इस लेख में आप सिख संप्रदाय के संस्थापक गुरु नानक देव जी (Guru Nanak Dev) के जन्म और उनके जीवन से संबंधित तथ्यों के विषय में जानेंगे। साथ ही एक समाज - सुधारक के रूप में उनकी भूमिका और उनकी उपदेशपरक वाणियों के विषय में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करेंगे।
गुरु नानक देव जी का जन्म -
सिख संप्रदाय के संस्थापक एवं उनके आदि गुरु, गुरु नानक देव जी का जन्म 553 साल पहले वर्ष 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन लाहौर के निकट रायभोई के तलवंडी ग्राम में हुआ था। वर्तमान समय में यह स्थान ननकाना साहिब के नाम से प्रसिद्ध है। उनके पिता कालू मेहता एक किसान थे। इनकी माता का नाम तृप्ता था।अठारह वर्ष की आयु में उनका विवाह सुलक्खनी से करवा दिया गया। उनके दो बेटे हुए श्रीचंद और लखमीदास जो बाद में महान संत बने।
गुरु नानक देव जी का बचपन -
बचपन से ही गुरु नानक जी आत्म चिंतन, ईश्वर भक्ति और संत सेवा में रुचि लेते थे। वह अपना अधिकांश समय साधु- महात्माओं के साथ ही बिताते थे।
गुरु नानक देव जी की प्रवृत्ति -
गुरु नानक के मन में संसार के प्रति मोह नहीं था। यह देखकर उनके माता-पिता को चिंता होने लगी। वे चाहते थे कि उनका बेटा कोई व्यवसाय (काम - धंधा) करे और अपनी ज़िम्मेदारियों को संभाले। एक बार उनके पिता ने उन्हें काम - धंधे के लिए कुछ धन दिया परंतु अपनी सेवा भावना और उदार प्रवृत्ति के कारण उन्होंने सारा धन साधुओं और गरीबों में बाँट दिया।
अपने माता-पिता की इच्छा के अनुसार उन्होंने नौकरी भी की। वे एक सरकारी अनाज गोदाम के भंडारी रहे। लेकिन उनका मन काम से ज़्यादा ईश्वर के ध्यान में लगता था। वे भगवान के ध्यान में खोए रहते थे।
गुरु नानक देव जी का समाज सुधारक रूप -
नानकदेव जी एक धर्मात्मा और एक समाज - सुधारक के रूप में जाने जाते हैं। उनके युग में समाज में अनेक बुराइयाँ थी। ऊँच - नीच का भेदभाव था, जाति- पाँति का भेदभाव था। लोग धर्म के नाम पर अनेक देवी - देवताओं की पूजा करते थे। गुरु नानक देव जी ने एक ईश्वर की पूजा पर बल दिया। संत कबीरदास के समान उन्होंने भी निर्गुण ब्रह्म को अपनी भक्ति का आधार बनाया। उनके अनुसार सच्चा भक्त वही है जो लोगों से प्रेम करें, मिलकर रहे और मानवता की सेवा करे। उन्होंने अंध - विश्वास, छल - कपट, आडंबर, जाति के संकीर्ण बंधनों आदि की निंदा की। उन्होंने भारत तथा विदेशों की यात्रा की और अपने विचारों को पदों में गा - गाकर लोगों तक पहुँचाया। उनका मानना था-
"जाणहु जोति न पूछहू जाति,
जाति आगे जाति न है।"
अर्थात् सभी में परमात्मा की ज्योति को जानो। किसी की जाति न पूछो क्योंकि मरने के बाद जाति हमारे साथ दूसरे लोक में नहीं जाती है।
गुरु ग्रंथ साहिब -
नानक देव जी ने अनेक पदों की रचना की जो 'गुरु ग्रंथ साहिब' (Guru Granth Sahib) में संकलित हैं। 'जपुजी' नानक - दर्शन का सार तत्व है। 'असा दी वार', 'रहिरास' तथा 'सोहिला' उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। इनकी मृत्यु 1539 में हुई। इनके बाद इनके शिष्य गुरु अंगद तथा गुरु गोविंद सिंह आदि धार्मिक गुरुओं ने इनके पवित्र विचारों को लोगों तक पहुँचाया। आज भी गुरुद्वारे में गुरुबानी का पाठ किया जाता है।
गुरु नानक जी की जयंती -
कार्तिक मास की पूर्णिमा को हर वर्ष गुरु नानक जी की जयंती (जन्म दिवस) बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। इसे गुरु पूरब (Guru Purab) और गुरु प्रकाश पर्व (Guru Prakash Parv) भी कहते हैं। इस विशेष अवसर पर गुरुद्वारों में सुबह से ही भजन-कीर्तन होता है, प्रभात फेरी निकाली जाती हैं, जगह-जगह लंगर चलाए जाते हैं। प्रसाद बाँटा जाता है। पंच प्यारों सहित गुरु नानक जी की याद में जुलूस निकाले जाते हैं।
गुरु नानक देव जी द्वारा स्थापित सिख जीवन दर्शन का आधार मानवता की सेवा, कीर्तन, सत्संग एवं एक सर्वशक्तिमान ईश्वर के प्रति विश्वास है।