भाषा काव्य का अनिवार्य अंग है। कवि के भावों और विचारों का माध्यम भाषा ही है। इस संबंध में डॉ० भागीरथ मिश्र का कथन उल्लेखनीय है- "भाषा कविता का शरीर है। बिना भाषा के भाव निराकार हैं और उनका व्यापक प्रभाव नहीं है।" महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने अपने प्रमुख ग्रंथ 'रामचरितमानस' में अपनी भाषा को बार - बार 'भाखा'और 'भनिति' की संज्ञा दी है।
इस पोस्ट में हम यथासामर्थ्य तुलसीकृत रामचरितमानस की भाषा का विश्लेषण करेंगे। अत: हम एक - एक करके तुलसी की भाषा विशेषत: मानस की भाषा के विशेषताओं के विषय में जानेंगे।
रामचरितमानस की भाषा
तुलसी के युग में जनभाषा की कविता विद्वानों की दृष्टि में समादरणीय नहीं थी। परंतु तुलसी ने देववाणी 'संस्कृत' के समकक्ष लोकभाषा की अकिंचनता तथा अपनी भक्तिभावपूर्ण वैष्णवोशिष्टता को प्रदर्शित करते हुए इस प्रसंग में केवल इतना ही कहा कि 'मुझमें कवित्व की स्फूर्ति नहीं, वाणी भी मेरी ग्राम्य एवं असंस्कृत है।' यह अभिव्यक्ति उन्होंने 'मानस' की भूमिका के अंतर्गत शिष्टाचार संपादन की प्रेरणा से बार-बार की है।
रामचरितमानस की भाषा - अवधी (इस संबंध में विद्वानों के मत) -
भाषा के संबंध में तुलसी का दृष्टिकोण अत्यंत उदार, व्यापक तथा असंप्रदायिक रहा है। उनके मंतव्यानुसार, कवि में यदि भाव की सच्चाई है तो वह लोगभाषा में भी सरस रचना कर सकता है - 'का भाषा का संस्कृत, प्रेम चाहिए साँच'। उस समय तुलसी के सामने हिंदी कविता के माध्यम रूप में प्रतिष्ठित दो जनभाषाएँ थीं - अवधी और ब्रज भाषा। 'रामचरितमानस' की भाषा के संबंध में यह विज्ञापित सत्य है कि उन्होंने इसकी रचना अवधी भाषा में की है। विदेशी अध्येताओं में' डब्ल्यू० पी० डगलस हिल' ने उसे' प्राचीन बैसवारी' अथवा 'अवधी भाषा' में सृजित महाकाव्य बताया है। इसके अतिरिक्त उसमें ब्रज, बुंदेलखंडी एवं भोजपुरी रूपों तथा अरबी एवं फ़ारसी के शब्दों की प्रयुक्ति भी बताई है। 'आचार्य शुक्ल' ने अपने ग्रंथ गोस्वामी तुलसीदास में मानस की भाषा को' पूर्वी' एवं 'पछाही अवधी' का सम्मिश्रण बताया है। प्राचीन एवं नवीन के विवाद से दूर रहकर मानस की भाषा को अंततः 'बैसवारी अवधी' माना गया है।
भाषा के संबंध में उनके सुविचारित एवं समन्वयवादी, साथ ही क्रांति दर्शी दृष्टिकोण का पता चलता है। उन्होंने भाषा के संबंध में कबीर एवं केशव दोनों की ही अतिवादी सीमाओं से अछूते रहकर मध्यवर्ती मार्ग का अनुसरण किया। उन्होंने न तो कबीर की भांति संस्कृत के प्रति अपनी वितृष्णा का प्रमाण देते हुए उसे 'कूप जल' कहा और न ही पांडित्याभिमानी केशव के समान उन्होंने भाषा एवं भाषा काव्य को 'मंदबुद्धि' वालों के लिए ही उपयुक्त बताकर उसकी हेयता का घोष किया। उन्होंने सर्वजन सुलभता के सिद्धांत को ध्यान में रखकर ऐसी लोकभाषा का व्यवहार किया जो संस्कृत पदावली के माधुर्य से भी वंचित न थी। 'रामचरितमानस' के प्रत्येक सोपान के मंगलाचरण एवं ग्रंथ के उपसंहार में निबद्ध श्लोकों की भाषा संस्कृत है।
"नीलांबुजश्यामलकोमलांग सीता समारोपितवामभांग।
पाणौ महासायकचारुचापंनमामिरामं रघुवंशनाथं।।"
