NCERT Study Material for Class 10 Hindi Kritika Chapter 1 'Mata Ka Anchal' Important / key points which covers whole chapter / Quick revision notes, Textbook Question-Answers and Extra Questions /Important Questions with Answers
हमारे ब्लॉग में आपको NCERT पाठ्यक्रम के अंतर्गत कक्षा 10 (Course A) की हिंदी पुस्तक 'क्षितिज' और हिंदी पूरक पाठ्यपुस्तक 'कृतिका' के पाठ पर आधारित सामग्री प्राप्त होगी जो पाठ की विषय-वस्तु को समझने में आपकी सहायता करेगी। इसे समझने के उपरांत आप पाठ से संबंधित किसी भी प्रश्न का उत्तर सरलता से दे सकेंगे।
यहाँ NCERT HINDI Class 10 के पाठ - 1 'माता का अंचल' के मुख्य बिंदु (Important / Key points) दिए जा रहे हैं। साथ ही आपकी सहायता के लिए पाठ्यपुस्तक में दिए गए प्रश्नों के सटीक उत्तर (Textbook Question-Answers) एवं अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर (Extra Questions /Important Questions with Answers) सरल एवं भाषा में दिए गए हैं। आशा है यह सामग्री आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
NCERT Hindi Class 10 (Course - A) Kritika (Bhag - 2) Chapter - 1 Mata Ka Anchal (माता का अँचल)
यह अंश शिवपूजन सहाय के उपन्यास देहाती दुनिया से लिया गया है। सन् 1926 में प्रकाशित देहाती दुनिया हिंदी का पहला आंचलिक उपन्यास माना जाता है। इतना ही नहीं यह स्मरण-शिल्प में लिखा गया हिंदी का पहला उपन्यास भी माना जाता है। इसमें ग्रामीण जीवन का चित्रण ग्रामीण जनता की भाषा में किया गया है। लेखक ने उपन्यास की भूमिका में यह संकेत दिया है कि ठेठ से ठेठ देहाती या अनपढ़ - गँवार, निरक्षर हलवाए और मज़दूर भी बड़ी आसानी से इसे समझ सकें। यह उपन्यास आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया है। शिशु चरित्र - भोलानाथ, इस उपन्यास का मुख्य पात्र है।
उपन्यास 'देहाती दुनिया' के संकलित अंश में अर्थात् कृतिका भाग - 2 (कक्षा 10 'ए' पाठ्यक्रम के लिए हिंदी की पूरक पाठ्यपुस्तक) के पाठ - 1 'माता का अँचल' में लेखक शिवपूजन सहाय जी ने ग्रामीण अंचल और उसके चरित्रों का एक अनोखा चित्र प्रस्तुत किया है। बालकों के खेल, कौतूहल, माँ की ममता, पिता का दुलार, लोकगीत आदि अनेक प्रसंग इसमें शामिल हैं। शहर की चकाचौंध से दूर गाँव की सहजता को लेखक ने आत्मीयता से प्रस्तुत किया है। यहाँ बाल मनोभावों की अभिव्यक्ति करते-करते लेखक ने तत्कालीन (उस समय के) समाज के पारिवारिक परिवेश का चित्रण भी किया है।
पाठ 'माता का अँचल' में माता-पिता का अपने बच्चे के लिए गहरा प्रेम व्यक्त किया गया है। लेखक ने अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए अपने माता-पिता और अपने साथियों के साथ जुड़ी बातों का भावनापूर्ण चित्रण किया है।
बचपन में लेखक को अपने पिता का भरपूर साथ और प्यार मिला - लेखक शिवपूजन सहाय जी के बचपन का नाम तारकेश्वरनाथ था लेकिन उनके पिताजी उन्हें बड़े प्यार से 'भोलानाथ' कहकर पुकारते थे। भोलानाथ भी अपने पिता जी को 'बाबू जी' और माता को 'मइयाँ' कहकर पुकारा करते। भोलानाथ का अधिक समय अपने पिता जी के साथ ही बीतता था। माता से केवल दूध पीने का नाता था। भोलानाथ के पिता जी सुबह उठकर नहा-धोकर पूजा के लिए बैठ जाते। भोलानाथ भी पिता जी के साथ ही बैठक में सोया करते इसलिए पिता जी जब उठते तब भोलानाथ को भी उठा देते और नहला-धुलाकर पूजा पर बिठा देते। भोला के ज़िद करने पर पिता जी उनके चौड़े माथे पर त्रिपुंड तिलक (माथे पर तीन आड़ी या अर्धचंद्राकार रेखाएँ ) लगा देते। सिर पर लंबी-लंबी जटाएँ थीं। भोला बम-भोला बन जाते। जब बाबू जी रामायण का पाठ करते, तब भोलानाथ उनके पास बैठकर शीशे में अपना मुँह निहारा करते थे। जब बाबू जी उन्हें देखते तो वे शरमाकर और मुस्कराकर शीशा नीचे रख देते। उनकी इस बात पर पिता जी भी मुस्कराने लगते।
~ ऊपर दिए गए अंश के आधार पर निम्नलिखित मुख्य बिंदु सामने आते हैं -
1. भोलानाथ का अधिक समय अपने पिताजी के साथ ही बीतता था। दोनों को एक - दूसरे का साथ अच्छा लगता था।
2. भोलानाथ के पिताजी नियम से पूजा-पाठ किया करते थे और पिता के साथ के कारण भोलानाथ में भी पूजा करने के संस्कार बचपन में ही पड़ गए थे।
3. भोलानाथ का ज़िद्द करना, गलती पकड़े जाने पर शरमाना आदि के माध्यम से छोटे बच्चों की (बाल-सुलभ) क्रीड़ाओं का चित्रण किया गया है।
