NCERT Study Material for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 4 Saanwale Sapnon ki Yaad (Important / key points which covers whole chapter/Paragraph wise Explanation)
हमारे ब्लॉग में आपको NCERT पाठ्यक्रम के अंतर्गत कक्षा 9 (Course A) की हिंदी पुस्तक 'क्षितिज' के पाठ पर आधारित प्रश्नों के सटीक उत्तर स्पष्ट एवं सरल भाषा में प्राप्त होंगे।
यहाँ NCERT HINDI Class 9 के पाठ - 4 'साँवले सपनों की याद' पाठ की व्याख्या दी जा रही है, जो पूरे पाठ की विषय वस्तु को समझने में सहायक सिद्ध होगी।
NCERT Class 9 Hindi Kshitij Chapter 4 'साँवले सपनों की याद' Important / key points which covers whole chapter/Paragraph wise Explanation)
1. 'साँवले सपनों की याद' प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली की मृत्यु के तुरंत बाद उनके मित्र जाबिर हुसैन द्वारा डायरी शैली में लिखा गया एक संस्मरण है। इसमें लेखक ने सालिम अली को याद करते हुए उनका व्यक्ति चित्र (sketch) प्रस्तुत किया है।
2. पाठ का शीर्षक / शीर्षक की सार्थकता - लेखक ने अपने प्रिय मित्र की मृत्यु से बहुत दुखी होकर उस दुख को 'साँवले सपनों की याद' नामक रचना के रूप में व्यक्त किया है। साँवला रंग यहाँ सपनों के विशेषण के रूप में प्रयोग किया गया है। ये सपने, प्रसिद्ध पक्षी प्रेमी सालिम अली से संबंधित हैं। वे पूरा जीवन पक्षियों की खोज और उनके संरक्षण के लिए काम करते रहे। लेखक को ऐसा लगता है कि सलीम अली ने उन पक्षियों के लिए जो सपने देखे थे, सजाए थे, वे अब सालिम अली की मृत्यु के अँधेरे में खो जाएँगे, उन्हीं के साथ हमेशा के लिए दफ़न हो जाएँगे। ऐसे सपने जिनकी याद करके अब लेखक को दुख होगा इसलिए लेखक ने अपनी रचना के लिए उचित शीर्षक का प्रयोग किया है।
साँवले सपनों की याद
सुनहरे परिंदों के खूबसूरत पंखों पर सवार साँवले सपनों का एक हुजूम मौत की खामोश वादी की तरफ़ अग्रसर है। कोई रोक-टोक सके, कहाँ संभव है।
व्याख्या - लेखक ने पाठ का आरंभ सलीम अली की शव यात्रा से किया है । ऐसे कई सपने जो पक्षियों से संबंधित थे वे अब कभी भी पूरे नहीं हो सकते क्योंकि सालिम अली की मौत के साथ-साथ अब वे सपने भी मौत की घाटी की ओर बढ़ रहे हैं। मौत पर किसी का भी कोई बस नहीं चलता इसलिए इन सपनों को कोई भी रोक नहीं सकता। कहने का अर्थ यह है कि सालिम अली की मृत्यु हो जाने के कारण सालिम अली के सपने उन्हीं के साथ खत्म हो जाएँगे।
इस हुजूम में आगे-आगे चल रहे हैं, सालिम अली। अपने कंधो पर, सैलानियों की तरह अपने अंतहीन सफ़र का बोझ उठाए। लेकिन यह सफ़र पिछले तमाम सफ़रों से भिन्न है। भीड़-भाड़ की ज़िंदगी और तनाव के माहौल से सालिम अली का यह आखिरी पलायन है। अब तो वो उस वन पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं, जो ज़िंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो। कोई अपने जिस्म की हरारत और दिल की धड़कन देकर भी उसे लौटाना चाहे तो वह पक्षी अपने सपनों के गीत दोबारा कैसे गा सकेगा !