देवस्तुतियों में भी संस्कृत पदावली का प्रयोग कर तुलसीदास ने जहाँ एक ओर प्रसंग की मर्यादा का पालन किया है, वहीं साथ ही अपने काव्य में नाटकीय स्फूर्ति एवं वैविध्य का भी समावेश किया है। यद्यपि कुछ आलोचकों ने उन पर देश - स्तुतियों के कई स्थानों पर व्याकरण संबंधी नियमों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है परंतु यह केवल उनके भाषा में सुकुमारता और सहजता के प्रयास के कारण हुआ है।
रामचरितमानस का समृद्ध एवं व्यापक शब्द भंडार -
तुलसी की भाषा के अन्य विशेषता उनकी भाषा की व्यापकता है, जिसका साधन उनका व्यापक शब्द भंडार है। उनकी शब्दावली को मुख्यतः पाँच वर्गों में रखा जा सकता है- तत्सम, तद्भव, देशज, अन्य प्रदेशज और विदेशी।
(i) संस्कृतनिष्ठ अवधी (तत्सम शब्द) -
तुलसी की भाषा संस्कृतनिष्ठ अवधी है। यह उनके काव्य शास्त्र - ज्ञान, हिंदू - संस्कृति और राम चरित के वैशिष्ट्य का परिणाम है। उन्होंने लोकमंगल की सिद्धि के लिए लोकभाषाओं में रचना की, साथ ही विद्वज्जनों के परितोषार्थ संस्कृत की तत्सम पदावली अथवा संस्कृताभासित भाषा का व्यवहार भी किया, जैसे - सर्वगतम् , असि, नमामि, भजे, सुखेन आदि।
(ii) तद्भव शब्द -
तुलसी ने संस्कृत के शब्द रूपों के साथ-साथ संस्कृत पदों या क्रियाओं के विकृत रूप का प्रयोग भी किया, जैसे - नामानी (नामानि), असमांक (अस्माकम्), सुमिरामि (स्मरामि) आदि। इस संबंध में डॉ० माता प्रसाद गुप्त का कथन शत प्रतिशत सत्य है- "अवधी रूप में संस्कृत शब्दों के सम्मिश्रण से गोस्वामी जी ने एक अत्यंत सफल काव्य - भाषा का निर्माण किया है। उनका शब्द भंडार, दार्शनिक विवेचन, भक्ति भावना का व्यक्तिकरण नवरस परिपाक, सूक्ष्म मनोविज्ञानमय मनोविश्लेषण, कथावस्तु वर्णन सभी के लिए यथेष्ट हुआ है। उनमें भावों के साथ भाषा का अपूर्व सामंजस्य हुआ है, न कहीं शिथिलता है और न कहीं दुरुहता, सरलता प्रचुर है। सुबोधता इतनी है कि साधारण योग्यता के पाठक और बड़े से बड़े विद्वान दोनों की राम कथा का आनंद उठाते हैं।"
तुलसी साहित्य में आहेर (आखेट), अहिवात (अविधवात्व), बीछी (वृश्चिक), भीख (भिक्षा), गाँठि(ग्रंथि), बूढ़ (वृद्ध) आदि तद्भव शब्दों की प्रचुरता पाई जाती है। परंतु तत्सम - अर्ध तत्सम शब्दों की तुलना में इनका प्रयोग बहुत कम है।
(iii) देशज शब्द -
काँकर, घमोई, मोड़, टहलटई, ढाबर, झोपड़ी आदि ठेठ देशज शब्दों का व्यवहार अपेक्षाकृत उनके काव्य में और भी कम है।
(iv) अन्य प्रदेश शब्द -
अन्य प्रदेशज प्रचालक शब्दों को भी उन्होंने बिना संकोच के अपनाया है उदाहरणार्थ - गुजराती के जून (जीर्ण), दरिया (समुद्र) मौंगी (मौन) आदि, राजस्थानी - मारवाड़ी के नारि (गर्दन), म्हाको(मेरा) आदि, बँगला से प्रभावित सकारे (प्रात:काल), बुंदेलखंडी शब्दों में जानिवी, मानिवी, सुपेती, पालिवी, डारिवी आदि उल्लेख्य हैं। इसी प्रकार पंजाबी के धुंवां (लाश) एवं सिखर (जूठन) शब्द भी मानव - शब्द - सागर के अन्यतम मोती हैं।
(v) विदेशी शब्द -