पिताजी का अपने रोज़ के धार्मिक कार्यों में भोलानाथ को हमेशा अपने साथ रखना - पूजा-पाठ के बाद पिता जी हज़ार बार राम-नाम लिखकर उसे पाठ करने की पोथी के साथ बाँधकर रख देते। पाँच सौ बार कागज़ के छोटे-छोटे टुकड़ों पर राम-नाम लिखकर उन्हें आटे की गोलियों पर लपेट कर पिताजी गंगा जी की ओर जाते। भोलानाथ भी उनके कंधे पर विराजमान रहते। जब बाबू जी गंगा जी में मछलियों को खिलाने के लिए एक-एक गोली फेंकते, तब भोलानाथ कंधे पर बैठे-बैठे ही हँसा करते। लौटते समय बाबू जी उन्हें पेड़ों की डालों पर बिठाकर झूला झुलाते थे।
~ ऊपर दिए गए अंश के आधार पर निम्नलिखित मुख्य बिंदु सामने आते हैं -
1. भोलानाथ के पिताजी बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे।
2. भोलानाथ के पिताजी भोलानाथ से बहुत प्यार करते थे।
3. मछलियों को आटा खिलाने के समय भोलानाथ को अपने साथ रखने और पेड़ों पर झूला झुलाने के पीछे बाबूजी का उद्देश्य था कि भोलानाथ पेड़ - पौधों और जीव - जंतुओं के प्रति संवेदनशील बने।
पिताजी के साथ कुश्ती लड़ना - कभी-कभी बाबू जी भोलानाथ से कुश्ती भी लड़ते। वे जान-बूझकर अपने-आप को कमज़ोर दिखाकर हार जाते और भोलानाथ का आत्मविश्वास बढ़ाते। जब बाबू जी पीठ के बल लेट जाते तो भोला उनकी छाती पर चढ़कर उनकी लंबी-लंबी मूँछें उखाड़ने लगते। वे हँसते हुए उसके हाथों को चूम लेते थे। जब वे भोला से खट्टा और मीठा चुम्मा माँगते, तब भोला बारी-बारी से अपना बायाँ तथा दायाँ गाल उनके मुँह की ओर कर देते। बाएँ का खट्टा तथा दाएँ का मीठा चुम्मा लेने लगते, तब पिताजी अपनी दाढ़ी और मूँछ भोला के कोमल गालों पर गड़ा देते थे। भोला झुँझलाकर उनकी मूँछें नोचने लग जाते थे। बाबू जी बनावटी रोना रोने लगते, तब भोला खिल-खिलाकर हँसने लग जाते।
~ ऊपर दिए गए अंश के आधार पर निम्नलिखित मुख्य बिंदु सामने आते हैं -
1. माता-पिता अपने बच्चों के प्रति वात्सल्य (माता-पिता का प्रेम) के कारण खेल में जान-बूझकर अपने बच्चों को खुश करने के लिए उनसे हारने में भी खुश होते हैं। ऐसा करके वे अपने बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाने का प्रयास करते हैं।
2. अपने बच्चों की खुशी को ही माता-पिता अपनी खुशी मानते हैं।
माता-पिता द्वारा भोलानाथ को बड़े प्यार से खाना खिलाना - जब भोलानाथ बाबू जी के साथ घर आते, तब खाना खाने बैठते। बाबू जी अपने हाथों से भोलानाथ को गौरस (दूध) और भात (चावल) मिलाकर खिलाते। छोटे बच्चों का पेट जल्दी भर जाता है इसलिए भोलानाथ की माता को पिताजी के खिलाने पर संतोष नहीं होता। उन्हें लगता कि भोला ने कम खाया है। वे पिताजी से कहतीं, आप खिलाने का ढंग नहीं जानते और स्वयं भोलानाथ को खिलाते हुए कहतीं कि जब बच्चा बड़े-बड़े कौर खाएगा, तब दुनिया में स्थान पाएगा। माँ के हाथ से खाने पर बच्चों का पेट भरता है। माँ तोता, मैना, कबूतर, हंस, मोर आदि के बनावटी नाम से कौर बनाकर यह कहते हुए खिलाती जातीं कि जल्दी खा लो, नहीं तो उड़ जाएँगे। भोलानाथ जल्दी - से खा लेते। खाना खा लेने के बाद भोलानाथ को खेलने के लिए भेज दिया जाता। भोलानाथ उछल-कूद करते हुए लकड़ी का घोड़ा लेकर नंग-धड़ंग बाहर गली में निकल जाते।
~ ऊपर दिए गए अंश के आधार पर निम्नलिखित मुख्य बिंदु सामने आते हैं -
1. माता-पिता अपने बच्चों के भोजन कराने के लिए बहुत जतन करते हैं। उन्हें अपने हाथों से भोजन कराने में उन्हें आनंद और संतुष्टि मिलती है।
माँ द्वारा भोलानाथ के सिर पर तेल लगाना - कभी-कभी भोलानाथ की माँ उन्हें ज़बरदस्ती पकड़कर भोलानाथ के सिर पर बहुत सारा सरसों का तेल लगा देतीं। इस पर भोलानाथ रोने लगते। बाबू जी माँ पर बिगड़ते, पर वे सिर को तेल से सराबोर करके ही छोड़तीं। फिर भोलानाथ की नाभि और माथे पर काजल की बिंदी लगाकर चोटी गूँथती और उसमें फूलदार लट्टू बाँधकर रंगीन कुरता-टोपी पहना देतीं, तब भोला 'कन्हैया' बनकर बाबू जी की गोद में सिसकते - सिसकते बाहर आते। बाहर आकर भोलानाथ अपने साथियों को देखते ही सिसकना भूल जाते और बाबू जी को गोद से उतरकर अपने साथियों से जा मिलते और सब मिलकर खूब मौज-मस्ती और तमाशे करते। इन तमाशों में तरह-तरह के नाटक खेले जाते थे।
~ ऊपर दिए गए अंश के आधार पर निम्नलिखित मुख्य बिंदु सामने आते हैं -
1. हर माँ की तरह भोलानाथ की माँ भी भोलानाथ के बालों और कपड़ों का ध्यान रखती थीं। भोलानाथ को बुरी नज़र से बचाने के लिए भोलानाथ की नाभि और माथे पर काजल का काला टीका लगाती थी।
2. सभी बच्चों की तरह भोलानाथ भी अपने मित्रों और साथियों को देखकर रोना भूल जाते और खूब मौज-मस्ती करते।
