NCERT Study Material for Class 9 Hindi Kritika Chapter 2 Mere Sang Ki Auratein
हमारे ब्लॉग में आपको NCERT पाठ्यक्रम के अंतर्गत कक्षा 9 (Course A) की हिंदी पुस्तक 'क्षितिज' के पाठ पर आधारित प्रश्नों के सटीक उत्तर स्पष्ट एवं सरल भाषा में प्राप्त होंगे।
यहाँ NCERT HINDI Class 9 की पुस्तक कृतिका के पाठ - 2 'मेरे संग की औरतें' के मुख्य बिंदु दिए गए हैं जो पूरे पाठ की विषय वस्तु को समझने में सहायक सिद्ध होंगे।
NCERT Class 9 Hindi Kritika Chapter 2 'मेरे संग की औरतें' Important / key points which covers whole chapter (Quick revision notes) महत्वपूर्ण (मुख्य) बिंदु जो पूरे अध्याय को कवर करते हैं (त्वरित पुनरावृत्ति नोट्स)
पाठ - मेरे संग की औरतें
1. पाठ 'मेरे संग की औरतें' संस्मरणात्मक शैली में लिखा गया है।
2. पाठ की लेखिका मृदुला गर्ग हैं।
3. लेखिका के जीवन में उसकी माँ, नानी, परदादी और दादी आदि सभी औरतों का बहुत प्रभाव था। सभी औरतों ने अपने जीवन को अपने ढंग से व्यतीत किया है। लेखिका की नानी ने अंग्रेज़ी रहन-सहन वाले पति के साथ रहकर अपनी स्वतंत्रता को नहीं खोया। इसलिए अपने अंतिम समय में अपनी निजी स्वतंत्रता का उपयोग करते हुए अपनी बेटी की शादी का दायित्व अपने पति के स्वतंत्रता सेनानी मित्र को सौंप दिया। लेखिका की परदादी भी अलग तरह के विचारों पर चलने वाली औरत थीं । इसलिए उन्होंने अपनी पतोहू के पहले बच्चे के रूप में भगवान से लड़की की माँग रख दी। इस प्रकार लगातार पाँच बहनें पैदा हुईं। इसके लिए कभी भी उन्हें या उनकी माँ को सुनना नहीं पड़ा। लेखिका की माँ ने भी अपना जीवन अपने विचारों के अनुरूप व्यतीत किया। उन्होंने कभी भी किसी के काम में हस्ताक्षेप नहीं किया। संयुक्त परिवार में रहते हुए भी सभी को अपनी निजी स्वतंत्रता बनाए रखने की छूट थी। उनकी दादी ने भी कभी भी उनकी माँ के निजी जीवन में कोई रोक-टोक नहीं की। इस प्रकार लेखिका के घर की औरतों ने अपना जीवन स्वतंत्रता से व्यतीत किया।
4. लेखिका की नानी और नाना जी के स्वभाव और रहन-सहन के तौर - तरीकों में बहुत अंतर था। नानी परंपरावादी, अनपढ़ और परदानशीं औरत थीं परंतु उसके नानाजी ने विलायत से बैरिस्ट्री पढ़ी थी। उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से डिग्री प्राप्त की थी। विलायत से वापस आने पर वे विलायती रीति-रिवाज़ के साथ ज़िंदगी गुजारने लगे थे। वे अंग्रेजों के प्रशंसक थे। वे अपनी पैदाइश के कारण हिंदुस्तानी थे परंतु चेहरे- मोहरे, रंग-ढंग, पढ़ाई-लिखाई सब में अंग्रेज़ लगते थे।
5. लेखिका की नानी ने अपनी मृत्यु अपनी से पहले अपने पति के मित्र स्वतंत्रता सेनानी प्यारे लाल शर्मा से यह वचन लिया कि वे उनकी इकलौती बेटी का विवाह उन जैसे किसी स्वतंत्रता सेनानी से करवा देंगे क्योंकि वह नहीं चाहती कि उसकी बेटी का विवाह अंग्रेज़ों के आज्ञाकारी व्यक्ति (अंग्रेज़ों के भक्त) से हो। इस घटना से नानी के साहसी व्यक्तित्व और उनके मन में अपने देश के लिए सच्चे प्रेम का पता चलता है। अपनी इस देश भक्ति की भावना के लिए उन्होंने परदे में रहने की अपनी जीवनभर की परंपरा को भी तोड़ दिया।
