NCERT Study Material for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 2 Lhasa Ki Or : Important / key points which covers whole chapter (Quick revision notes) महत्त्वपूर्ण (मुख्य) बिंदु जो पूरे अध्याय को कवर करते हैं (त्वरित पुनरावृत्ति नोट्स)
हमारे ब्लॉग में आपको NCERT पाठ्यक्रम के अंतर्गत कक्षा 9 (Course A) की हिंदी पुस्तक 'क्षितिज' के पाठ पर आधारित प्रश्नों के सटीक उत्तर स्पष्ट एवं सरल भाषा में प्राप्त होंगे।
यहाँ NCERT HINDI Class 9 के पाठ - 2 'ल्हासा की ओर' के मुख्य बिंदु दिए गए हैं जो पूरे पाठ की विषय वस्तु को समझने में सहायक सिद्ध होंगे।
NCERT Class 9 Hindi Kshitij Chapter 2 'ल्हासा की ओर' Important / key points -
1. 'ल्हासा की ओर' - पाठ एक यात्रा वृतांत है जो राहुल सांकृत्यायन जी द्वारा रचित है।
2. लेखक राहुल सांकृत्यायन जी ने अपनी पहली तिब्बत यात्रा सन 1929-30 में नेपाल के रास्ते की थी।
3. उस समय भारतीयों को तिब्बत यात्रा की अनुमति नहीं थी इसलिए उन्होंने यह यात्रा भिखमंगे के वेश में की थी।
4. मुख्य रास्ता - नेपाल से तिब्बत जाने का रास्ता।
(i) व्यापारिक रास्ता - नेपाल और हिंदुस्तान की चीज़ें इसी रास्ते से तिब्बत जाया करती थीं।
(ii) सैनिक रास्ता - इस रास्ते पर चीनी फ़ौज रहा करती थी इसलिए इस रास्ते पर चौकियाँ और किले बने हुए हैं।
5. इन्हीं फ़ौजी किलो में से कुछ में अब किसान रहते हैं।
6. लेखक ऐसे ही किसी चीनी किले में चाय पीने के लिए ठहरा।
7. तिब्बत का समाज-
(i) वहाँ जाति- पाँति का भेदभाव नहीं
(ii) छुआछूत को नहीं माना जाता
(iii) औरतें पर्दा नहीं करती
(iv) बिल्कुल अपरिचित व्यक्ति भी घर के भीतर आकर अपनी झोली से चाय देकर घर की औरतों से चाय बनाने का निवेदन कर सकते हैं।
8. चाय- चोङी में चाय कूटकर उसमें दूध डाला जाता है। चाय का रंग तैयार हो जाने पर उसमें नमक - मक्खन डालकर मथा जाता है।
9. लेखक ने तिब्बत के थोङ्ला में प्रवेश से पहले राहदारी (कर) दी।
10. लेखक के साथ उनका मित्र सुमति (एक बौद्ध भिक्षु) था जिसकी जान - पहचान के कारण उन्हें भिखमंगे के वेश में होने पर भी रहने के लिए अच्छी जगह मिल गई।
11. पाँच साल बाद जब उन्होंने यह यात्रा सुमति के बिना, भद्र वेश में की थी तब उन्हें रहने के लिए अच्छी जगह नहीं मिली इसलिए उन्हें गाँव की सबसे गरीब झोपड़ी में ठहरना पड़ा।
12. तिब्बत के ज़्यादातर लोग शाम के वक्त छङ् (मदिरा) पीते हैं जिसके कारण वह होश में नहीं रह पाते।
13. लेखक ने तिब्बत के विकट (मुश्किल) डाँड़ा थोङ्ला के बारे में बताया है।
14. डाँड़े (ऊँची ज़मीन) तिब्बत में सबसे खतरनाक जगहें हैं।
15. सोलह - सत्रह हज़ार फीट ऊँचे होने के कारण इनमें दोनों तरफ़ मीलों तक कोई गाँव नहीं होते।
16. सुनसान होने के कारण यहाँ डाकुओं से लूटे जाने और मारे जाने का डर रहता है।
17. ऐसी जगह पर यदि कोई किसी का खून कर दे तो उसे सज़ा देना मुश्किल होता है क्योंकि कोई गवाह नहीं मिल सकता। स्थिति को सुधारने के लिए पुलिस भी कोई खास कोशिश नहीं करती।
18. तिब्बत में हथियार का कानून- तिब्बत में कोई भी व्यक्ति हथियार रख सकता है मतलब यहाँ केवल डाकू ही नहीं, आम लोग भी अपनी सुरक्षा के लिए पिस्तौल और बंदूक रखते हैं।
19. सभी के पास बंदूक होने के कारण डाकुओं को भी अपनी जान का खतरा होता है इसलिए डाकू भी पहले अपने शिकार पर गोली चलाते हैं फिर उन्हें लूटते हैं।
20. लेखक और उसके साथी ने लङ्कोर तक के लिए दो घोड़े कर लिए जिससे कि उन्हें भारी सामान उठाकर 16 - 17 मील ऊँची चढ़ाई न चढ़नी पड़े।