भोलानाथ और उनकी मित्र मंडली द्वारा बचपन में खेले गए तमाशे / नाटक और भोलानाथ के बाबूजी का उनमें उत्साह और प्रेम से भाग लेना -
(1) मिठाई की दुकान - चबूतरे का एक कोना नाटक-घर बनता था। बाबू जी जिस छोटी चौकी पर बैठकर नहाते थे, वही रंगमंच (stage) बनता। उसी पर सरकंडे (तिनकों) के खंभों पर कागज़ का छोटा शामियाना (तंबू) लगाकर मिठाइयों की दुकान बनाई जाती। चिलम के खोंचे पर तो कभी कपड़े को थाल बनाकर उसमें ढेले (मिट्टी) के लड्डू, पत्तों की पूरी-कचौरियाँ, गीली मिट्टी की जलेबियों तथा टूटे-फूटे हुए घड़े के टुकड़ों के बताशे आदि मिठाइयाँ सजाई जातीं।टूटे हुए मिट्टी के बर्तनों के बाट (चीजें तोलने के काम में आने वाले पत्थर) और जस्ते के छोटे-छोटे टुकड़ों के पैसे बनते। बच्चे ही दुकानदार बनते और खरीदार भी। बाबू जी भी उनके खेल में भाग लेते और खुश होते।
(2) घरौंदा (घर) बनाना - थोड़ी देर बाद बच्चे मिठाई की दुकान बंद कर घरौंदा बनाने लगते। मिट्टी की दीवार और तिनकों का छप्पर। दातुन के खंभे, माचिस की खाली डिब्बियों के दरवाज़े , घड़े के मुँहड़े की चूल्हा-चक्की, दीये की कड़ाही और बाबू जी की पूजा वाली आचमनी (छोटे चम्मच के आकार का आचमन करने का पात्र) कलछी बन जाती। पानी के घी, मिट्टी का आटा और रेत की चीनी से वे बच्चे दावत (पकवान) तैयार करते और वे बच्चे स्वयं ही दावत खाने बैठते। जब बच्चे लाइन बनाकर बैठते, तब बाबू जी अंतिम सिरे पर भोजन करने के लिए बैठ जाते थे। बाबू जी को देखते ही बच्चे हँसकर घरौंदा तोड़कर भाग जाते। बाबू जी भी खूब हँसते और पूछने लगते-"फिर कब भोज होगा भोलानाथ?"
(3) बरात का जुलूस - कभी-कभी बच्चे बरात का भी जुलूस निकालते थे। कनस्तर का तंबूरा (एक प्रकार का बाजा) बजाते, आम के उगते हुए पौधे को घिसकर शहनाई बजाई जाती, टूटी चूहेदानी की पालकी बनाते, भोलानाथ समधी बनकर बकरे पर चढ़ते। बरात एक कोने से चलकर दूसरे कोने तक पहुँचती। लकड़ियों की पटरियों से घिरे, गोबर से लिपे, आम और केले की टहनियों से सजाए हुए छोटे-से आँगन में लोटा रखा होता। वहीं पहुँचकर बरात वापस लौट आती। लौटते समय खाट (चारपाई) पर लाल कपड़ा डालकर उसमें दुल्हन को बिठा कर वापस लाया जाता। लौटते समय बाबू जी जैसे ही लाल कपड़ा उठाकर दुलहिन का मुँह देखने लगते, सभी बच्चे हँसकर भाग जाते।
(4) खेती करना - थोड़े समय के बाद फिर लड़कों की मंडली इकट्ठी हो जाती। सब सलाह करते कि खेती की जाए। चबूतरे को खेत मान लिया जाता और कंकड़ों को बीज। दो लड़कों को बैल बनाकर बड़ी मेहनत से खेत जोते और बोए जाते। जल्दी से फसल तैयार हो जाती और बच्चे उसकी कटाई भी शुरू कर देते। काटते समय वे गाते थे- 'ऊँच नीच में बई कियारी, जो उपजी सो भई हमारी।' फसल को एक तरफ़ रखकर उसे पैरों से रौंद डालते। कसोरे (मिट्टी का बड़ा कटोरा) का सूप बनाकर ओसाते (अनाज से भूसे को अलग करना)। उसके बाद मिट्टी के दीये के तराजू पर अनाज को तोलकर राशि (पैसे) का अनुमान तैयार कर लेते। इसी बीच बाबू जी आकर पूछते कि इस साल की खेती कैसी रही ? जैसे ही बाबू जी पूछते, वैसे ही सभी लड़के उस झूठ-मूठ के खेत-खलिहान को छोड़कर हँसते हुए भाग जाते।
जब बच्चे झूठ-मूठ के खेल खेला करते, तब वहाँ से होकर गुज़रने वाले यात्री भी हैरान होकर रुक जाते और उनका तमाशा देखकर उसका मज़ा लेने लगते।
~ ऊपर दिए गए अंश के आधार पर निम्नलिखित मुख्य बिंदु सामने आते हैं -
1. गाँव के बच्चों के खेल-तमाशे असली जीवन से जुड़े होते थे। वे अपने वास्तविक जीवन में अपने आसपास जो कुछ भी देखते थे, उसी के आधार पर अपने खेल बना लेते थे, जो जाने-अनजाने उन्हें वास्तविक जीवन को समझने में सहायक होते थे।
2. खेल की सामग्री अधिकतर टूटे-फूटे बरतनों और बेकार सामान से तैयार की जाती थी।
3. भोलानाथ के पिता जी, भोलानाथ से इतना प्रेम करते थे कि उन्हें बच्चों के साथ खेल में शामिल होने में आनंद मिलता था।
बचपन की अन्य यादें और शरारतें -
(1) बच्चे जब ददरी के मेले में जाने वाले आदमियों का झुँड देखते तो वे सभी उछल-कूद कर चिल्लाने लगते- 'चलो भाइयो ददरी, सातू पिसान की मोटरी।
(2) जब कभी बच्चे किसी दूल्हे के आगे-आगे जाती हुई, पर्दे से ढकी हुई पालकी देखते तो खूब ज़ोर से चिल्लाने लगते- 'रहरी (अरहर) में रहरी पुरान रहरी, डोला के कनिया हमार मेहरी (डोली में तो मेरी पत्नी है)' मज़ाक - मज़ाक में यही बोलने पर एक बार बूढ़े दूल्हे ने उन्हें ढेलों से मारकर दूर तक खदेड़ा था। उसके घोड़े जैसे मुँह को देखकर भोलानाथ को हैरानी होती कि ससुर ने कैसा दामाद ढूँढ़ा है!
