NCERT Study Material for Class 9 Hindi Kritika Chapter 3 Reed ki Haddi (Important / key points which covers whole chapter)
हमारे ब्लॉग में आपको NCERT पाठ्यक्रम के अंतर्गत कक्षा 9 (Course A) की हिंदी पुस्तक 'क्षितिज' के पाठ पर आधारित प्रश्नों के सटीक उत्तर स्पष्ट एवं सरल भाषा में प्राप्त होंगे।
यहाँ NCERT HINDI Class 9 की पुस्तक कृतिका के पाठ - 3 'रीढ़ की हड्डी' के मुख्य बिंदु दिए गए हैं जो पूरे पाठ की विषय वस्तु को समझने में सहायक सिद्ध होंगे।
NCERT Class 9 Hindi Kritika Chapter पाठ - 3 'रीढ़ की हड्डी ' Important / key points which covers whole chapter (Quick revision notes) महत्त्वपूर्ण (मुख्य) बिंदु जो पूरे अध्याय को कवर करते हैं (त्वरित पुनरावृत्ति नोट्स)
रीढ़ की हड्डी
~ रीढ़ की हड्डी जगदीश चंद्र माथुर द्वारा लिखित एकांकी है।
~ पाठ का शीर्षक / शीर्षक की सार्थकता - रीढ़ की हड्डी अर्थात् बैकबोन मनुष्य के शरीर का एक महत्त्वपूर्ण अंग होता है। रीढ़ की हड्डी न होने पर या कमज़ोर होने पर व्यक्ति सीधा खड़ा नहीं हो सकता और वह शक्तिहीन लगता है। वहीं मज़बूत रीढ़ की हड्डी मनुष्य में आत्मविश्वास जगाती है।
इस पाठ में रीढ़ की हड्डी शीर्षक को अनेक अर्थों में इस्तेमाल किया गया है-
(1) इस एकांकी में विवाह के संबंध में समाज में फैली अनेक बुराइयों को दिखाया गया है, जैसे - विवाह को बिज़नेस मानकर लड़की वालों से दहेज़ लेना, लड़कियों का अधिक पढ़ा - लिखा होना घर - गृहस्थी के लिए उचित न मानना आदि। हमारा समाज ऐसी सोच, ऐसी परंपराओं को अपनाकर बिना रीढ़ वाला होता जा रहा है।
जिस प्रकार व्यक्ति को सीधा खड़ा होने के लिए मज़बूत रीढ़ की हड्डी की ज़रूरत होती है उसी प्रकार समाज की सोच को समय के अनुसार बदलने और समाज के विकास के लिए अच्छे विचारों के समान रीढ़ की हड्डी की आवश्यकता होती है।
(2) दूसरे अर्थ में यह शीर्षक शंकर जैसे डरपोक लड़कों की ओर इशारा करता है जिनकी रीढ़ की हड्डी नहीं होती। एकांकी में शंकर अपनी कमर झुकाकर बैठने वाला, किसी भी विषय में अपनी राय ना देने वाला एक कमज़ोर चरित्र के रूप में दिखाई देता है अर्थात् बिना रीढ़ की हड्डी का।
(3) नारी घर - परिवार और समाज में एक मह्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है इसलिए नारी समाज की रीढ़ है। समाज में नारी को उचित स्थान न मिल पाना, समाज को कमज़ोर बनाता है। समाज की उन्नति के लिए समाज में नारी की स्थिति मज़बूत करना आवश्यक है।
अतः रीढ़ की हड्डी शीर्षक मज़बूत सोच, मज़बूत समाज और मज़बूत चरित्र की ओर संकेत करता है। एकांकी में निहित संदेश को व्यक्त करने में यह शीर्षक पूर्ण रूप से सार्थक है।
एकांकी के मुख्य पात्रों का चरित्र - चित्रण -
उमा -
एकांकी की कथावस्तु के आधार पर उमा एकांकी की मुख्य पात्र है। वह आधुनिक विचारों वाली, शिक्षित और सशक्त महिला है। बी. ए. तक की पढ़ाई करने के साथ-साथ उमा संगीत, चित्रकारी और सिलाई आदि भी जानती है। उसे दिखावा पसंद नहीं है इसीलिए विवाह के लिए देखने आने वाले लड़के और उसके पिता के सामने मेकअप करके प्रदर्शन की वस्तु बनकर जाने के लिए वह मना करती है। अपने माता-पिता के सम्मान के लिए वह न चाहते हुए भी लड़के वालों के सामने आती है और उनके कहने पर गीत गाकर भी सुनाती है। वह स्वाभिमानी और साहसी है। गोपाल प्रसाद जिस प्रकार उससे प्रश्न पूछते हैं उससे वह अपने - आप को अपमानित महसूस करती है और अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए वह निडरता से इसका विरोध करती है।