तुलसी ने विदेशी भाषा के शब्दों को भी अपनी भाषा की मूल- प्रकृति में ढालकर उन्हें अपना लिया, उदाहरणार्थ- उन्होंने सर्वत्र गरीब नवाज़ को गरीब नवाज, कागज़ को कागद, शोर को सोर, बख़्शीश को बखसीस के रूप में स्वीकार किया है। प्रचलित होने के कारण एक तो यूं ही इन्हें शब्दों का विदेशीपन कम हो चुका था, दूसरा उन्हें अपने भाषा की मूल प्रकृति में ढाल देने का कारण उनकी शेष अस्वाभाविकता भी बहुत कुछ कम हो गई। विदेशी अरबी- फ़ारसी के अतिरिक्त तुलसी ने अप्रचलित शब्दों का प्रयोग भी सटीकता के साथ किया। उनके द्वारा प्रयुक्त किसब, हबूब, दिरमानी, मिसकीनता आदि शब्द सटीक प्रयोग के कारण कहीं भी अर्थ बाधक और खटकने वाले प्रतीत नहीं होते। 'डॉ० उदयभानु सिंह' के शब्दों में - "तुलसी साहित्य में अरबी- फ़ारसी - मूल के शब्दों का बाहुल्य देखकर यह निष्कर्ष निकालना समीचीन नहीं जंचता कि वे अरबी - फ़ारसी के पंडित थे। ये प्रयोग उनके व्यवहार - ज्ञान और मुस्लिम शासन तथा संस्कृति के लोक व्यापी प्रभाव के ज्ञापक हैं।
रामचरितमानस की भाषा में प्राकृत - अपभ्रंश शब्दों का प्रयोग -
तुलसी ने ऐसे भी बहुत से शब्दों का प्रयोग 'रामचरितमानस' में किया जो प्राकृत - अपभ्रंश के समय से काव्य भाषा में व्यवहृत होते चले आ रहे थे किंतु बोलचाल से उठे चुके थे, जैसे मयंक, पब्बै, सायर आदि।चमंकहिं, दमंकहि, नंचहि आदि अपभ्रंश परंपरा के अवशेष हैं।कहीं-कहीं ओज के उद्देश्य से प्राकृत - अपभ्रंश शैली पर द्वित्व वर्णों एवं संयुक्त अक्षरों का निवेश किया गया है- 'बहु कृपान तरवारि चमंकहिं, जनु दह दिसि दामिनी दमंकहिं'। कुछ स्थानों पर छंद का निर्वाह इस प्रवृत्ति का निमित्त प्रतीत होता है। भाषा के संबंध में तुलसीदास की उदार नीति एवं मनोवृत्ति के संबंध में 'डॉ० केसरी नारायण शुक्ल' का कथन उल्लेखनीय है- "तुलसीदास कवि ही नहीं, वे सर्वश्रेष्ठ कवि थे। वे भाषा की आवश्यकता और शब्दों की आत्मा को पहचानते थे। अपने काव्य को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए वे जहाँ जिस शब्द को ठीक समझते थे, वहाँ उसका प्रयोग करते थे और इन शब्दों में देशी या विदेशी का भेदभाव नहीं रखते थे। उनके लिए कोई शब्द अछूत या हराम नहीं था।"
रामचरितमानस की भाषा में पात्रानुकूलता -
किसी पात्र विशेष की शिक्षा- दीक्षा, उसके जातिगत - संस्कार, उसकी मनोवृत्ति आदि का ज्ञान पाठक को कवि द्वारा प्रयुक्त भाषिक - वैविध्य से प्राप्त होता है। इससे काव्य में नाट्य - सौंदर्य का भी तत्त्व समाविष्ट हो जाता है। तुलसी के काव्य - ग्रंथ में इस पात्रानुकूल भाषिक - वैविध्य के गुण के दर्शन होते हैं। उदाहरणार्थ - कैकयी के साथ गुप्त वार्ता में संलग्न मंथरा के मुख से कवि ने जिस प्रकार की शब्दावली का व्यवहार कराया है, वह राज - परिवार की कूटनीति - कुशल परिचारिकाओं के चरित्र की आनुषंगिक सूचना देने के साथ ही साधारण श्रेणी के स्त्री पात्रों की अभिव्यक्ति (भाषा शैली) का भी सफलतापूर्वक प्रतिनिधित्व करती दीख पड़ती है।
रामचरितमानस की भाषा में मुहावरों एवं कहावतों का प्रयोग -
