NCERT Study Material for Class 9 Hindi Kritika Chapter 1 Is Jal Pralay Mein (Important / key points which covers whole chapter)
हमारे ब्लॉग में आपको NCERT पाठ्यक्रम के अंतर्गत कक्षा 9 (Course A) की हिंदी पुस्तक 'क्षितिज' के पाठ पर आधारित प्रश्नों के सटीक उत्तर स्पष्ट एवं सरल भाषा में प्राप्त होंगे।
यहाँ NCERT HINDI Class 9 की पुस्तक कृतिका के पाठ - 1 'इस जल प्रलय में ' के मुख्य बिंदु दिए गए हैं जो पूरे पाठ की विषय वस्तु को समझने में सहायक सिद्ध होंगे।
NCERT Class 9 Hindi Kritika Chapter पाठ - 1 'इस जल प्रलय में ' Important / key points which covers whole chapter (Quick revision notes) महत्वपूर्ण (मुख्य) बिंदु जो पूरे अध्याय को कवर करते हैं (त्वरित पुनरावृत्ति नोट्स)
'इस जल प्रलय में '
1. 'इस जल प्रलय में' के लेखक फणीश्वर नाथ रेणु ने अपने रिपोर्ताज में 1967 की पटना की प्रलयकारी बाढ़ का बड़ा ही रोमांचक वर्णन किया है।
2. लेखक ने अपने जीवन में पहली बार इस प्राकृतिक आपदा (बाढ़) के समय की विवशता और तकलीफ़ को भोगा था।
3. लेखक का गाँव पटना के ऐसे क्षेत्र में था जहाँ हर साल पश्चिम, पूर्व और दक्षिण की कोसी, पनार, महानंदा और गंगा नदियों की बाढ़ से पीड़ित प्राणियों के समूह सावन-भादों में (बारिश के मौसम में) आकर शरण लेते थे क्योंकि लेखक के गाँव की धरती परती थी अर्थात् लेखक के गाँव की ज़मीन नरम नहीं थी इसलिए उस पर बाढ़ का खतरा कम रहता था।
4. परती ज़मीन पर रहने के कारण लेखक को बाढ़ से घिरने, बहने और उसे भोगने का अनुभव कभी नहीं हुआ था। इसलिए उसे तैरना भी नहीं आता था लेकिन दस साल की उम्र से पिछले साल तक अर्थात् 1966 तक वह बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों में ब्वॉय स्काउट, स्वयंसेवक, राजनीतिक कार्यकर्ता और रिलीफ़वर्कर के रूप में काम करता रहा है।
5. बाढ़ से संबंधित कई बातों का वर्णन लेखक ने अपने साहित्य में भी किया है -
(i) लेखक ने सबसे पहले हाई स्कूल में बाढ़ पर एक लेख लिखा था जिस पर उसे प्रथम पुरस्कार मिला था।
(ii) बड़े होने पर धर्मयुग में 'कथा-दशक' के अंतर्गत बाढ़ की पुरानी कहानी को नए रूप के साथ लिखा था।
(iii) उन्होंने जय गंगा (1947), डायन कोसी (1948), हड्डियों का पुल (1948) आदि छोटे-छोटे रिपोर्ताज लिखे हैं।
(iv) उन्होंने अपने उपन्यासों में भी बाढ़ की विनाशलीला के अनेक चित्र अंकित किए हैं।
6. लेखक को बाढ़ से घिरने और पहली बार उसे भोगने का अनुभव सन् 1967 में पटना में हुआ था। जब वहाँ लगातार अठारह घंटे वर्षा हुई थी। इस वर्षा के कारण पुनपुन नदी का पानी पटना के राजेंद्र नगर, कंकड़बाग आदि निचले क्षेत्रों में घुस गया था। वह इसी क्षेत्र में रहता था। इसलिए उसने बाढ़ की इस विभीषिका (डर) को एक आम शहरी आदमी के रूप में भोगा था।
7. जब लेखक को यह अहसास हुआ कि उसके इलाके में भी पानी घुसने की संभावना है तो उसने घर में ईंधन, आलू, मोमबत्ती, माचिस, सिगरेट, पीने के पानी और कांपोज़ की गोलियों को जमा करने का प्रबंध किया और बाढ़ की प्रतीक्षा करने लगा।
