ड - ड़ और ढ - ढ़ में अंतर -
ड और ढ वर्ण हिंदी वर्णमाला में टवर्ग के अंतर्गत अर्थात् तीसरी पंक्ति में तीसरे और चौथे स्थान पर आते हैं। ड और ढ वर्णों के नीचे बिंदु लगाकर ड़ और ढ़ ध्वनियाँ बनती हैं। इन्हें भी व्यंजन के रूप में अपनाया गया है।
ड़ और ढ़ हिंदी की विशेष व्यंजन ध्वनियाँ हैं। हिंदी वर्णमाला में इन्हें 'टवर्ग' के पाँचों व्यंजनों के बाद अलग से लिखा जाता है। ये वर्ण अरबी - फ़ारसी भाषा के प्रभाव से हिंदी वर्णमाला में आए हैं। इनके उच्चारण में जीभ को ऊपर उठाकर आगे की ओर फेंका जाता है इसलिए इन्हें 'उत्क्षिप्त व्यंजन' भी कहा जाता है।
ड - ड़ और ढ - ढ़ का उच्चारण मुख में जिस स्थान से होता है वह मूर्धा कहलाता है। इस स्थान से उच्चरित होने के कारण इन्हें मूर्धन्य कहा जाता है।
ड़ और ढ़ का प्रयोग किसी भी शब्द के आरंभ में नहीं किया जाता । इनका प्रयोग केवल शब्द के मध्य और अंत में होता है।
नीचे दिए गए शब्दों के उच्चारण की सहायता से आप इन ध्वनियों के अंतर को और अच्छी तरह से समझ सकेंगे -
ड -
डाली, पंडित, डलिया, डमरू, डिब्बा डोरी, डाँट, डंडा
ड़ -
पेड़, पेड़ा, थोड़ा, बड़ा, सड़क, घोड़ा, दौड़, लड़ाई, लड़का
ढ -
ढक्कन, ढाल, ढलान, ढफ़ली, ढोंग, ढाँचा, ढूँढ़ना
ढ़ -
पढ़ना, बूढ़ा, बढ़ना, चढ़ाई, कढ़ाई, ढूँढता, गाढ़ा