मुहावरे भाषा के सौंदर्य एवं प्रवाह की वृद्धि में सहायक होते हैं। तुलसी ने 'रामचरितमानस' में मुहावरों का समुचित संनिवेश करके भाषा को अधिक सजीव, सशक्त और चित्त स्पर्शी बनाया है। उदाहरण स्वरूप - 'भले भवन अब बायन दीन्हा।', 'रेख खँचाइ कहौं बलु भाखी।', 'भामिनि भइहु दूध कइ माखी।' तुलसी ने विभिन्न प्रसंगों में सटीक कहावतों के युक्तियुक्त विन्यास द्वारा भाषा की व्यंजन क्षमता और मनोहरता को उत्कर्ष प्रदान किया है, यथा -
(i) 'पर घर बालक लाज न भीरा। बाँझ कि जान प्रसव कै पीरा।'
(ii) 'तुम जो कहहु करहु सब साँचा। जस काछिअ तस चाहिअ नाचा।'
रामचरितमानस की भाषा में प्रसाद गुण -
तुलसी साहित्य मुख्यता कोमल भावाभिव्यक्ति का साहित्य है, अतः रामचरितमानस के प्राय: सभी कवित्मय स्थल प्रसाद - गुण - विशिष्ट हैं। 'निर्गुण - सगुण विषम सम रुपं',' वट- विश्वास अचल निज धर्मा', 'तिलक ललाट पटल द्युतिकारी', सदृश्य अनेक अर्द्धालियाँ (चौपाई का आधा भाग) संस्कृत निष्ठ प्रसाद गुण पूर्ण पदावली का ही निर्देशन करती हैं। इसके अतिरिक्त राम - सीता का विवाह पूर्व प्रणय - संबंध, नौकारोहण - प्रसंग, वन गमन के समय कौशल्या की वात्सल्य- पूर्ण उक्तियाँ उपनागरिका वृत्ति होने से माधुर्य गुण के स्थल भी मानस की शोभा वृद्धि में सहायक हैं। राम - लक्ष्मण की वीरता, युद्ध वर्णन आदि पुरुषावृत्ति के उदाहरण हैं। अतः 'रामचरितमानस' की भाषा में यथास्थान माधुर्य और ओज गुण मिलते हैं और प्रसाद गुण संपूर्ण साहित्य में विद्यमान है।
रामचरितमानस की भाषा में संगीतात्मकता -
संगीतात्मकता तुलसी की भाषा का एक अन्य तत्व है। अनुप्रासिक सौंदर्य की छटा उनके साहित्य की प्रत्येक पंक्ति में मिलती है। आचार्य शुक्ल ने उन्हें अनुप्रास का बादशाह कहा है। 'कंकनी किंकन नूपुर धुनि सुनि', भाषा भनिति मोरि मति भोरी','धन्य धन्य धुनि मंगल मूला' आदि उदाहरण शुक्ल जी के कथन की पुष्टि करने में समर्थ हैं।
रामचरितमानस की भाषा में ध्वन्यात्मक शब्दों का प्रयोग -
तुलसीदास की भाषा में ध्वन्यात्मक शब्दों का विधान भी प्रचुर परिमाण में हुआ है। उदाहरणार्थ-'डहकि - डहकि', 'चक्कि - चक्कि', कट - कटाइ' आदि। इस प्रकार के शब्दावली ध्वन्यात्मक अर्थवत्ता के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण है।
रामचरितमानस की भाषा में सरलता तथा प्रवाह -
भाषा सौंदर्य में सहायक इन समस्त तत्त्वों के साथ ही तुलसीदास भाषा की सरलता को कविता का आवश्यक गुण मानते हैं -
"सरल कविता कीरति विमल सोइ आदरहिं सुजान।
सहज बयर बिसराइ रिपु जो सुनि करहिं बखान।।"
निष्कर्षत: तुलसी का काव्य सरलता, स्पष्टता, प्रांजलता और धारावाहिक प्रवाह आदि भाषिक विशेषताओं से पूर्ण है। तत्कालीन समाज को व्याकरण - बद्ध अवधी से अवगत कराने का श्रेय तुलसीदास जी को ही जाता है। आचार्य शुक्ल इस संबंध में लिखते हैं - "सबसे बड़ी विशेषता गोस्वामी जी की है - भाषा की सफ़ाई और वाक्य- रचना की निर्दोषता जो हिंदी के और किसी कवि में ऐसी नहीं पाई जाती। ऐसी गठी हुई भाषा किसी की नहीं है। सारी रचना इसी बात का उदाहरण है।"
आशा है उपरोक्त जानकारी द्वारा आप मानस की भाषा की विशेषताओं से अवगत हो सकेंगे । कृपया अपने विचार एवं सुझाव कमेंट बॉक्स में लिखकर साझा करें।