व्याख्या -
सालिम अली के शव को भीड़ ले जा रही है और सालिम अली अपने कंधों पर उन सपनों को ले जा रहे हैं जो उन्होंने देखे थे। यात्रियों की तरह वे कभी न खत्म होने वाले सफ़र की ओर चल पड़े हैं। अब तक उन्होंने जितने भी सफ़र (यात्राएँ) किए, यह सफ़र (मौत का सफ़र ) उन सबसे बिल्कुल अलग है। सलीम अली को भीड़भाड़ की ज़िंदगी पसंद नहीं थी। भीड़भाड़ से दूर रहने और अपने जीवन से सभी तरह के तनावों को दूर करने के लिए सालिम अली पक्षियों की खोज करने उनके बारे में और अधिक विस्तार से जानने के लिए अक्सर यात्राएँ किया करते थे। यह यात्रा उनके जीवन की अंतिम यात्रा है। यह जाना उनका अंतिम जाना है क्योंकि अब वे एक ऐसे सफर पर निकल पड़े हैं जहाँ से लौटना संभव नहीं है अर्थात् उनकी मृत्यु हो चुकी है। वे एक वन पक्षी की तरह ज़िंदगी का आखिरी गीत गाकर इस प्रकृति में विलीन हो रहे हैं। कहने का अर्थ है कि सालिम अली अपने स्वभाव के अनुरूप अपने कार्य को करते हुए, धरती में समा जाएँगे अर्थात् मृत्यु के बाद अब वे मिट्टी में मिल जाएँगे।
मृत्यु के बाद मनुष्य का शरीर ठंडा पड़ जाता है। लेखक लिखते हैं कि यदि कोई उन्हें शरीर की गर्मी देकर और अपने दिल की धड़कन देकर भी लौटना चाहे तो भी वह ऐसा नहीं कर सकता। कहने का अर्थ है कि कोई अपना जीवन देकर भी सालिम अली जैसे पक्षी प्रेमी को जीवित नहीं कर सकता। सालिम अली जैसा पक्षी विज्ञानी अब दोबारा धरती पर पैदा नहीं हो सकता।
मुझे नहीं लगता, कोई इस सोए हुए पक्षी को जगाना चाहेगा। वर्षों पूर्व, खुद सालिम अली ने कहा था कि लोग पक्षियों को आदमी की नज़र से देखना चाहते हैं। यह उनकी भूल है, ठीक उसी तरह, जैसे जंगलों और पहाड़ों, झरनों और आबशारों को वो प्रकृति की नज़र से नहीं, आदमी की नज़र से देखने को उत्सुक रहते हैं। भला कोई आदमी अपने कानों से पक्षियों की आवाज़ का मधुर संगीत सुनकर अपने भीतर रोमांच का सोता फूटता महसूस कर सकता है?
व्याख्या -
लेखक कहते हैं कि मुझे नहीं लगता कि कोई भी सालिम अली को परेशान करना चाहेगा। सालिम अली ने अपना पूरा जीवन पक्षियों के लिए समर्पित कर दिया। उन्हीं से संबंधित कार्यों में वे सारा जीवन दौड़ते - भागते रहे, उन्होंने अथक प्रयास किए हैं। अब इस थके हुए पक्षी को कोई भी जागना नहीं चाहेगा। लेखक ने सालिम अली को पक्षी की संज्ञा दी है। उन्होंने ऐसा शायद इसलिए कहा है क्योंकि सालिम अली मनुष्य की तरह स्वार्थी नहीं थे। वे पक्षियों के साथ रहकर उन्हीं की तरह प्रकृति का एक अंग बन गए थे। वर्षों पहले सलीम अली ने कहा था कि लोग पक्षियों को आदमी की नज़र से देखना चाहते हैं। 