NCERT Study Material for Class 10 Hindi Kshitij Chapter- 5. 1 'Yeh Danturit Muskan' (Explanation, Textbook Question-Answers and Extra Questions /Important Questions with Answers)
हमारे ब्लॉग में आपको NCERT पाठ्यक्रम के अंतर्गत कक्षा 10 (Course A) की हिंदी पुस्तक 'क्षितिज' के पाठ पर आधारित प्रश्नों के सटीक उत्तर स्पष्ट एवं सरल भाषा में प्राप्त होंगे। साथ ही काव्य - खंड के अंतर्गत निहित कविताओं एवं साखियों आदि की विस्तृत व्याख्या भी दी गई है।
यहाँ NCERT HINDI Class 10 के पाठ - 5. 1 'यह दंतुरित मुसकान' की व्याख्या दी जा रही है। इन पदों की व्याख्या पाठ की विषय-वस्तु को समझने में आपकी सहायता करेगी। इसे समझने के उपरांत आप पाठ से संबंधित किसी भी प्रश्न का उत्तर सरलता से दे सकेंगे। आपकी सहायता के लिए पाठ्यपुस्तक में दिए गए प्रश्नों के उत्तर (Textbook Question-Answers) एवं अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर (Extra Questions /Important Questions with Answers) भी दिए गए हैं। आशा है यह सामग्री आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
पाठ परिचय
'यह दंतुरित मुसकान' कविता में कवि नागार्जुन ने छह से आठ महीने छोटे बच्चे की मनोहारी मुसकान का वात्सल्य से भरा (माता-पिता का अपने बच्चों के लिए प्रेम) वर्णन किया है। कवि लंबे समय से कहीं बाहर थे और अब घर लौटकर अपने बच्चे को देख रहे हैं। उसकी छोटे-छोटे दाँतों वाली मुसकान को देखकर कवि ने अनेक बिंबों (उदाहरणों) के माध्यम से उसकी सुंदरता का वर्णन किया है। कवि का मानना है कि इस सुंदरता में ही जीवन का संदेश है।
यह दंतुरित मुसकान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
शब्दार्थ -
दंतुरित - बच्चों के नए - नए दाँत
मृतक - मरा हुआ
जान - प्राण, जीवन
व्याख्या -
कवि अपने छोटे से बच्चे को संबोधित करते हुए कहते हैं कि तुम्हारे छोटे-छोटे दाँतों वाली मुस्कान इतनी मनमोहन, इतनी प्यारी है कि वह मृतक अर्थात् मरे हुए व्यक्ति के शरीर में भी जान डाल सकती है।
भाव यह है कि शिशु के नए दाँतों वाली सुंदर मुस्कान थके - हारे, निराश व्यक्ति के मन में भी उत्साह और जीवन जीने की शक्ति को भरने वाली है। शिशु को मुस्कुराते देखकर उदास व्यक्ति भी हँसने और मुस्कुराने के लिए विवश हो जाता है। छोटे बच्चे की दाँतों वाली मुस्कान वास्तव में जीवन जीने का संदेश देती है।
धूलि - धूसर तुम्हारे ये गात...
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल?