(3) कभी-कभी जब खूब आँधी आती थीं तब सभी लड़के बाग की ओर दौड़ पड़ते। वहाँ चुन-चुन गोपी आम खाते थे। एक दिन जोरों से आँधी आई। आकाश काले बादलों से ढक गया। बादल गरजने लगे, बिजली चमकने लगी, ठंडी हवा चलने लगी। सब लड़के चिल्लाने लगे - 'एक पइसा की लाई, बाज़ार में छितराई, बरखा उधरे बिलाई।' परंतु वर्षा नहीं रुकी, बल्कि और तेज़ हो गई। सभी लड़के पेड़ की जड़ से चिपक कर खड़े हो गए, जैसे कुत्ते के कान में छोटे कीड़े चिपके रहते हैं। वर्षा बंद होते ही बाग में बहुत-से बिच्छू नज़र आए। सभी डरकर भागने लगे। उन लड़कों में बैजू बड़ा ढीठ था। अचानक रास्ते में बूढ़े मूसन तिवारी मिल गए। उन्हें कम दिखता था। बच्चों ने उन्हें चिढ़ाया-'बुढ़वा बेईमान माँगे करेला का चोखा ।' (बुड़वा बेईमान माँगे करेला का चोखा एक प्रसिद्ध भोजपुरी गाना है जो एक ऐसे व्यक्ति की ओर संकेत करता है जो चाहता तो है करेले का चोखा नामक स्वादिष्ट व्यंजन लेकिन वह इसके लायक नहीं है। यह गीत ऐसे लोगों का मज़ाक बनाने के लिए बनाया गया है जो कि अक्सर उन चीजों की माँग करते हैं जिनके वे हकदार नहीं हैं।) सभी लड़कों ने बैजू के सुर-से-सुर मिलाकर चिल्लाना शुरू कर दिया। तिवारी जी ने लड़कों को डाँट कर भगाया तो सभी अपने-अपने घर तेज़ी से भागे। जब तिवारी जी को कोई लड़का न मिला तो उन्होंने पाठशाला जाकर मास्टर जी से बैजू और भोलानाथ की शिकायत कर दी। इस पर गुरुजी ने चार लड़कों को भोलानाथ और बैजू को पकड़ कर लाने के लिए उनके घर भेजा। बैजू तो भाग गया भोलानाथ लड़कों द्वारा पकड़ लिए गए। गुरु जी ने भोलानाथ की खूब पिटाई की । जैसे ही बाबू जी को पता चला, वैसे ही वह दौड़ते हुए पाठशाला पहुँचे। वह भोलानाथ को गोदी में उठाकर चुप कराने लगे लेकिन भोलानाथ चुप ही नहीं हुए। बाबूजी ने गुरु जी से प्रार्थना की और भोलानाथ को घर ले आए। रास्ते में लड़कों का झुंड मिला, जो ज़ोर से गा रहा था- 'माई पकाई गरर गरर पूआ, हम खाइब पूआ, ना खेलब जुआ।' लड़कों को नाचते देख भोलानाथ ज़िद करके बाबू जी की गोद से उतर गए और लड़कों की मंडली में जाकर शामिल हो गए। सब लड़के मक्की के खेत में दौड़ पड़े। वहाँ चिड़ियों का झुंड चर रहा था। वे दौड़-दौड़ कर चिड़ियों को पकड़ने लगे, पर एक भी हाथ न लगी। भोलानाथ खेत से अलग खड़े होकर गा रहे थे-'राम जी की चिरई (चिड़िया) , राम जी का खेत, खा लो चिरई, भर-भर पेट।' कुछ ही दूरी पर बाबू जी और गाँव के कई आदमी खड़े तमाशा देख रहे थे और हँस कर कह रहे थे कि 'चिड़िया की जान जाए, लड़कों का खिलौना'। लोग सच ही कहते हैं,' लड़के और बंदर पराई पीर नहीं समझते।' (लड़कों की शरारत के कारण चिड़ियाँ दाना नहीं खा पा रही थी। लेकिन लड़के इस बात से बेखबर, उन्हें उड़ा - उड़ाकर आनंद ले रहे थे। इसलिए लोगों ने उन्हें देखकर कहा कि लड़के और बंदर अपने चंचल स्वभाव के कारण दूसरों के दुख को नहीं समझते।)
~ ऊपर दिए गए अंश के आधार पर निम्नलिखित मुख्य बिंदु सामने आते हैं -
1. गाँव के बच्चे हँसी-खेल में तुकबंदी करते हैं। यह ग्रामीण संस्कृति के प्रभाव के कारण है। हिंदी भाषा में अनेक मुहावरे और लोकोक्तियाँ गाँव अथवा लोक जीवन की ही देन हैं।
2. भोलानाथ के बाबू जी उसे गुरु जी की मार से बचाने के लिए, गुरु जी से विनती करने पाठशाला पहुँच जाते हैं। सभी माता-पिता अपने बच्चे पर किसी भी तरह का संकट आने पर परेशान हो जाते हैं।
3. मित्रों की मंडली को देखकर भोलानाथ गुरु जी की मार भी भूल जाता है।