'आदमी की नज़र' से उनका मतलब स्वार्थ से है। सालिम अली के अनुसार, लोग न तो पक्षियों को अपनी तरह एक जीव समझते हैं और न ही जंगल, पहाड़ों और झरनों को प्रकृति का अंग समझते हैं। लोग प्रकृति को अपनी स्वार्थ की पूर्ति का साधन समझते हैं। आदमी को इन्हें अपने आनंद और स्वार्थ (फ़ायदे) के रूप में नहीं देखना चाहिए बल्कि इनकी सुरक्षा करनी चाहिए। सालिम अली प्रकृति की सुंदरता बनाए रखने में विश्वास रखते थे। लेखक कहना चाह रहे हैं कि आदमी (मनुष्य) के मन में प्रकृति के लिए कोमल भावनाएँ नहीं हैं इसलिए वह पक्षियों की आवाज़ का मधुर (मीठा) संगीत सुनकर उसे महसूस नहीं कर सकता। भावहीन और स्वार्थी होने के कारण अब मनुष्य प्रकृति और अन्य जीवों के साथ भावनात्मक (भावों से पूर्ण) संबंध नहीं जोड़ पाता।
एहसास की ऐसी ही एक ऊबड़-खाबड़ ज़मीन पर जन्मे मिथक का नाम है, सालिम अली।
व्याख्या -
लेखक जाबिर हुसैन, सालिम अली के बारे में बताते हुए लिखते हैं कि सालिम अली ने अपने जीवन में अनेक अनुभव किए, अनेक संघर्षों का सामना किया। उनके जीवन में अनेक उतार - चढ़ाव (जिसे लेखक ने ऊबड़ - खाबड़ ज़मीन कहा है) आए। लेखक ने सालिम अली को एक मिथक का नाम दिया है क्योंकि सालिम अली दुनिया से अलग एक अद्भुत व्यक्ति थे। ऐसे व्यक्ति जिसके बारे में हमें विश्वास नहीं होगा कि ऐसा भी कोई व्यक्ति हो सकता है। प्रकृति और पक्षियों के लिए उनके मन में गहरी संवेदनशीलता थी।
*मिथक का अर्थ है जो वास्तव में है या नहीं कहा नहीं जा सकता क्योंकि उसकी प्रामाणिकता को सिद्ध नहीं किया जा सकता, जैसे वृंदावन में आज भी श्री कृष्ण का होना।
पता नहीं, इतिहास में कब कृष्ण ने वृंदावन में रासलीला रची थी और शोख गोपियों को अपनी शरारतों का निशाना बनाया था। कब माखन भरे भाँड़े फोड़े थे और दूध-छाली से अपने मुँह भरे थे। कब वाटिका में, छोटे-छोटे किंतु घने पेड़ों की छाँह में विश्राम किया था। कब दिल की धड़कनों को एकदम से तेज़ करने वाले अंदाज़ में बंसी बजाई थी। और, पता नहीं, कब वृंदावन की पूरी दुनिया संगीतमय हो गई थी। पता नहीं, यह सब कब हुआ था। लेकिन कोई आज भी वृंदावन जाए तो नदी का साँवला पानी उसे पूरे घटनाक्रम की याद दिला देगा। हर सुबह, सूरज निकलने से पहले, जब पतली गलियों से उत्साह भरी भीड़ नदी की ओर बढ़ती है, तो लगता है जैसे उस भीड़ को चीरकर अचानक कोई सामने आएगा और बंसी की आवाज़ पर सब किसी के कदम थम जाएँगे। हर शाम सूरज ढलने से पहले, जब वाटिका का माली सैलानियों को हिदायत देगा तो लगता है जैसे बस कुछ ही क्षणों में वो कहीं से आ टपकेगा और संगीत का जादू वाटिका के भरे-पूरे माहौल पर छा जाएगा। वृंदावन कभी कृष्ण की बाँसुरी के जादू से खाली हुआ है क्या!