शब्दार्थ -
धूलि - धूल
धूसर - सना हुआ, लिपटा या भरा हुआ
गात - शरीर
जलजात - कमल का फूल
परस - स्पर्श
पाषाण - पत्थर
व्याख्या -
धूल से सना हुआ तुम्हारा शरीर देखकर मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि तालाब को छोड़कर मुझ निर्धन (गरीब) की झोपड़ी में कमल के फूल खिल उठे हैं। इस पंक्ति के द्वारा कवि (नागार्जुन जी) यह बताना चाह रहे हैं कि बच्चा कमल के फूल के समान कोमल और सुंदर है।
कवि को ऐसा लगता है कि वह तालाब जिसमें तुम अब तक रह रहे थे वह शायद पत्थर का होगा जो तुम्हारे स्पर्श (छूने) से, पिघल कर जल बन गया होगा। कहने का अर्थ यह है कि उस छोटे से बच्चों का स्पर्श पाकर कठोर से कठोर भावहीन हृदय में भी भावों का संचार हो सकता है। उस बच्चे की मुस्कान और स्पर्श इतने चमत्कारी हैं कि भावहीन व्यक्ति के मन में भी भाव जाग उठते हैं।
कवि कहते हैं कि छल रहित, प्यारी - सी मुस्कान वाले कोमल बच्चे को छू लेने से बाँस या बबूल के पेड़ों से भी शेफालिका के फूल झड़ने लगते हैं। कहने का भाव यह है कि बच्चे के स्पर्श मात्र से भावहीन, कठोर व्यक्ति भी मुस्कुराने लगता है।
# इस काव्यांश में कवि ने छोटे बच्चे के दाँतों वाली मुस्कान की सुंदरता को अनेक बिंबों (उदाहरणों) के माध्यम से व्यक्त किया है।
# कवि ने यहाँ बाँस या बबूल जैसे कठोर पेड़ों का प्रयोग भावहीन कठोर व्यक्ति के लिए किया है और बच्चे को छू लेने से उनके चेहरे पर आई मुस्कान को शेफालिका के फूलों के समान पवित्र बताया है।
तुम मुझे पाए नहीं पहचान?
देखते ही रहोगे अनिमेष
थक गए हो?
आँख लूँ मैं फेर?
शब्दार्थ -
अनिमेष - अपलक, बिना पलक झपकाए लगातार देखना
व्याख्या -
बच्चा कवि को पहचान न पाने के कारण अपलक (बिना पलकें झपकाए) देख रहा है। वह कवि को पहचानने की कोशिश कर रहा है। कवि बच्चे को इस प्रकार देखकर उससे पूछते हैं कि क्या तुम मुझे पहचान नहीं पा रहे हो, जो अपलक मुझे देखते ही जा रहे हो ? फिर कवि कहते हैं कि तुम मुझे इस प्रकार लगातार देखते हुए थक गए होंगे। तुम्हारी सुविधा के लिए क्या मैं आँखें फेर लूँ अर्थात् क्या मैं दूसरी तरफ़ देखने लग जाऊँ ?
क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार?
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख
मैं न सकता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
शब्दार्थ -
परिचित - जान - पहचान होना
चिर - लंबे समय तक
प्रवासी - बाहर रहने वाला
इतर - दूसरा
व्याख्या -
कवि नागार्जुन अक्सर देश-विदेश की यात्राएँ करते रहते हैं इसलिए उन्होंने स्वयं को चिर प्रवासी कहा है। एक लंबी यात्रा के बाद कवि जब अपने घर लौटते हैं तब उनका छोटा-सा बच्चा उन्हें पहचान नहीं पा रहा लेकिन उन्हें इस बात का कोई अफ़सोस नहीं है। कवि कहते हैं कि अगर तुम मुझे पहली बार में पहचान नहीं पा रहे हो तो कोई बात नहीं। मुझे इस बात का कोई दुख नहीं है। अगर तुम्हारी माँ ने मुझे तुमसे न मिलवाया होता तो तुम्हारी नए - नए दाँतों वाली मुस्कान को न तो मैं देख पाता और न ही इसके जादू को जान पाता। तुमसे मिलकर मुझे जो खुशी मिली है इसके लिए मैं तुम्हारा आभारी हूँ और तुम्हारी माँ का भी आभारी हूँ । मैं लंबे समय तक घर से बाहर रहा हूँ इसलिए मैं तुम्हारे लिए तुम्हारा पिता न होकर कोई अन्य (दूसरा) हूँ। परिचय न होने के कारण, कभी संपर्क न होने के कारण अर्थात् न मिलने के कारण तुम मुझे एक अतिथि (मेहमान) समझ रहे हो जो कि स्वाभाविक ही है।
उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होती जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान!