8. सन् 1967 में, पटना में, लेखक को बाढ़ के अनुभव से गुज़रना पड़ा था। लोगों में बाढ़ के पानी को लेकर उत्सुकता थी। वे स्थिति का हाल जानने के लिए मौके पर पहुँचना चाहते थे। इसलिए लोग मोटर, स्कूटर, ट्रैक्टर, मोटर साइकिल, ट्रक, टमटम, साइकिल, रिक्शा पर और पैदल पानी देखने जा रहे थे। जो लोग पानी देखकर लौट रहे थे, उनसे पानी देखने जाने वाले पूछते कि पानी कहाँ तक आ गया है? जितने लोग होते उतने ही सवालों के जवाबों में पानी आगे बढ़ता जाता था। सबकी जिह्वा पर एक ही बात होती थी पानी आ गया है, घुस गया, डूब गया, बह गया।
लेखक भी बाढ़ का पानी देखने के लिए अपने कवि मित्र के साथ पाँच बजे रिक्शा पर बैठकर कॉफ़ी हाउस जाता है। जब वह कॉफ़ी हाउस पहुँचता है तो कॉफ़ी हाउस बंद कर दिया गया था। तभी उसने देखा कि सड़क के किनारे एक मोटी शक्ल में गेरुआ-झाग-फेन में उलझा तेज़ गति से बाढ़ का पानी आ रहा था जिसे लेखक ने मृत्यु का तरल दूत कहा है।जो लोगों के मन में भय उत्पन्न कर रहा था तथा सब कुछ धीरे-धीरे डुबोता हुआ आ रहा था, ऐसे पानी को 'मृत्यु का तरल दूत' कहा गया है। इसका कारण यह है कि ऐसा पानी जन-धन की अपार हानि पहुँचाता है।लेखक वहीं से लौट आता है।
9. बाढ़ वाले दिन गाँधी मैदान का दृश्य - बाढ़ वाले दिन सब तरफ़ पानी ही पानी था। गाँधी मैदान में पानी भर गया था। पानी की तेज़ धाराओं में दीवारों पर लगे लाल-पीले रंग के विज्ञापनों की परछाइयाँ रंगीन सांपों के समान लग रही थीं। हज़ारों की संख्या में लोग गाँधी मैदान की रैलिंग के सहारे खड़े पानी की तेज़ धाराओं को इस प्रकार उत्सुकता से देख रहे थे जैसे कि दशहरा के दिन रामलीला के 'राम' के रथ की प्रतीक्षा करते हैं। गाँधी मैदान में होने वाली आनंद-उत्सव, सभा-सम्मेलन और खेल-कूद की सभी यादों को गेरुए रंग के पानी ने ढक लिया था वहाँ की हरियाली भी धीरे-धीरे पानी में गायब हो रही थी। यह सब देखना लेखक के लिए एक नया अनुभव था।
10. लेखक ने जब शाम के साढ़े सात बजे आकाशवाणी के पटना-केंद्र के समाचार में सुना कि पानी स्टुडियो में आ सकता है तो उसके और उसके मित्र के चेहरे पर पानी से होने वाली तबाही का आतंक (डर) दिखाई देने लगा था। परंतु पान की दुकान पर खड़े लोग पहले से अधिक उत्साहित होकर बातचीत कर रहे थे। आपस में हँस-बोल रहे थे। वहाँ खड़े लोगों के चेहरे पर डर नहीं था। ऐसा लग रहा था कि सब मिल-जुल कर आपस में बातचीत करके अपने डर को नियंत्रित कर रह थे और अपनी ज़िंदगी में आने वाले बाढ़ के डर का सामना करने के लिए स्वयं को तैयार कर रहे थे। इस वजह से पान वाले की बिक्री भी बढ़ गई थी।
11. लेखक जब राजेंद्र नगर चौराहे से गुज़रा तो उसे 'मैगज़ीन कार्नर' खुला हुआ दिखा। कहीं बाढ़ के कारण वह आने वाले दिनों में किताबें न खरीद सका तो! यह सोचकर लेखक ने एक सप्ताह की साहित्यिक खुराक एक साथ ले ली। किताबों की दुकान पर उसे तरह-तरह की किताबें दिखती हैं। उसे समझ नहीं आता कि वह एक सप्ताह के लिए किस तरह की किताबें खरीदे। अंत में उसने हिंदी, बाँग्ला और अंग्रेज़ी की फ़िल्मी पत्रिकाएँ खरीदीं।
12. एक - दूसरे की मदद का वादा करके लेखक अपने मित्र से विदा लेता है।
13. अपने फ़्लैट में पहुँचने पर लेखक को लाउडस्पीकर से जनसंपर्क की गाड़ी की घोषणा सुनाई देती है कि बाढ़ का पानी करीब बारह बजे तक उसके इलाके में आ सकता है। सारे राजेंद्र नगर में 'सावधान - सावधान' ध्वनि गूँजती रही।
14. इस घोषणा के बाद लेखक सोने की कोशिश करता है। अपने डर को मिटाने के लिए लेखक सोचता है कि वह बाढ़ पर कुछ लिखे जिसे वह शीर्षक दे बाढ़ आकुल प्रतीक्षा? फिर उसे अपने विचार पर शर्म आती है।