व्याख्या -
लेखक सालिम अली के अद्भुत व्यक्तित्व को वृंदावन के कण-कण में बसने (रहने) वाले श्री कृष्ण से जोड़ते हुए लिखते हैं कि जिस प्रकार हम आज वृंदावन में भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं को सुनते हैं और उनसे जुड़ी घटनाओं का प्रमाण न होते हुए भी उन पर श्रद्धा रखते हैं, उसी प्रकार कुछ सालों बाद शायद लोग इस बात पर भी हैरान हों कि सालिम अली जैसा व्यक्ति भी इस दुनिया में था जिसने पक्षियों की खोज और उनकी सुरक्षा में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।
लेखक लिखते हैं कि कृष्ण ने वृंदावन में कब रास लीला रची? कब चंचल गोपियों के साथ शरारतें की? कब उन्होंने माखन चुराया? कब उन्होंने मक्खन से भरे बर्तन तोड़े? पता नहीं कब, उन्होंने वृंदावन के बागों में आराम किया? कब मधुर मुरली बजाई जिसे सुनकर वृंदावनवासियों के दिल की धड़कनें तेज़ हो जाती थी पता नहीं यह सब कब हुआ होगा? अर्थात् हम में से किसी ने भी उनकी लीलाओं को नहीं देखा, न ही साक्षात श्री कृष्ण को देखा है परंतु हम सभी कृष्ण के अस्तित्व को मानते हैं। आज भी वृंदावन में यमुना नदी के साँवले (काले) पानी को देखकर हमें कालिया नाग के मर्दन (कालिया नाग जो यमुना नदी में रहता था जिसे श्री कृष्ण ने मारा था) की याद दिला देता है। वृंदावन की हर गली, बाग, कण-कण में श्री कृष्णा समाए हुए हैं। उनकी बाँसुरी की आवाज़ लोगों के हृदय में समाई हुई है, वहाँ का वातावरण कृष्णमय है।
वृंदावन से जुड़ा एक और मिथक है जिसके अनुसार शाम के समय किसी भी यात्री को निधिवन में रुकने का प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। ऐसा माना जाता है कि रात के समय निधिवन के सभी पेड़ गोपियाँ बन जाते हैं और श्री कृष्णा और गोपियों के साथ उस वाटिका में रासलीला नृत्य करते हैं। यदि कोई यात्री इस दृश्य को अपनी आंँखों से देख लेता है तो वह नेत्रहीन हो जाता है या उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है अर्थात् वह पागल हो जाता है। इसलिए शाम सूरज ढलने से पहले वाटिका (निधिवन) के माली /कर्मचारी सैलानियों अर्थात् यात्रियों को वहाँ से जाने की हिदायत (आदेश) देते हैं।
कहने का भाव यह है कि सालिम अली का व्यक्तित्व अविश्वसनीय है। आज के समय में ऐसा इंसान मिलना मुश्किल है।
मिथकों की दुनिया में इस सवाल का जवाब तलाश करने से पहले एक नज़र कमज़ोर काया वाले उस व्यक्ति पर डाली जाए जिसे हम सालिम अली के नाम से जानते हैं। उम्र को शती तक पहुँचने में थोड़े ही दिन तो बच रहे थे। संभव है, लंबी यात्राओं की थकान ने उनके शरीर को कमज़ोर कर दिया हो, और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी उनकी मौत का कारण बनी हो। लेकिन अंतिम समय तक मौत उनकी आँखों से वह रोशनी छीनने में सफल नहीं हुई जो पक्षियों की तलाश और उनकी हिफ़ाज़त के प्रति समर्पित थी । सालिम अली की आँखों पर चढ़ी दूरबीन उनकी मौत के बाद ही तो उतरी थी।
व्याख्या -
लेखन लिखते हैं कि इस दुनिया में न जाने कितनी ऐसी बातें हैं जिनकी सच्चाई की प्रमाणिकता सिद्ध नहीं की जा सकी है। कृष्ण से जुड़ा यह प्रश्न उन्हीं में से एक है। फिर लेखक अपने मित्र सालिम अली के व्यक्तित्व के के बारे में बताते हुए लिखते हैं कि सालिम अली एक कमज़ोर काया वाले अर्थात् दुबले-पतले शरीर वाले व्यक्ति थे। कुछ ही दिनों में वह 100 साल के होने वाले थे परंतु अपने कार्य से संबंधित उनकी लंबी यात्राओं की थकान और कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी के कारण उनका शरीर कमज़ोर हो गया था जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन शरीर की कमज़ोरी और शारीरिक कष्ट के बाद भी सालिम अली अंतिम समय तक पक्षियों की तलाश और उनकी सुरक्षा के लिए कार्य करते रहे। पक्षियों की जाँच के लिए वह जो दूरबीन अपनी आंँखों पर चढ़ते थे वह उनकी मृत्यु के बाद ही उतरी थी। कहने का अर्थ यह है कि उन्होंने अपनी मृत्यु तक, अपने जीवन के आखिरी पल तक पक्षियों के लिए काम किया।