6. लेखिका के पिता - लेखिका की माँ का विवाह जिस लड़के से हुआ था वह बहुत पढ़ा-लिखा तथा होनहार था। आर्थिक दृष्टि से उसके पास कोई पुश्तैनी जायदाद अथवा जमा-पूँजी नहीं थी। वह गांधीवादी था और खादी पहनता था। आज़ादी के आंदोलनों में भाग लेने के कारण उसे आई० सी० एस० की परीक्षा में बैठने से रोक दिया गया था।
7. लेखिका की माँ का चरित्र - लेखिका की माँ खूबसूरत, नाज़ुक, ईमानदार, निष्पक्ष और गैर दुनियादार थी। वह आम भारतीय महिलाओं की तरह नहीं थी। वह पत्नी, माँ और बहू के किसी भी प्रचारित कर्तव्य का पालन नहीं करती थी।उन्हें घरेलू काम करने की आदत नहीं थी। उन्होंने कभी भी लेखिका और उसके अन्य भाई-बहनों से लाड़-दुलार नहीं किया। उन्होंने कभी अपने बच्चों के लिए खाना नहीं बनाया और न ही अपनी बेटियों को अच्छी पत्नी, माँ और बहू बनने की सीख दी। उन्हें घरेलू काम करने की आदत नहीं थी। उनका ज़्यादा समय किताबें पढ़ने, संगीत सुनने और साहित्यिक चर्चा में व्यतीत होता था। फिर भी परिवार के अन्य सदस्य हर महत्त्वपूर्ण काम में उनकी राय लेते थे, उन्हें पूरा सम्मान देते थे। वे साहबी खानदान से थीं इसके अलावा इस बात के दो कारण हैं - i. वे कभी भी झूठ नहीं बोलती थीं ii. वे दूसरों की गोपनीय बातों को किसी पर भी ज़ाहिर नहीं करती थी।
8. लेखिका की दादी के घर का माहौल दूसरे घरों से अलग था। उनके घर में लड़की-लड़के में कोई भेद नहीं था। स्वयं दादी ने अपनी पतोहू के गर्भवती होने पर लड़की होने की कामना सभी के सामने कर दी थी। लेखिका की माँ का भी घर में बहुत मान- सम्मान किया जाता था।हर व्यक्ति को अपना निजत्व बनाए रखने की छूट थी।
9. लेखिका की परदादी का चरित्र - लेखिका की परदादी बहुत ही धार्मिक विचारों की महिला थी तथा ज़रूरत से अधिक चीज़ों का संग्रह नहीं करती थी ।इसलिए यदि उनके पास दो से अधिक साड़ियाँ हो जाती थीं तो वे तीसरी दान कर देती थीं । परदादी की हर इच्छा को भगवान पूरी कर देते थे इसलिए उनके तार भगवान से जुड़े हुए माने जाते थे।उन्होंने जब पतोहू की पहली संतान लड़की माँगी तो भगवान ने उनकी इच्छा पूरी करते हुए पतोहू को पहली लड़की तो दी ही साथ ही चार और लड़कियाँ भी दे दी थीं। राह से भटके लोगों के साथ वे उदारतापूर्वक एवं मानवीयता भरा व्यवहार करके उन्हें सुधरने का अवसर देने में विश्वास रखती थीं । चोरी करने आए चोर के पकड़े जाने पर उन्होंने उसे अपना बेटा बना लिया और उसे किसान बना कर ईमानदारी और मेहनत से जीवन जीने के लिए प्रेरित किया।
10. पाठ में अपनी नानी, माँ, दादी और परदादी के बारे में बताने के बाद लेखिका अपने बचपन की एक घटना का वर्णन करती हैं जब 15 अगस्त, सन 1947 को देश को आज़ादी मिली थी। चारों ओर आनंद का वातावरण था। सभी लोग आज़ादी का जश्न मना रहे थे। परंतु लेखिका बीमार थी । उसे टाइफाइड हो गया था। उसका घर से निकलना बंद था। उसके रोने का किसी पर भी प्रभाव नहीं पड़ा। उसे और उसके पिता जी को छोड़कर सभी लोग आज़ादी का जश्न देखने चले गए। इस बात का लेखिका को बहुत दुःख था।