शब्दार्थ -
मधुपर्क - दही, घी, शहद, जल और दूध को मिलाकर बनाया गया पंचामृत (कविता में - मिठास से भरी माँ की ममता)
कनखी - तिरछी नज़र से देखना
आँखें चार - आँखों से आँखें मिलना
छविमान - सुंदर
व्याख्या -
कवि अपने नन्हे बच्चे से कह रहे हैं कि मेरी अनुपस्थिति में तुम्हारी माँ ने अपनी उँगलियों से तुम्हें मधुपर्क का पान कराया है। मधुपर्क दही, घी, शहद, जल और दूध के मिश्रण से बने पंचामृत को कहा जाता है। इसका प्रयोग देवताओं को भोग लगाने के लिए किया जाता है। कविता में कवि ने मधुपर्क का प्रयोग किया है जिसका अर्थ है, तुम्हारी माँ ने तुम्हें अपने हाथों से पोषक तत्त्वों से युक्त भोजन कराया है और अपनी (माँ की) ममता देकर तुम्हें पाला है। कवि कहते हैं कि जब तुम तिरछी नज़र से मुझे देखते हो और हमारी आँखें चार होती हैं अर्थात् हमारी आँखें एक - दूसरे से मिलती हैं, तब मुझे देखकर तुम मुस्कुरा देते हो। तुम्हारी दाँतों वाली इस मुस्कान की मोहकता (सुंदरता) और भी बढ़ जाती है।
पाठ्यपुस्तक में दिए गए प्रश्नों के उत्तर
(Textbook Question-Answers)
प्रश्न - अभ्यास
1. बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर - बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह मुसकान उसके मन को आनंद से भर देती है। कवि को ऐसा प्रतीत होता है कि इस मुसकान के प्रभाव से उसके शुष्क मन में भी भावों का संचार होने लगा है। उसके मन में पिता होने का अनोखा भाव जाग उठता है। बच्चे की मुसकान कवि के मन में कर्त्तव्य बोध के साथ सहज जीवन व्यतीत करने की इच्छा जागती है। बच्चे की मुसकान को देखकर कवि स्वयं को सौभाग्यशाली समझता है।
2. बच्चे की मुसकान और बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है?
उत्तर- बच्चे की मुसकान सहज और निश्छल होती है। उसकी मुसकान से हृदय आनंद से भर जाता है, उसमें स्वार्थ की भावना नहीं होती वह निस्वार्थ होती है इसलिए उसकी मुसकान किसी अनजान व्यक्ति को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेती है।
बड़े व्यक्ति की मुसकान में सहजता नहीं होती बल्कि बनावट का भाव अधिक होता है। वह अवसर एवं व्यक्ति को देखकर मुसकाता है। उसमें निश्छलता का भाव नहीं होता। वह अपनी इच्छा और सोच के अनुसार अपनी मुसकान पर नियंत्रण रखता है।
3. कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन-किन बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है?
उत्तर- कवि ने बच्चे की मुसकान को निम्न बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है-
(i) बच्चे की मुसकान मृत व्यक्ति में भी जान डालने वाली है अर्थात् निराश व्यक्ति में भी जीवन जीने की इच्छा जगाने वाली है।
(ii) कवि को लगता है कि कमल तालाब को छोड़कर उसकी झोंपड़ी में खिल गए हैं।
(iii) कवि को लगता है कि बच्चे के चमत्कारी स्पर्श के कारण पत्थर ही पिघलकर तालाब का जल बन गया होगा।
(iv) बच्चे के स्पर्श से बाँस या बबूल के पेड़ से शेफालिका के फूल झरने लगे हैं अर्थात् कठोर व्यक्ति भी हँसने - मुस्कुराने लगता है।
4. भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात।
उत्तर - बालक का धूल-मिट्टी से सना शरीर कवि को कीचड़ में खिले कमल की याद दिलाता है। बच्चे की मुसकान खिले कमल की भाँति है। कवि को लगता है मानो कमल तालाब को छोड़ उसकी झोंपड़ी में ही खिल उठा हो।
(ख) छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल, बाँस था कि बबूल?