उन जैसा 'बर्ड वाचर' शायद ही कोई हुआ हो। लेकिन एकांत क्षणों में सालिम अली बिना दूरबीन भी देखे गए हैं। दूर क्षितिज तक फैली ज़मीन और झुके आसामान को छूने वाली उनकी नज़रों में कुछ-कुछ वैसा ही जादू था, जो प्रकृति को अपने घेरे में बाँध लेता है। सालिम अली उन लोगों में थे जो प्रकृति के प्रभाव में आने की बजाए प्रकृति को अपने प्रभाव में लाने के कायल होते हैं। उनके लिए प्रकृति में हर तरफ़ एक हँसती-खेलती रहस्य भरी दुनिया पसरी थी। यह दुनिया उन्होंने बड़ी मेहनत से अपने लिए गढ़ी थी। इसके गढ़ने में उनकी जीवन - साथी तहमीना ने काफ़ी मदद पहुँचाई थी। तहमीना स्कूल के दिनों में उनकी सहपाठी रही थीं।
व्याख्या -
लेखन लिखते हैं कि सालिम अली जैसा 'बर्ड वाचर' अर्थात् पक्षी विशेषज्ञ शायद ही कोई हुआ होगा। उन्होंने जिस प्रकार पक्षियों की खोज की और जितनी गहराई से पक्षियों के बारे में जानकारी प्राप्त की यह दर्शाता है कि उन्हें पक्षियों से कितना प्रेम था। यह प्रेम और लगन किसी और में मिलना असंभव है। उनका पूरा जीवन पक्षियों के लिए समर्पित था। इसलिए करीब से उन्हें देखने और जाँचने के लिए वे हर समय अपने पास दूरबीन रखा करते थे। सालिम अली उन लोगों में से थे जो प्रकृति के प्रभाव में आने की बजाय प्रकृति को अपने प्रभाव में कर लेते थे। कहने का अर्थ है कि उनका व्यक्तित्व बहुत ही प्रभावशाली था उनकी आँखें प्रकृति में हर तरफ़ छिपे रहस्यों को देख सकने में समर्थ थी। इस दुनिया में उन्होंने बहुत मेहनत से तैयार किया था। उन्होंने बहुत लगन से पक्षियों के विषय में जानकारियाँ एकत्र (इकट्ठा) की थी। उनकी इस मेहनत में उनकी पत्नी तहमीना ने बहुत योगदान दिया जो स्कूल के दिनों में उनके साथ ही पढ़ा करती थीं।
अपने लंबे रोमांचकारी जीवन में ढेर सारे अनुभवों के मालिक सालिम अली एक दिन केरल की 'साइलेंट वैली' को रेगिस्तानी हवा के झोंकों से बचाने का अनुरोध लेकर चौधरी चरण सिंह से मिले थे। वे प्रधानमंत्री थे। चौधरी साहब गाँव की मिट्टी पर पड़ने वाली पानी की पहली बूंद का असर जानने वाले नेता थे। पर्यावरण के संभावित खतरों का जो चित्र सालिम अली ने उनके सामने रखा, उसने उनकी आँखें नम कर दी थीं।
व्याख्या -
सालिम अली ने अपने रोमांचकारी जीवन अर्थात् साहस, उत्साह और आनंद से भरे जीवन में अनेक अनुभव किए थे। सालिम अली पर्यावरण और पक्षी प्रेमी थे इसलिए उन्होंने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी से मिलकर केरल की 'साइलेंट वैली' को बचाने का अनुरोध किया। साइलेंट वैली वहाँ पर पाए जाने वाले दुर्लभ प्रजाति के जानवरों और पक्षियों के लिए प्रसिद्ध है। सालिम अली ने चरण सिंह जी को रेगिस्तानी हवा के गरम झोंकों और साइलेंट वैली के जंतुओं पर पड़ने वाले उसके दुष्प्रभावों के बारे में बताया। चौधरी साहब स्वयं एक किसान परिवार से थे। उनके मन में भी प्रकृति के लिए स्वाभाविक रूप से प्रेम था। वे जानते थे कि एक किसान के लिए बारिश की बूँद का क्या महत्त्व होता है इसलिए जब सालिम अली ने उन्हें साइलेंट वैली के नष्ट होने और वहाँ रहने वाले जीव - जंतुओं की मृत्यु की संभावना के बारे में बताया तो पर्यावरण को पहुँचने वाले खतरों के बारे में सोचकर उनका कोमल मन दुखी हो गया जिससे उनकी आँखों में आँसू आ गए।
आज सालिम अली नहीं हैं। चौधरी साहब भी नहीं है। कौन बचा है, जो अब सोंधी माटी पर उगी फसलों के बीच एक नए भारत की नींव रखने का संकल्प लेगा? कौन बचा है, जो अब हिमालय और लद्दाख की बरफ़ीली ज़मीनों पर जीने वाले पक्षियों की वकालत करेगा ?