समाज से बुराइयों को दूर करने और समाज की उन्नति के लिए उमा जैसे सशक्त व्यक्तित्व की ही ज़रूरत है। यदि सभी स्त्रियों में उमा जैसा स्वाभिमान हो तो उनकी स्थिति में सुधार आ सकता है।
रामस्वरूप -
लड़कियों की शिक्षा के समर्थक - रामस्वरूप नई और अच्छी सोच वाले व्यक्ति हैं। वह लड़कियों की उच्च शिक्षा के समर्थन हैं इसलिए वह अपनी बेटी उमा को बी. ए. तक की पढ़ाई करवाते हैं। उसके विचार से पढ़ने - लिखने से लड़कियाँ आत्मनिर्भर बनती हैं।
स्नेही पिता - वह अपनी बेटी को आत्म निर्भर बनाने के लिए सामाजिक सोच के विरुद्ध जाकर उसे उच्च शिक्षा दिलवाते हैं। वह चाहते हैं कि उनकी बेटी का विवाह एक अच्छे परिवार में हो।
विवश पिता के रूप में कमियाँ - रामस्वरूप अपनी बेटी उमा की शादी अच्छे परिवार में करना चाहते हैं और इसी कारण वह लड़के वालों के दकियानूसी ख्यालों का विरोध करने की बजाय उनसे झूठ बोलते हैं। लड़के वाले कम पढ़ी - लिखी बहू चाहते हैं इसीलिए वह अपनी बी. ए. पास बेटी को दसवीं पास बताते हैं। गोपाल प्रसाद द्वारा विवाह संबंध को बिज़नेस कहने पर रामस्वरूप न तो दहेज़ की माँग का विरोध करते हैं और न ही लड़कियों की सुंदरता के संबंध में उनके विचारों का विरोध करते हैं। वह गोपालप्रसाद की रूढ़िवादी सोच और उसकी व्यर्थ की बातों का समर्थन करते के लिए विवश हो जाते हैं।
वह उमा से भी गोपाल प्रसाद की सोच के अनुसार व्यवहार करने को कहते हैं। वह उससे अपेक्षा (उम्मीद) करते हैं कि वह सज - धजकर सुंदर रूप में पेश आए। इसके लिए वह पाउडर आदि बनावटी साधनों का उपयोग करे। वह आने वाले मेहमानों के सामने ढंग से बात करे, अपनी व्यवहार कुशलता से उनका दिल जीत ले। उसमें जो-जो गुण हैं, उन्हें ठीक तरह प्रकट करे ताकि वह होने वाले पति और ससुर को पसंद आ जाए। वह उसे कम पढ़ी - लिखी लड़की के रूप में भी पेश करना चाहते हैं। अपनी बेटी का रिश्ता तय करने के लिए राम स्वरूप का उमा से ऐसी अपेक्षा करना पूरी तरह से अनुचित है। वह अपनी बेटी का संबंध झूठ के सहारे बनाना चाहते थे। साथ ही ऐसा करके वह उमा के आत्म सम्मान को भी चोट पहुँचा रहे थे। न तो उमा कोई भेड़ - बकरी थी और न ही उसका उच्च शिक्षा प्राप्त करना कोई अपराध था।
रामस्वरूप जैसे विवश पिता चुप रहकर समाज में बढ़ रही ऐसी बुराइयों को बढ़ावा देते हैं जो किसी अपराध से काम नहीं है।
गोपाल प्रसाद -
लालची - गोपाल प्रसाद पेशे से वकील हैं और एक लड़के के पिता हैं। वह संबंधों से अधिक पैसे को महत्त्व देते हैं। शादी जैसे पवित्र संस्कार को भी वह बिजनेस का नाम देते हैं।
झूठ बोलने वाले - गोपाल प्रसाद झूठ बोलने में भी कुशल हैं। वह अपने बेटे शंकर का फ़ेल होना बड़ी कुशलता से छिपा लेते हैं। वह बताते हैं कि बीमारी के कारण शंकर का साल खराब हो गया था।
आत्मा प्रशंसक - नए जमाने की तुलना में अपने ज़माने की अच्छाइयों का वर्णन करके वह अपनी खूबियों का बखान स्वयं ही करते रहते हैं, फिर चाहे वह खाने - पीने की बात हो या शारीरिक ताकत की या पढ़ाई की।
रूढ़िवादी सोच वाले - वह पुरुष प्रधान समाज का वह अंग हैं जो सदियों से चली आ रही रुढियों (परंपराओं) को अपने स्वार्थ के लिए अपनाए रखना चाहता हैं। वह स्वयं एक वकील हैं और उसका बेटा मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है लेकिन वह अपने बेटे के लिए कम पढ़ी-लिखी बहू चाहते हैं। उनका विचार है कि यदि घर में ज़्यादा पढ़ी - लिखी बहू आएगी तो वह उनके परिवार के हिसाब से नहीं चलेगी। वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होगी इसलिए उनसे दबकर नहीं रहेगी। इसके विपरीत वह लड़कियों का खूबसूरत होना निहायत ज़रूरी मानते हैं।