15. इसके बाद लेखक को स्मृतियाँ (यादें) आने लगती हैं। वह 1947 में मनिहारी के इलाके में गंगा नदी, 1949 में महानंदा और परमान नदी की बाढ़ आदि के अपने अनुभव याद करने लगता है।
16. मनिहारी क्षेत्र में बाढ़ - 1947 ई० में लेखक अपने गुरुजी सतीनाथ भादुड़ी के साथ गंगा मैया की बाढ़ से पीड़ित मनिहारी क्षेत्र के लोगों की सहायता के लिए नाव पर गया था। चारों तरफ़ पानी भरा हुआ था। वहाँ लोगों के पैरों की उँगलियाँ पानी में रहने के कारण सड़ गई थीं तथा उनके तलवों में भी घाव हो गए थे जिसके इलाज के लिए पीड़ितों ने इनसे 'पकाही घाव' की दवा माँगी। इसके अतिरिक्त उन लोगों को केरोसीन तेल और माचिस की भी ज़रूरत होती थी। इसलिए लेखक इन तीनों वस्तुओं को बाढ़ पीड़ितों में बाँटने के लिए अपनी नाव पर अवश्य रखता था।
17. महानंदा की बाढ़ - 1949 में महानंदा में बाढ़ आई थी। लेखक बाढ़ से घिरे बापसी थाना के एक गाँव में अपनी रिलीफ़ नाव लेकर गया था। नाव में एक डॉक्टर थे जो बीमारों का इलाज कर रहे थे। गाँव के कई बीमार लोगों को नाव में चढ़ाकर राहत कैंप में ले जाया जा रहा था। एक बीमार नौजवान अपने साथ कुत्ता लेकर चढ़ गया। डॉक्टर साहिब ने कुत्ता ले जाने से मना कर दिया था। इस बात पर बीमार नौजवान नाव से पानी में उतर गया। उसके साथ ही उसका कुत्ता भी उतर गया।
18. परमान नदी की बाढ़ - लेखक अपने साथियों के साथ मुसहरों की बस्ती में राहत सामग्री बाँटने गया। लेखक ने बताया कि उनके समूह को यह खबर मिली थी कि वे कई दिनों से मछली और चूहों को झुलसाकर खा रहे हैं और किसी तरह जी रहे हैं। जब वह वहाँ पहुँचा तो वहाँ ढोलक और मंजीरा बजने की आवाज़ आ रही थी। वे आदिवासी वहाँ एक ऊँची जगह स्टेज बनाकर अपना लोक नृत्य बलवाही नाच कर रहे थे। कीचड़-पानी में लथपथ भूखे-प्यासे नर-नारियों का झुंड खिलखिला रहा था।
19. सिमरवनी - शंकरपुर में बाढ़ - सोने की कोशिश करते हुए लेखक को याद आता है कि 1937 में सिमरवनी - शंकरपुर में बाढ़ के समय नाव को लेकर लड़ाई हो गई थी। वह उस समय बालचर (ब्वाय स्काउट) था। गाँव के लोग नाव न मिलने पर केले के पौधे का भेला बनाकर किसी तरह काम चला रहे थे और वहीं ज़मीदार के लड़के नाव पर हारमोनियम - तबला के साथ जल विहार करने निकले थे। गाँव के नौजवानों ने मिलकर उनकी नाव छीन ली थी और थोड़ी मारपीट भी हुई थी।
20. 1967 ई० में पुनपुन नदी में बाढ़- 1967 ई० में जब पुनपुन नदी की बाढ़ का पानी राजेंद्र नगर में आ गया था तब वहाँ के कुछ सजे-धजे युवक-युवतियों की टोली किसी फ़िल्म में देखे, कश्मीर का आनंद लेने के लिए नौका विहार करने निकली । नाव में स्टोव जल रहा था। उसपर केतली चढ़ी हुई थी। एक युवती (लड़की) कॉफ़ी बना रही थी । साथ में बिस्कुट थे तथा ट्रांजिस्टर पर फ़िल्मी गाने बज रहे थे। एक लड़की कोई सचित्र पत्रिका पढ़ रही थी और एक लड़का उस लड़की से कुछ कह रहा था। जब यह नौका लेखक के ब्लॉक के पास पहुँची तो आस-पास के ब्लॉकों की छत पर खड़े लड़कों ने उनका मज़ाक उड़ाते हुए बहुत कुछ कहा। यह देखकर उन फूहड़ युवकों की सारी 'एक्ज़बिशनिज़्म' अर्थात् प्रदर्शन करने का शौक गायब हो गया और वे वहाँ से भाग गए।