व्याख्या -
लेखक कहना चाह रहे हैं कि ऐसे लोग बहुत कम होते हैं जो प्रकृति के प्रति संवेदनशील होते हैं। जो प्रकृति का ध्यान रखते हैं। लेखक के मन में इस प्रकार के प्रश्न उठते हैं कि सालिम अली और चौधरी चरण सिंह जैसे संवेदनशील व्यक्तियों के न रहने पर अब कितने लोग पर्यावरण को सुरक्षित रखते हुए देश के विकास के लिए कार्य करेंगे? संसार में कितने लोग केवल अपने बारे में न सोचकर बर्फ़ीले, ठंडे प्रदेशों में रहने वाले पक्षियों की सुरक्षा के बारे में सोचेंगे और उन्हें बचाने का प्रयास करेंगे?
* संवेदनशीलता का अर्थ - यदि मनुष्य या कोई प्राणी अन्य मनुष्यों या प्राणियों की पीड़ा या दुःख को देखकर, स्वयं भी वही पीड़ा या दुःख का अनुभव करे तो उसे 'संवेदनशीलता' कहते हैं।
सालिम अली ने अपनी आत्मकथा का नाम रखा था। 'फॉल ऑफ ए स्पैरों' (Fall of a Sparrow)। मुझे याद आ गया, डी एच लरिंस की मौत के बाद लोगों ने उनकी पत्नी फ्रीडा लॉरेंस से अनुरोध किया. कि वह अपने पति के बारे में कुछ लिखे। चाहती तो ढेर सारी बातें लॉरेंस के करे में लिख सकती थी। लेकिन उसने कहा- मेरे लिए लॉरेंस के बारे में कुछ लिखना असंभव सा है। मुझे महसूस होता है. मेरी छत पर बैठने वाली गोरैया लॉरेंस के बारे में ढेर सारी बाते जानती है। मुझसे भी ज्यादा जानती है। वो सचमुच इतना खुला खुला और सदा-दिल आदमी था। मुमकिन है, लॉरेंस मेरी रगों में, मेरी हड्डियों में समाया हो लेकिन मेरे लिए कितना कठिन है, उसके बारे में अपने अनुभवों को शब्दों का जामा पहनाना। मुझे यकीन है, मेरी छत पर बैठी गौरैया उसके बारे में, और हम दोनों ही के बारे में, मुझसे ज्यादा जानकारी रखती है।
व्याख्या -
इस अंश में लेखक ने बताया है कि सलीम अली ने अपनी आत्मकथा लिखी थी जिसका नाम उन्होंने 'फ़ॉल ऑफ़ ए स्पैरो' रखा था। इसके बाद लेखक ने डी. एच. लॉरेंस की एक घटना के बारे में लिखा है। लॉरेंस 20वीं सदी के अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध उपन्यासकार थे, जिन्हें प्रकृति से गहरा लगाव था। लॉरेंस की मृत्यु के बाद लोगों ने उनकी पत्नी फ्रीडा से लॉरेंस के बारे में कुछ लिखने का अनुरोध (प्रार्थना) किया। तब फ्रीडा ने कहा कि उनसे ज़्यादा लॉरेंस के बारे में उनकी छत पर बैठने वाली गौरैया (चिड़िया) बता सकती है। कहने का अर्थ यह है कि लॉरेंस का अधिक समय उस चिड़िया के साथ ही बीता था। इस कारण वे दोनों एक - दूसरे के स्वभाव को अच्छी तरह से जानते थे। इस घटना द्वारा लेखक यह कहना चाहते हैं कि सालिम अली ने अपनी आत्मकथा तो ज़रूर लिखी है और उसमें अपने जीवन से संबंधित बातें भी लिखी हैं लेकिन उन्हें उनसे भी ज़्यादा वे पक्षी जानते होंगे जिनके साथ सालिम अली ने अपना सबसे अधिक समय बिताया था।