भोलानाथ को मँहगी पड़ी शरारत - एक बार सभी लड़के टीले पर चढ़कर चूहों के बिल में पानी डालने लगे। नीचे से ऊपर पानी फेंकने के कारण सभी थक गए थे। बिल में से चूहे तो नहीं निकले लेकिन गणेश जी के चूहों की रक्षा के लिए शिव जी का साँप निकल आया। साँप को देखते ही सभी बच्चे डर कर भागने लगे। किसी के सिर पर चोट लगी तो किसी के दाँत टूटे। भोलानाथ का सारा शरीर लहूलुहान हो गया। काँटे लगने से पैर छलनी हो गए। वे रोते चिल्लाते हुए घर में घुसे। उस समय बाबू जी बैठक के बरामदे में बैठे हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे। उनके बार-बार पुकारने पर भी भोलानाथ उनकी पुकार को अनसुनी कर अपनी माँ की गोद में छिप गए।
माँ चावल साफ़ कर रही थीं। डर से काँपते हुए भोलानाथ को देखकर माँ घबरा गई । माँ ने भोलानाथ के घावों की धूल को साफ़ करके उनपर हल्दी का लेप लगाया। भोलानाथ बहुत डर गए थे और घबराए हुए थे। भोलानाथ की ऐसी हालत देखकर माँ रोती जा रही थी और भोलानाथ को बार - बार बड़े प्यार से गले लगा रही थीं। बाबूजी भोलानाथ को उसकी माँ की गोद से अपनी गोद में लेने लगे परंतु भोलानाथ ने अपनी माँ का प्रेम और शांति से भरा आँचल नहीं छोड़ा। भोलानाथ को उस समय पिता के मज़बूत बांहों के सहारे और दुलार के बजाय अपनी माँ का आँचल अधिक सुरक्षित और उन्हें राहत देने वाला लग रहा था।
~ ऊपर दिए गए अंश के आधार पर निम्नलिखित मुख्य बिंदु सामने आते हैं -
1. भोलानाथ का अपने पिताजी से अधिक जुड़ाव था लेकिन विपदा (मुसीबत) के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की गोद में स्वयं को अधिक सुरक्षित महसूस करता है।
2. उस समय उसके आतंकित (डरे हुए) मन को जिस प्रेम और कोमलता की आवश्यकता थी, वे उसे अपनी माता के आँचल में ही मिल सकता था।
पाठ्यपुस्तक में दिए गए प्रश्नों के उत्तर
(Textbook Question-Answers)
प्रश्न - अभ्यास
1. प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है?
उत्तर - पाठ 'ममता का अँचल' में भोलानाथ का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था। भोलानाथ के पिता उसे अत्यधिक प्रेम करते थे। एक दोस्त की तरह हमेशा भोलानाथ के साथ रहना उन्हें पसंद था और हर परेशानी से उन्हें बचाने के लिए भी वे तैयार रहते थे। फिर भी विपदा (कष्ट) के समय भोलानाथ पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है क्योंकि उस समय उसे पिता के साथ से अधिक माता के ममता भरे कोमल स्पर्श की आवश्यकता थी। जन्म से पहले और जन्म के बाद बच्चा अपनी माँ से भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है। माँ की गोद में बच्चा स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है। यही कारण है कि भोलानाथ अपने डर से मुक्ति पाने और माँ के प्यार की मरहम लगवाने के लिए प्यार करने वाले पिता के स्थान पर अपनी माँ के आँचल में शरण लेता है।
2. आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?
उत्तर - बच्चों को अपने साथियों का साथ अच्छा लगता है इसलिए उनकी संगति (साथ) में बच्चे अपना हर दुख भूल जाते हैं। बच्चों की इस स्वाभाविक आदत की तरह भोलानाथ को भी अपने अपने मित्रों का साथ पसंद था। उनके साथ अलग - अलग तरह के खेल - तमाशे करने में उसे बहुत मज़ा आता था। अपने मित्रों को मौज - मस्ती से भरपूर खेल खेलते देख भोलानाथ स्वयं को रोक नहीं पाता था और रोना भूलकर उनके साथ खेलने लगता था। बच्चे अपने साथियों के सामने स्वयं को मज़बूत दिखाना चाहते हैं। रोने से वे कमज़ोर दिखेंगे और साथ ही उन्हें लज्जा का अनुभव होगा। भोलानाथ भी शायद इन्हीं कारणों से अपने साथियों को देखकर सिसकना बंद करके उनके साथ खेलने लग जाता था।
3. आपने देखा होगा कि भोलानाथ और उसके साथी जब-तब खेलते-खाते समय किसी न किसी प्रकार की तुकबंदी करते हैं। आपको यदि अपने खेलों आदि से जुड़ी तुकबंदी याद हो तो लिखिए।
उत्तर - (i) अक्कड़ – बक्कड़ बम्बे बो,
अस्सी नब्बे पूरे सौ।
सौ में लगा धागा,
चोरी निकल कर भागा।....
(ii) आस पास पूरे पाँच, नदी किनारे काला साँप।
लाओ लाठी, मारो साँप।....
4. भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर - भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री हमारे खेल और खेलने की सामग्री से बिल्कुल भिन्न हैं -
(i) भोलानाथ और उसके साथी दुकान लगाना, घर बनाना, खेती करना आदि खेल खेला करते थे जिसमें सरकंडे, मिट्टी के टूटे-फूटे बर्तन, पत्थर, पेड़ों के पत्ते, गीली मिट्टी, घर का बेकार सामान आदि वस्तुएँ होती थी जिनसे वह खेलते व खुश होते। हम साइकिल चलाना, क्रिकेट, बैडमिंटन, कंप्यूटर और मोबाइल फोन पर खेल खेलते हैं।
हमारे खेलने के लिए क्रिकेट का सामान, भिन्न-भिन्न तरह के वीडियो गेम व कम्प्यूटर गेम आदि बहुत सी चीज़ें हैं जो इनकी तुलना में बहुत अलग हैं।
(ii) भोलानाथ और उसके साथियों के खेल की सामग्री प्राकृतिक होती थी, अधिकतर अपने आसपास आसानी से मिलने वाले बेकार सामान से बनी होती थी और बहुत सस्ती होती थी।
हमारी खेल - सामग्री उनसे अलग है। बैट - बॉल, फुटबॉल आदि खेल सामग्री महंगी होती है जिसे बाज़ार से खरीदना पड़ता है।
(iii) भोलानाथ और उसके साथी, अपने सभी खेल समूह में खेला करते थे। समूह में खेलने से उनमें बचपन से ही सामाजिक व्यवहार के गुण विकसित होने लगते हैं लेकिन हम कंप्यूटर और मोबाइल फोन पर अकेले भी खेल सकते हैं।
(iv) भोलानाथ और उसके साथियों के खेल में समय सीमा का कोई महत्त्व नहीं था। वे आज़ादी से दिन में घंटों खेला करते थे परंतु हमें पढ़ाई, स्कूल और होमवर्क (गृहकार्य) के साथ खेल का निश्चित समय ही मिलता है। साथ ही खेलों में भी खेलने की समय-सीमा भी तय कर ली जाती है।
5. पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों?
उत्तर - (i) पिता का बच्चों के साथ हर खेल में शामिल होना और जानबूझकर स्वयं हार जाना और
इस प्रकार भोलानाथ के विश्वास को बढ़ावा देना।
(ii) माँ का पक्षियों के नाम ले-लेकर भोलानाथ को कौर (भोजन) खिलाना। हर कौर खिलाने
से पहले कहना "जल्दी खा लो, नहीं तो उड़ जाएँगे।"
(iii) पिताजी का पाठशाला दौड़ कर आना और गुरु जी से विनती करके भोलानाथ को गुरुजी की मार से बचाकर ले आना।
(iv) पाठ के अंत में भोलानाथ का साँप को देखकर डर जाना और उस भय से मुक्त होने के लिए अपनी माँ के आँचल में छिप जाना।
(छात्र कोई अन्य प्रसंग भी जोड़ सकते हैं।)
6. इस उपन्यास अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं।
उत्तर - आज के ग्रामीण जीवन में बहुत परिवर्तन आ गया है। अब गाँवों में धीरे-धीरे आधुनिक सुविधाएँ पहुँच रही हैं। शिक्षा पर ज़ोर दिया जाता है। अब स्त्रियाँ अपने अधिकारों और शिक्षा के लिए पहले के स्थान पर अधिक सजग हैं। बच्चे बेकार चीज़ों से खेलने के स्थान पर अन्य उपकरणों से खेलते हैं। वर्तमान समय में विज्ञान के प्रभाव से ग्रामीण जीवन में बिजली, पानी ,सड़क और खेती के साधनों में भी सुधार आया है। साथ ही गाँवों में अब शहरी प्रभाव दिखाई देता है। पहले गाँवों में संयुक्त परिवार (joint family) होते थे परंतु केवल खेती से अधिक पैसा प्राप्त न होने के कारण गाँव के लोग काम की तलाश में शहर आते हैं इस कारणआज एकल संस्कृति (nuclear family) ने जन्म लिया है। पहले गाँव में लोग बहुत ही सीधा-सादा जीवन व्यतीत करते थे। आज बनावटीपन देखने को मिलता है। गाँव के लोग शहरी चमक - दमक से प्रभावित रहते हैं। अब गाँव का जीवन पहले के समान सरल नहीं रह गया है।
7. पाठ पढ़ते-पढ़ते आपको भी अपने माता-पिता का लाड़-प्यार याद आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओं को डायरी में अंकित कीजिए।
उत्तर - छात्र स्वयं करें।
8. यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर - पाठ माता का अँचल में माता-पिता के वात्सल्य का हृदयस्पर्शी वर्णन मिलता है। पाठ का आरंभ ही लेखक और उनके पिताजी की दिनचर्या से होता है। पिताजी प्रेमवश भोलानाथ को अपने साथ सुलाते, सुबह उठाकर उसे नहलाते, पूजा में अपने साथ बिठाते, जहाँ जाते उसे अपने साथ ले जाते थे। भोलानाथ के साथ खेलते और उसके खेल - तमाशों में बड़ी रुचि से भाग लेते थे। पिताजी को जब पता चलता है कि भोलानाथ की शरारत पर गुरुजी ने उसे दंड देने के लिए पाठशाला बुलाया है तब पिताजी भी दौड़ते हुए पाठशाला जाते हैं और गुरुजी से विनती करके भोलानाथ को उनके दंड से बचा लाते हैं। जब भोलानाथ साँप से डरकर भागते हुए घर में घुसता है तब पिताजी हुक्का छोड़कर दौड़ते हुए उसे अपनी गोद में लेने के लिए बेचैन हो जाते हैं।