ऊँची शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी गोपाल प्रसाद पढ़ाई - लिखाई पर केवल लड़कों का अधिकार मानते हैं। उनके शब्दों में - "कुछ बातें दुनिया में ऐसी है जो सिर्फ़ मर्दों के लिए ही हैं और ऊँची तालीम भी ऐसी चीजों में से एक है।"
अतः गोपाल प्रसाद का चरित्र समाज की सड़ी - गली खराब सोच को दर्शाता है जो समाज पर अपना (पुरुषों का) अधिकार बनाए रखना चाहते हैं । ऐसे पुरुष महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार नहीं देना चाहते इस कारण वे समाज की उन्नति में बाधक हैं। इस प्रकार गोपाल प्रसाद समाज और देश के विकास को रोकने वाले अपराधी हैं।
शंकर -
कमज़ोर व्यक्तित्व - एकांकी का पात्र शंकर अपने पिता गोपाल प्रसाद के साथ अपने विवाह के लिए लड़की देखने आता है। शंकर एक कमज़ोर व्यक्तित्व वाले नौजवान का प्रतीक है।
चरित्रहीन - वह समाज में फैली किसी भी बुराई को रोकने में सक्षम नहीं है बल्कि वह स्वयं लड़कियों के पीछे भागने वाला चरित्रहीन लड़का है।
आत्म सम्मान का अभाव - वह स्वयं मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है लेकिन विवाह के लिए उसे कम पढ़ी-लिखी पत्नी चाहिए जो उससे दब कर रहे। यह संस्कार भी उसके पिता के दिए हुए हैं। उसकी अपनी कोई सोच नहीं है। वह गोपाल प्रसाद की हाँ में हाँ मिलता है, फिर चाहे वह लड़कियों की पढ़ाई की बात हो या उनकी सुंदरता की या फिर विवाह को बिज़नेस मानने की। एकांकी में उसका कमर सीधी करके न बैठना इसी बात की ओर संकेत करता है कि उसमें रीढ़ की हड्डी नहीं है अर्थात् उसमें आत्मविश्वास का अभाव है। इन्हीं कमियों के कारण वह उमा जैसी सशक्त लड़की के योग्य नहीं है। एकांकी के अंत में उमा भी गोपाल प्रसाद से यही बात कहती है कि "घर जाकर ज़रा पता लगाइएगा कि आपके लाडले बेटे के रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं।"
अतः शारीरिक और चारित्रिक रूप से कमज़ोर शंकर जैसे व्यक्तित्व समाज के विकास में अपना कोई योगदान नहीं देते।
रीढ़ की हड्डी' एकांकी का उद्देश्य -
(1) गोपाल प्रसाद के चरित्र के माध्यम से ऐसे लोगों को सामने लाना जो विवाह के लिए स्त्रियों को जानवरों के समान देख-परखकर, उनका अपमान करते हैं। स्त्रियों को समानता का अधिकार नहीं देते। अप्रत्यक्ष रूप से दहेज की मांग करते हैं।
(2) रामस्वरूप के माध्यम से यह दिखाना कि समाज में ऐसे लोग भी हैं जो शिक्षा का महत्त्व जानते हैं और अपनी बेटियों को शिक्षित करने में गर्व का अनुभव करते हैं परंतु शादी लायक उम्र होते ही बेटी की शादी अच्छे घर में करवाने के लिए अपनी सोच के विपरीत कार्य करने पर विवश हो जाते हैं। इस प्रकार रामस्वरूप के द्वारा लड़कियों के विवाह में आने वाली समस्याओं की ओर समाज का ध्यान खींचना भी इस एकांकी का उद्देश्य है।
(3) उमा के माध्यम से लड़कियों को अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए प्रेरित करना, अपने अधिकारों के प्रति जागरूक कराना और समाज में औरतों की दशा को सुधारना भी इस एकांकी के उद्देश्य है।
(4) शंकर के माध्यम से युवा पीढ़ी का पढ़ाई पर ध्यान न देने, चारित्रिक दुर्बलता के कारण अपमानित होने की ओर ध्यान दिलाना भी लेखक का उद्देश्य है।
(5) आत्मसम्मान मनुष्य के व्यक्तित्व की रीढ़ की हड्डी के समान अति आवश्यक है यह बताने के अपने उद्देश्य में भी एकांकी पूरी तरह से सफल हुई है।