11. अपनी बीमारी के कारण लेखिका आज़ादी के जश्न में नहीं गई थी। उसके पिता जी ने उसे पढ़ने के लिए 'ब्रदर्स काराम जोव' का उपन्यास दिया। उस समय उसकी आयु नौ वर्ष थी। उस समय लेखिका को वह उपन्यास समझ में नहीं आया था। उसका एक अध्याय जो बच्चों पर होने वाले अत्याचार पर था। वह उसे अच्छी तरह से याद हो गया था। उस अध्याय का लेखिका पर इतना प्रभाव था कि वह लेखिका के साथ उम्र के हर पड़ाव में उनके साथ रहा तथा उनकी लेखनी को प्रभावित करता रहा।
12. लेखिका के परिवार में उसकी बड़ी बहन रानी मंजुल भगत के नाम से लिखती हैं। उन्होंने अपने विवाह के बाद लिखना आरंभ किया था, इसलिए अपना नाम बदल कर पति का ग्रहण किया। लेखिका का घर का नाम उमा था उसने भी शादी के बाद लिखना शुरू किया और अपना नाम मृदुला गर्ग अपना लिया। सबसे छोटी बहन अचला ने अपने इसी नाम से लिखा परंतु वह अंग्रेज़ी में लिखती है। लेखिका का छोटा भाई राजीव भी लिखता है और हिंदी में ही लिखता है। इस प्रकार लेखिका के परिवार के चार सदस्यों का पेशा लेखन है।
13. लेखिका की बहन रेणु का चरित्र - रेणु का स्वभाव सबसे अलग था। अपने काम के लिए किसी को परेशान करना उसे पसंद नहीं था। उसे किसी भी तरह के ऐशो-आराम से परहेज़ था। उसका स्वभाव बहुत जिद्दी था। जैसे घर से कार उसे बस अड्डे पर लेने जाती तो वह पैदल चलने में विश्वास करती।उसके अनुसार यह सब दिखावा है। थोड़ा सा रास्ता तय करने के लिए गाड़ी का प्रयोग करना उसके अनुसार सामंतशाही का प्रतीक था। जिस काम के लिए उसे कहा जाता वह उसका उल्टा करती थी। उसे पढ़ने के लिए कहा जाता तो वह पूछती पढ़कर क्या मिलेगा जो अब उसके पास नहीं है।अतः वह अपने ढंग से जीवन व्यतीत करने में विश्वास करती थी। उसे किसी का दखल पसंद नहीं था। वह सच बोलने में माँ से भी दो कदम आगे थी। अधिकतर लोग उसके सच को मज़ाक समझ लेते थे। वह अक्खड़ और स्वतंत्र विचारों वाली थीं।
14. चित्रा - लेखिका की बहन चित्रा का स्वभाव भी अलग था। वह जो काम सोच लेती थी वह पूरा करती थी। वह अपनी पढ़ाई करने की अपेक्षा दूसरों को पढ़ाने में अधिक दिलचस्पी दिखाती थी। इससे उसके नंबर कम और दूसरों के अधिक आते थे। उसने शादी अपनी पसंद से की थी। यहाँ तक कि उसने लड़के से भी उसकी पसंद नहीं पूछी। लड़के से साफ़ कह दिया कि वह उससे शादी करना चाहती थी। लड़का भी उसके सशक्त व्यक्तित्व के सामने हार मान लेता है। यह भी स्वतंत्र विचारों वाली थी।
15. अचला - सबसे छोटी बहन अचला प्रारंभ में पिता जी के विचारों पर चलने वाली लगी। पिता की आज्ञा मानकर उसने अर्थशास्त्र और पत्रकारिता की। फिर पिता की पसंद के लड़के से शादी की। परंतु उसका मन घर- परिवार में अधिक नहीं लगा। उसने भी अपनी दोनों बड़ी बहनों की तरह लिखना शुरू कर दिया। उसने अंग्रेज़ी में लिखना आरंभ किया था।
