामना करता है। यह स्थिति आशावादी दृष्टिकोण की परिचायक होती है। वहीं दूसरी स्थिति ठीक इसके विपरीत होती है जिसमें मानव अपने जीवन के संघर्षों चुनौतियों का सामना नहीं कर पाता और स्वयं को संतुलित ना रख पाने के कारण आत्मबल हीनता का शिकार हो जाता है।
जिस प्रकार बिजली के किसी उपकरण को, मान लीजिए टीवी को नियंत्रित करने का साधन रिमोट कंट्रोल होता है। उसी प्रकार मनुष्य के कर्म और उनसे प्राप्त फल का पूर्ण दायित्व मनुष्य की सोच, उसकी विचारधारा पर निर्भर है। प्रत्येक मनुष्य की सोच उसके बौद्धिक - स्तर, उसके पूर्व ज्ञान, उसके परिवेश से प्रभावित होती है और इस आधार पर व्यक्ति - दर - व्यक्ति यह सोच भिन्न-भिन्न होती है।
हर व्यक्ति की सोच अलग होना स्वाभाविक है जिसके मुख्य कारणों की चर्चा मैंने आप सभी के समक्ष अभी की। मनुष्य की विलक्षण सोच ही उसे सामान्य से विशिष्ट बनाती है। एक व्यक्ति की सोच ही उसके व्यक्तित्व का दर्पण बन कर उसके व्यवहार में झलकती है और इसी सोच के आधार पर वह व्यक्ति विशेष, समाज में सम्मानित होता है अथवा अपमानित होता है। एक विलक्षण विचारधारा का स्वामी संसार से अलग अपनी एक सोच कायम करता है और संसार को परिवर्तित करने की शक्ति भी रखता है। इतिहास साक्षी है ऐसी ही विलक्षण विचारधारा संपन्न महापुरुषों ने अपनी सोच के दम पर समाज को नए मार्गों से परिचित कराया और मनुष्य के जीवन को विकासशीलता की ओर ले जाते हुए गति प्रदान की।
अपनी सोच के बल पर उन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया अन्यथा किसी देश के एक छोटे से गाँव के एक गरीब नाविक का बेटा नाव न बनाकर मिसाइल कैसे बना सकता था? डॉ० ए० पी० जे० अब्दुल कलाम जी ने अपनी सोच के दम पर भारत को बुलंदियों पर ही नहीं पहुँचाया बल्कि देश के 11वें राष्ट्रपति का कार्यभार संभाल कर देश के नवयुवकों में उसी चेतना का संचार किया जिससे वह स्वयं अभिभूत थे।
पराधीन भारत की गुलाम जनता, जब दुख के बादलों से घिरी थी तब विलक्षण सोच वाले शूरवीरों ने, उन स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी सोच से असंभव को संभव कर दिखाया। अपने प्रयासों, अपने बलिदानों के द्वारा उन्होंने गुलाम भारत को आज़ाद कराया।
व्यक्ति की विलक्षण सोच को पुष्ट करने का कार्य करता है स्वयं व्यक्ति का आत्मबल। अतः मनुष्य को अपने आत्मबल को सदैव सकारात्मकता का, आशावादिता का टॉनिक पिलाते रहना चाहिए।अपने आत्मबल से व्यक्ति बहते जल का रुख मोड़ने का सामर्थ्य भी रखता है और पहाड़ को काटने जैसा दुर्गम कार्य भी कर सकता है।
अंत में मैं इन्हीं शब्दों के साथ अपनी वाणी को विराम देना चाहूँगा कि 'विलक्षण सोच' आत्मबल की खाद से पल्लवित, वह संजीवनी है जो केवल व्यक्ति विशेष के लिए ही नहीं अपितु समस्त संसार के लिए जीवनदायिनी सिद्ध होती है।