21. पानी का इंतज़ार करते हुए रात के ढाई बज गए थे। लेखक सोचने लगा कि पानी अब तक क्यों नहीं आया? उसके दिमाग में अनेक विचार आते हैं। लगता है कहीं अटक गया अथवा जहाँ तक आना था आकर रुक गया अथवा तटबंध पर इंजीनियरों ने उसे रोक दिया या कोई दैवी चमत्कार हो गया नहीं तो पानी कहीं भी जाएगा तो किधर से? रास्ता तो यहीं से है। लेखक की यह स्थिति बाढ़ के आने की संभावना के कारण हो रही थी। वह बेचैन था।
22. फिर उसे अपने मित्रों का ध्यान आता है जो एक दिन पहले से ही बाढ़ के पानी से घिरे थे। लेखक उनसे संपर्क करने का प्रयास करता है लेकिन बाढ़ के कारण टेलिफ़ोन बंद हो गया था। अपनी बेचैनी को दूर करने के लिए लेखक फिर एक बार कुछ लिखने के बारे में सोचता है। डर के कारण उसे कुछ भी नहीं सूझता। वह फिर से सोने की कोशिश करता है। सोने के लिए वह भेड़ों को गिनना और बार - बार आँखें खोलने और बंद करने के उपायों का सहारा लेता है। अंततः उसे नींद आ जाती है।
23. सुबह साढ़े पाँच बजे लेखक की पत्नी उसे जगाती है और बताती है "आई द्याखो-एसे गेछे जल! लेखक उठता है और उसे पश्चिम की ओर से मोटी डोरी की शक्ल में झाग के साथ बाढ़ का पानी आता हुआ दिखाई देता है।
24. चारों ओर से शोर, चीख, पुकार और बहते पानी की आवाज़ सुनाई देती है। लेखक के देखते ही देखते बाढ़ के पानी में सब कुछ डूबता जा रह था और लेखक बेबस होकर सब कुछ देख रहा था। एक फिर लेखक के मन में ख्याल आता है कि यदि उसके पास मूवी कैमरा होता या टेप रिकार्डर होता तो वह बाढ़ का आँखों देखा चित्र खींच देता। लेकिन वह जिस मानसिक पीड़ा को भोग रहा था उसमें यह संभव नहीं था।
25. बाढ़ से पीड़ितों के लिए कार्य करना, उन्हें दिलासा देना, उनका दुख बाँटना और उन्हें दुबारा स्थापित करने में सहायता करना आदि कार्य करने से बाढ़ पीड़ितों द्वारा भोगी गई मानसिक, शारीरिक और आर्थिक कष्ट आदि को हम अनुभव नहीं कर सकते। परंतु जब उस स्थिति से हमारा सामना होता है तो उस समय हम उन लोगों की मानसिक स्थिति को समझ सकते हैं। लोग बाढ़ के डर से किस प्रकार स्वयं को बचाने के चक्कर में अपना कितना कुछ खो देते हैं। लेखक ने इस पाठ के माध्यम से यह बताया है कि बाढ़ पीड़ितों की सहायता करना और उसे स्वयं भोगने में बहुत अंतर है।
26. उद्देश्य - 'इस जल प्रलय में' पाठ का उद्देश्य लोगों को प्राकृतिक आपदाओं से सजग कराना है और इस आपदा को भोगने वाले पीड़ितों के दुख का एहसास दिलाना है।
27. संदेश - प्राकृतिक आपदा के समय, स्थिति से डरने के बदले उससे बचने के उपाय ढूँढ़ने चाहिए। स्वयं को मानसिक रूप से मज़बूत करना चाहिए। एक - दूसरे के सहयोग से, धैर्य के साथ उस आपदा का सामना करना चाहिए। पाठ में इस कथन द्वारा लेखक ने लोगों की सोच के बारे में बताया है - "ईह! जब दानापुर डूब रहा था तो पटनियाँ बाबू लोग उलटकर देखने भी नहीं गए...अब बूझो!" इसका अर्थ है कि एक समय जब दानापुर डूब रहा था तब पटना के लोगों ने उनकी मदद नहीं की थी। अब स्वयं के बाढ़ में फँसने पर बाढ़ की पीड़ा महसूस कर रहे हैं। इसलिए लोगों को दूसरों को दुख में देखकर आनंदित नहीं होना चाहिए, उनके दुख को समझकर उनकी यथासामर्थ्य (जितनी हो सके) सहायता करनी चाहिए।
इन मुख्य बिंदुओं को पढ़कर छात्र परीक्षा में दिए जाने वाले किसी भी प्रश्न का उत्तर देने में समर्थ हो सकेंगे। आशा है उपरोक्त नोट्स विद्यार्थियों के लिए सहायक होंगे।
आप अपने विचार हमारे साथ साझा कर सकते हैं।