21. दूसरे दिन उन्होंने डाँड़े से पहले चाय पी और दोपहर तक वे डाँड़े के ऊपर पहुँच गए।
22. तिब्बत का मौसम - एक जगह बहुत ठंडा तो दूसरी ओर कम ठंडा प्रदेश - समुद्र तल से 17 - 18 हज़ार फीट ऊँचे स्थान पर एक ओर बर्फ़ से ढके हिमालय के हज़ारों पर्वत थे और दूसरी ओर कम ऊँचाई वाले पहाड़ों पर न बर्फ़ थी और न ही हरियाली।-
23. सबसे ऊँचा स्थान डाँड़े के देवता का स्थान था, जो पत्थरों के ढेर, जानवरों के सींगों और रंग-बिरंगे कपड़े की झंडियों से सजाया गया था।
24. उतराई के समय लेखक का घोड़ा शायद थकावट के कारण धीरे चलने लगा। घोड़े के धीमी गति से चलने के कारण लेखक अपने साथियों से पीछे रह गया और सही रास्ते का पता न होने के कारण लेखक ने लङ्कोर जाने वाले रास्ते की जगह दूसरा रास्ता पकड़ लिया।
26. एक - डेढ़ मील तक गलत रास्ते पर जाने और वापिस सही रास्ते पर आकर अपने साथियों से मिलने में लेखक को समय लग गया जिसके लिए उन्हें सुमति का गुस्सा झेलना पड़ा।
27. लङ्कोर पहुँचकर वे लोग सुमति के यजमान के यहाँ ठहरे। वह अच्छी जगह थी। उन्होंने वहाँ चाय - सत्तू खाया और रात को थुक्पा लिया।
28. उसके बाद वे लोग तिङरी के विशाल मैदान में गए जो पहाड़ों से घिरा हुआ एक टापू जैसा था।
29. तिङरी के मैदान में एक छोटी सी पहाड़ी थी जिसे तिङरी - समाधि - गिरि के नाम से जाना जाता है।
30. सुमति अपने यजमानों को रक्षा कवच के रूप में गंडे दिया करते थे जिन्हें वह बोधगया से लाए कपड़े से बनाते थे। परंतु लालची स्वभाव के कारण वह कपड़ा खत्म हो जाने पर किसी भी साधारण कपड़े से गंडे बनाकर अपने यजमानों को देते थे और उनसे पैसे लेते थे।
31. तिङरी में भी सुमति अपने यजमानों के पास जाना चाहते थे लेकिन लेखक ने उन्हें रोक लिया क्योंकि वहाँ जाने पर उन्हें समय लग जाता और लेखक को आगे की यात्रा के लिए रुकना पड़ता।
32. तिब्बत की धूप बहुत तेज़ होती है इसका अनुभव लेखक ने तब किया जब उन्हें कुली न मिलने के कारण सामान लादकर दोपहर के समय यात्रा करनी पड़ी।
33. सुमति लेखक को कुली मिलने का बहाना करके तिङरी से शेकर विहार ले गए।
34. लेखक ने तिब्बत के जागीरदारों के बारे में बताया है कि तिब्बत की ज़मीन बहुत अधिक छोटे-बड़े जागीरदारों में बँटी हुई थी। इन जागीरों का बहुत ज़्यादा हिस्सा मठों (विहारों) के हाथ में है। जागीरदार अपनी जागीर में खुद भी खेती करते हैं और मुफ़्त के मज़दूर भी मिल जाते हैं।
35. खेती का इंतज़ाम देखने के लिए वहाँ भिक्षु भेजा जाता है जो जागीरदारों के लिए राजा के समान होता है।
36. शेखर की खेती के मुखिया नम्से भद्र पुरुष हैं। लेखक के भिखमंगे के वेश में होने पर भी वह लेखक से बहुत प्रेम से मिले।
37. शेखर बिहार में एक मंदिर था जिसमें 'कुंजर' - बुद्धवचन - अनुवाद की हस्तलिखित 103 पोथियाँ रखी हुई थीं।
38. वह बड़े मोटे कागज़ पर अच्छे अक्षरों में लिखी हुई थीं। एक-एक पोथी 15 - 15 सेर से कम नहीं होगी।
39. लेखक अपनी रुचि के अनुरूप उन्हें पढ़ने में मग्न हो गया और इसलिए उन्होंने सुमति को उनके यजमान के पास जाने से नहीं रोका।
40. सुमति अगले दिन वापिस आ गए और फिर लेखक और सुमति भिक्षु नम्से से विदा लेकर अपनी आगे की यात्रा के लिए चल पड़ते हैं।
इन मुख्य बिंदुओं को पढ़कर छात्र परीक्षा में दिए जाने वाले किसी भी प्रश्न का उत्तर देने में समर्थ हो सकेंगे। आशा है उपरोक्त नोट्स विद्यार्थियों के लिए सहायक होंगे।
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