16. पाँचों बहनों में एक बात एक - सी थी। उन्होंने शादी के बाद अपने घर बार को परंपरागत तरीके से भले ही नहीं चलाया परंतु अपने परिवार को तोड़ा भी नहीं था। एक बार शादी कर ली और उसे निभाया। उनके वैवाहिक जीवन में उतार-चढ़ाव रहे। बात तलाक तक भी पहुँची परंतु शादी को टूटने नहीं दिया। सभी ने अपने-आपको व्यस्त रखने के लिए लिखना आरंभ कर दिया था। उनका विश्वास था कि मर्द बदलने से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। घर के अंदर भी अपनी मर्ज़ी से जी लो, वह भी बहुत है।
17. शादी के बाद लेखिका बिहार के छोटे से कस्बे डालमिया नगर में रही। वहाँ का वातावरण पुराने विचारों पर आधारित था। औरत-आदमी, चाहे वह पति-पत्नी ही क्यों न हों सार्वजनिक जगह पर इकट्ठे नहीं बैठते थे। यहाँ तक कि फिल्म देखने के लिए अलग-अलग पंक्तियों में बैठना पड़ता था। लेखिका दिल्ली कॉलेज की नौकरी छोड़ कर उस गाँव में पहुँची थी। उन्होंने वहाँ बदलाव लाने का प्रयास आरंभ कर दिया। कुछ आदमी- औरतों को इकट्ठा करके नाटक मंडली बनाई और कई नाटकों का मंचन किया। इस कार्य से उसने अकाल राहत कोष के लिए पैसे जमा किए।
18. लेखिका जब कर्नाटक के छोटे से कस्बे बागलकोट में रही तब वहाँ कोई अच्छा स्कूल न होने पर उसने वहाँ के कैथोलिक बिशप से प्रार्थना की कि वे मिशन और सीमेंट कारखाने की आर्थिक सहायता से वहाँ एक प्राइमरी स्कूल खुलवा दें। तब उन्होंने कहा कि यहाँ क्रिश्चियन जनसंख्या कम है इसलिए वे स्कूल खोलने में असमर्थ हैं। जब लेखिका ने अपना अनुरोध बार-बार दोहराया तो उन्होंने कहा कि हम कोशिश कर सकते हैं यदि आप यह विश्वास दिलाएँ कि यह स्कूल अगले सौ वर्षों तक चलेगा। इस पर लेखिका ने यह तय किया कि वह स्वयं वहाँ अंग्रेज़ी, हिंदी, कन्नड़ भाषाएँ पढ़ाने वाला स्कूल खोलेगी और कर्नाटक सरकार से उसे मान्यता भी दिलाएगी। अपने दृढ़ निश्चय और हिम्मत से लेखिका ने यह मुश्किल काम कर दिखाया।
19. लेखिका स्वयं भी लीक से हटकर, हमेशा ही कुछ अलग करना पसंद करती है। अपने जीवन में बहुत कुछ ऐसा करके भी वह खुद को अपनी बहन रेणु से कम आंकती है।लेखिका यह भी जानती है कि लीक से हटकर कार्य करने वाले अक्सर अकेले ही चलते हैं, मतलब समाज उनका साथ नहीं देता। लेकिन वह अकेले चलने में भी आनंद का अनुभव करती है।
20. संदेश - i. हमें अपने विचारों को महत्त्व देते हुए, दूसरों की सोच का भी सम्मान करना चाहिए।
ii. दूसरों की बातों को गोपनीय रखने वाले और झूठ न बोलने वाले लोग समाज में सम्मान पाते हैं।
iii. परदादी की उदारता भी यह संदेश देती है कि स्नेह और दया से किसी भी व्यक्ति को सुधारा जा सकता है।
iv. यदि दृढ़ संकल्प हो (ठान लो) तो किसी भी मुश्किल कार्य को पूरा किया जा सकता है।
v. औरतों को भी अपनी व्यक्तिगत सोच के साथ समाज में जीने का अधिकार है।
* लेखिका का व्यक्तित्व -
इन मुख्य बिंदुओं को पढ़कर छात्र परीक्षा में दिए जाने वाले किसी भी प्रश्न का उत्तर देने में समर्थ हो सकेंगे। आशा है उपरोक्त नोट्स विद्यार्थियों के लिए सहायक होंगे।
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