माता के मन में भी भोलानाथ के लिए बहुत ममता है। सभी माताओं के समान वे भी भोलानाथ के भोजन आदि विषयों के प्रति सजग रहती हैं। पेट भरा होने पर भी वे भोलानाथ को पक्षियों के नाम ले-लेकर खाना खिलाती हैं। बुरी नज़र से बचाने के लिए काजल की बिंदी लगाती हैं। खूब सारा तेल लगाकर बालों की चोटी गूंथकर उसपर फूलदार लट्टू बाँधकर उसे कन्हैया के जैसा सुंदर बनाती हैं। चोट लगने पर हल्दी लगाती हैं। भोलानाथ के चोट लगने पर वे स्वयं भी रोती हैं। भयभीत भोलानाथ भी माँ का कोमल स्पर्श और प्रेम पाकर माता के आँचल में स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है।
9. माता का अँचल शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाइए।
उत्तर - पाठ में माता-पिता दोनों के ही प्रेम का बहुत ही सुंदर चित्रण किया गया है। लेखक ने जहाँ अपने पिता द्वारा उन्हें सुलाने, नहलाने, अपने कंधों पर बैठाकर घुमाने का वर्णन किया है, वहीं माता द्वारा अपने लाडले को बड़े प्रयास से भोजन कराने, उसे तेल लगाकर, अच्छे - अच्छे कपड़े पहनाकर बुरी नज़र से बचाने के लिए काला टीका लगाने का भी वर्णन किया है। परंतु जब बात पाठ के शीर्षक की आती है तब वह केवल माता के स्नेह को महत्त्व देने वाला प्रतीत होता है। ऐसा लगता है कि लेखक ने अपनी माता और पिताजी के बीच पक्षपात (Partiality) किया है। पाठ के अंत तक पहुँचते ही यह पता चलता है कि वास्तव में लेखक ने बहुत ही उपयुक्त शीर्षक रखा है। भोलानाथ जब साँप से डरकर घर आता है तब वह अपनी माता की गोद में छिप जाता है। उसके अशांत और भयभीत मन को जिस प्रेम, शांति और सुरक्षा की आवश्यकता थी उसे वह अपनी माता के आँचल में ही मिलती है। भोलानाथ को डर से काँपते देखकर माँ का उसके अंगों को अपने आँचल से पोंछना, उसे चूमना, घावों पर हल्दी का लेप लगाना, भोलानाथ को ऐसी हालत में देखकर माँ का रोना और भोलानाथ को बार- बार गले से लगाना, जैसे भोलानाथ के घावों पर मरहम का काम कर रहे थे। बच्चों के लिए माँ की ममता का महत्त्व पिता के प्रेम से अधिक है इसलिए पाठ का शीर्षक 'माता का अँचल' उचित है।
यदि अन्य शीर्षक रखना हो तो 'मातृ छाया' / 'माँ की ममता' रखा जा सकता है।
10. बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं?
उत्तर - बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को अनेक तरह से अभिव्यक्त करते हैं-
(i) छोटे बच्चे अक्सर अपने माता-पिता को देखकर मुस्कुराते हैं और प्रेम के कारण ही उन्हें उठा लेने की ज़िद करते हैं।
(ii) माता-पिता के साथ अपनी और अपने मित्रों की बातें करके और माता-पिता के समय व्यतीत करके बच्चे उनके लिए अपना प्रेम प्रकट करते हैं।
(ii) अधिक प्यार जताते हुए बच्चे अपने पिता के कंधों पर सवार होकर घूमते हैं और माता की गोद में सिर रखकर सो जाते हैं।
(iv) अपने माता-पिता का कहना मान कर।
(v) अपने माता-पिता के काम में मदद करके और विशेष अवसरों पर उनके लिए कार्ड बनाकर या उपहार देकर भी बच्चे अपना प्रेम प्रकट करते हैं।
11. इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है?
उत्तर - हमारा बचपन पाठ में वर्णित बच्चों की दुनिया से पूरी तरह से भिन्न है-
(i) पाठ में बच्चे ग्रामीण संस्कृति के सरल माहौल में पले- बड़े हैं हम शहर के तेज़ गति वाले जीवन के आदी हैं।
(ii) पाठ में बच्चे प्रकृति और धूल-मिट्टी के बीच दिनभर खेलते रहते हैं। हम शहरी बच्चे प्रकृति से दूर, धूप, सर्दी और बारिश से अपने-आप को बचाते हुए बंद कमरों में मोबाइल या कंप्यूटर पर अनेक खेल खेलते हैं।
(ⅲ) पाठ में बच्चों के खेल और खेलने की सामग्री प्राकृतिक, सरल और सस्ती हैं। हमारे खेलों के अलग नियम हैं और उन्हें खेलने की सामग्री मानव द्वारा निर्मित और महँगी होती हैं।
(iv) पाठ में बच्चे समूह में खेलना पसंद करते हैं। हम अकेले रहकर भी मोबाइल आदि पर गेम्स खेलकर प्रसन्न रहते हैं।
(v) पाठ में बच्चों को माता-पिता का भरपूर प्यार और समय मिलता है। हमारे यहाँ माता-पिता दोनों अपने-आप काम पर जाते हैं जिस कारण हमें उनके साथ समय बिताने का अवसर बहुत कम मिलता है।
(vi) गाँव के बच्चों पर स्कूली शिक्षा का इतना दबाव नहीं दिया जाता। शहर में छोटी उम्र से ही बच्चों को स्कूल भेजा जाता है।
12. फणीश्वरनाथ रेणु और नागार्जुन की आँचलिक रचनाओं को पढ़िए।
उत्तर - छात्र अपनी रुचि के अनुसार इनके द्वारा रचित कोई भी रचना पढ़ें।
अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर
(Extra Questions /Important Questions. with Answers) -
1. लेखक का नाम भोलानाथ कैसे पड़ा?