जटिल प्राणियों के लिए सालिम अली हमेशा एक पहेली बने रहेंगे। बचपन के दिनों में, उनकी एयरगन से घायल होकर गिरने वाली, नीले कंठ की वह गौरैया सारी जिंदगी उन्हें खोज के नए-नए रास्तों की तरफ़ ले जाती रही। ज़िंदगी की ऊँचाइयों में उनका विश्वास एक क्षण के लिए भी डिगा नहीं। वो लॉरेंस की तरह, नैसर्गिक ज़िंदगी का प्रतिरूप बन गये थे।
व्याख्या -
यहाँ जटिल प्राणी का अर्थ है - 'मनुष्य'। लेखक लिखते हैं कि सरल स्वभाव वाले, निस्वार्थ और प्रेम की भावना से पूर्ण सालिम अली को स्वार्थ और दिखावे से भरा मनुष्य कभी समझ नहीं सकता। भोले - भाले पक्षी जो सहज और स्वाभाविक ज़िंदगी जीते हैं, वे सालिम अली को बेहतर समझ सकते हैं। लेखक ने सालिम अली के बचपन की उस घटना के बारे में बताया है जिसने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी। बचपन के दिनों में सालिम अली की एयरगन से नीले कंठ (गर्दन) वाली एक गोरैया (चिड़िया) घायल हो गई थी। उसकी देखभाल करते हुए ही शायद सालिम अली के मन में पक्षियों के बारे में और अधिक जानने की इच्छा जगी और तभी से उनका विभिन्न प्रकार के पक्षियों की खोज करने का सफ़र शुरू हुआ। इसी रुचि के कारण वे पक्षी विज्ञानी बने। इस दिशा में कार्य करते हुए उन्हें अनेक पुरस्कार मिले बहुत - सी सफलताएँ मिली, समाज में नई पहचान मिली। लेकिन इन ऊँचाइयों (सफलताओं) का उनके जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वे पहले के समान ही सादा और सरल जीवन जीते रहे। इसलिए लेखक ने यह कहा है कि 'वो लॉरेंस की तरह, नैसर्गिक ज़िंदगी का प्रतिरूप बन गए थे अर्थात् उन्हें अपने जीवन में बहुत उपलब्धियाँ (achievements) मिली, फिर भी वे लॉरेंस की तरह ही सादा और साधारण जीवन जीते रहे।
सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाए अथाह सागर बनकर उभरे थे। जो लोग उनके भ्रमणशील स्वाभाव और उनकी यायावरी से परिचित हैं, उन्हें महसूस होता है कि वो आज भी पक्षियों के सुराग में ही निकले हैं, और बस अभी गले में लंबी दूरबीन लटकाए अपने खोजपूर्ण नतीजों के साथ लौट आएँगे। जब तक वो नहीं लौटते, क्या उन्हें गया हुआ मान लिया जाए! मेरी आँखें नम हैं, सालिम अली, तुम लौटोगे ना !
व्याख्या - सालिम अली ने पक्षियों से संबंधित अपनी खोज को सीमित करने के बदले भारत की अलग-अलग जगह पर जाकर खोजें की और जानकारी प्राप्त की, इसलिए लेखक ने सालिम अली के बारे में लिखा है कि वे प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाए अथाह सागर बनकर उभरे थे। सालिम अली के साथ अपनी गहरी मित्रता और उनके प्रति अपने प्रेम के कारण लेखक जाबिर हुसैन को ऐसा लगता है कि जिस प्रकार सालिम अली पक्षियों की खोज में अक्सर यात्राएँ करते रहे हैं इस तरह वह आज भी पक्षियों की खोज के लिए ही गए हैं। अपनी खोज पूरी करने के बाद वह लौट आएँगे। लेखक के मन में आज भी यह उम्मीद है कि सालिम अली लौट आएँगे। लेकिन इस बात को वह भी जानते हैं कि ऐसा संभव नहीं है। इस सच्चाई को जानने के कारण लेखक का मन दुखी है और सालिम अली को याद करते हुए उनकी आंँखों में आँसू हैं।