उत्तर - लेखक का असली नाम तारकेश्वरनाथ था। तारकेश्वर के पिता स्वयं भोलेनाथ अर्थात् भगवान शिव के भक्त थे। जब लेखक अपने पिताजी के साथ पूजा में बैठते थे तब लेखक भभूत का तिलक लगाने की ज़िद करते थे। उनके पिताजी उनके माथे पर भभूत लगाकर और त्रिपुंड के आकार का तिलक लगा देते थे और लंबी जटाओं वाले बालक तारकेश्वरनाथ से 'बम - भोला' बन जाते। उनके पिताजी उन्हें बड़े प्यार से भोलानाथ कहकर पुकारा करते। । धीरे-धीरे सभी उन्हें भोलानाथ कहकर पुकारने लगे।
2. लेखक के पिता लेखक को पूजा में अपने साथ क्यों बैठाते थे?
उत्तर - भोलानाथ को पूजा में बैठाने के निम्न कारण हो सकते हैं-
(i) भोलानाथ से अधिक प्यार करते थे।
(ii) लेखक के पिता जी धार्मिक प्रवृत्ति के थे। उनकी यही इच्छा रही होगी कि भोलानाथ में भी ये गुण विकसित हों। ।
(iii) भोलानाथ पर हमेशा ईश्वर की कृपा रहे।
3. पाठ के आधार पर 'बाल-स्वभाव' का वर्णन कीजिए।
उत्तर - पाठ में दिखाया गया है कि बच्चे स्वभाव से चंचल होते हैं। वे दुख की स्थिति में अधिक देर तक नहीं रह पाते हैं । बच्चे अपने मन के अनुकूल स्थितियों को देख बड़े-से-बड़े दुख को भूलकर प्रसन्न हो जाते हैं। सिर पर माता द्वारा तेल लगाने पर भोलानाथ सिसकता है और गुरु जी द्वारा दंड देने पर रोता है परंतु जैसे ही वह अपने मित्रों की टोली देखता है, वह रोना बंद करके खेलने में ऐसे मस्त हो जाता है कि लगता ही नहीं की थोड़ी देर पहले कुछ हुआ हो। बच्चों को अलग - अलग खेल खेलना बहुत पसंद होता है। वे माता-पिता के प्रेम को पहचानते हैं। अत्यंत दुख की स्थिति में उन्हें केवल अपनी माता का साथ और उनकी गोद की आवश्यकता होती है।
4. 'माता का अँचल' पाठ में माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य प्रकट हुआ है, उससे बच्चे में किन-किन गुणों का विकास होता है ?
उत्तर - माता-पिता द्वारा बच्चे के प्रति प्रकट किए गए वात्सल्य से बच्चे में निम्नलिखित गुणों का विकास होता है -
(i) पारिवारिक जुड़ाव - माता-पिता द्वारा प्रकट किए गए वात्सल्य से बच्चे में परिवार के प्रति जुड़ाव बढ़ता है। उसकी यह भावना बढ़कर उसमें राष्ट्र से जुड़ाव उत्पन्न करती है।
(ii) अपने संस्कारों के प्रति विश्वास - माता-पिता का वात्सल्य बच्चे में माता-पिता और परिवार के सदस्यों के प्रति लगाव को बढ़ाता है साथ ही अपने संस्कारों के प्रति विश्वास को बढ़ाता है, जो बच्चों में जीवन मूल्यों को विकसित करने में सहायक होता है।
(iii) सामाजिक भावना का विकास - माता-पिता का वात्सल्य बच्चे में सामाजिक व राष्ट्रीय जुड़ाव की भावना को बढ़ाता है।
5. बाबू जी पूजा-पाठ के बाद भोलानाब को गंगा तट ले जाते तथा कई कामों में अपने साथ रखते। 'माता का अँचल' पाठ के आधार पर बताइए कि इससे भोलानाथ के किन-किन गुणों का विकास होगा?
उत्तर - बाबू जी द्वारा भोलानाथ को गंगा तट ले जाने तथा कई कामों में अपने साथ लगाए रखने से उसके निम्नलिखित गुणों का विकास होगा -
(i) जीव-जंतुओं से लगाव - गंगा जीमें मछलियों को आटे की गोलियाँ खिलाने से भोलानाथ में जीव-जंतुओं के प्रति लगाव और उनकी सुरक्षा की भावना विकसित होगी।
(ii) नदियों के प्रति आस्था भाव-भोलानाथ को पूजा के बाद गंगातट पर ले जाने से नदियों के प्रति आस्था का भाव पैदा होगा और वह उनके संरक्षण के प्रति सजग रहेगा।
(iii) पेड़-पौधों की महत्ता स्वीकारना बाबू जी द्वारा भोलानाथ को पेड़ की डाल पर बिठाकर झूला झुलाने से भोलानाथ में पेड़-पौधों के महत्त्व को समझेगा और प्रकृति के प्रति संवेदनशील होगा।
6. भोलानाथ और उसके साथियों के खेल, आज के खेल और खेल-सामग्री की अपेक्षा मूल्यों का विकास करने में अधिक समर्थ थे। 'माता का अँचल' पाठ के आयर पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - आज बच्चे अधिकांश खेल कमरों में रहकर अकेले खेलना चाहते हैं। इन खेलों में प्रयुक्त सामग्री मानव निर्मित (मशीनी) होती है। इसके विपरीत भोलानाथ के खेल खुले मैदानों में खेले जाते थे। इनमें पक्षियों को उड़ाना, खेती-बारी करना, बारात निकालना, भोज का प्रबंध करना आदि मुख्य थे। ये खेल साथियों के साथ खेले जाते थे, जिनसे सहभागिता, मेल-जोल (मित्रता) आदि मूल्य विकसित होते थे। इसके अलावा इन खेलों की सामग्री में प्राकृतिक वस्तुएँ शामिल होती थीं, जिनसे प्रकृति से जुड़ाव होता था।
Beautiful notes,very helpful 😍😍
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