उत्तर - शिशु का स्पर्श इतना चमत्कारी है कि उसके स्पर्श के प्रभाव से शेफालिका के फूल झरने लगे। कवि का मन बाँस या बबूल के समान कठोर एवं भावहीन था परंतु शिशु के स्पर्श से शेफालिका के फूल के समान कोमल हो गया।
रचना और अभिव्यक्ति
5. मुसकान और क्रोध भिन्न-भिन्न भाव हैं। इनकी उपस्थिति से बने वातावरण की भिन्नता का चित्रण कीजिए।
उत्तर- मुसकान और क्रोध एक-दूसरे के बिल्कुल विपरीत भाव हैं। मुसकान से किसी व्यक्ति के मन की प्रसन्नता व्यक्त होती है। मुसकराने वाला स्वयं तो खुश होता ही है, अपनी मुसकान से दूसरों को भी प्रसन्न कर देता है। मुसकान अपरिचित को भी अपना बना लेती है। इससे वातावरण भी खुशनुमा हो जाता है। दूसरी ओर, क्रोध हमारे मन की कड़वाहट और अप्रसन्नता का भाव प्रकट करता है। क्रोध की अधिकता में व्यक्ति अपना नियंत्रण खो बैठता है और अपनों से भी दूर हो जाता है। इससे वातावरण में अशांति फैल जाती है।
6. दंतुरित मुसकान से बच्चे की उम्र का अनुमान लगाइए और तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर- 'यह दंतुरित मुसकान' कविता में कवि नागार्जुन ने छह से आठ महीने के छोटे बच्चे की मनोहारी मुसकान का वर्णन किया है। अधिकतर छह से आठ महीने की उम्र में ही छोटे बच्चे के दाँत निकालना शुरू हो जाते हैं। कविता में कवि ने ही बच्चे को संबोधित किया है और उससे प्रश्न पूछे हैं। बच्चे ने अभी बोलना शुरू नहीं किया इसलिए वह कवि की बातें न ही समझ पाता है, न ही कोई उत्तर दे पाता है। वह केवल कवि के हाव - भावों को समझकर अपनी प्रतिक्रिया के रूप में मुस्कुराता है।
7. बच्चे से कवि की मुलाकात का जो शब्द-चित्र उपस्थित हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- कवि लंबे समय से कहीं बाहर था। घर लौटकर आने पर कवि की मुलाकात जब अपने छोटे बच्चे से होती है तो वह बच्चे की आकर्षक मुसकान देखकर मुग्ध हो जाता है। उसकी दंतुरित मुसकान देखकर कवि की निराशा और उदासी गायब हो गई। उसे लगा जैसे उसके प्राणों में नई चेतना का संचार हो गया है। बच्चे की कोमलता और सुंदरता के कारण कवि को लगा कि उसकी झोंपड़ी में कमल खिल उठे हों। शिशु का स्पर्श पाते ही कवि का हृदय वात्सल्य भाव से भर उठा। इससे कवि के मन की खुशी उसके चेहरे पर छलक उठी। पहचान न पाने के कारण बच्चा कवि को बिना पलक झपकाए देखता रहा। कवि सोचता है कि यदि उसकी माँ माध्यम न बनती तो वह यह मुसकान देखने से वंचित रह जाता। बच्चा कवि को पहचानने के प्रयास में तिरछी नज़रों से उसे देखता है तब नन्हें-नन्हें दाँतों वाली उसकी मुसकान कवि को और भी सुंदर लगने लगती है।
अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर
(Extra Questions /Important Questions with Answers) -
1. कविता 'यह दंतुरित मुसकान' के काव्य सौंदर्य / शिल्प सौंदर्य के बारे में बताएँ।
उत्तर - (i) यह दंतुरित मुसकान' कविता में कवि नागार्जुन ने छह से आठ महीने छोटे बच्चे की मनोहारी मुसकान का वात्सल्य से भरा वर्णन किया है।
(ii) उसकी छोटे-छोटे दाँतों वाली मुसकान को देखकर कवि ने अनेक बिंबों (उदाहरणों) के माध्यम से उसकी सुंदरता का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया है, जैसे -
~ मृतक में भी डाल देगी जान
~ छोड़कर तालाब... जलजात
~ परस पाकर... कठिन पाषाण
~ छू गया... फूल
अतः यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है।
(iii) 'धूलि-धूसर' में अनुप्रास अलंकार है।
(iv) कविता की भाषा खड़ीबोली हिंदी है।साथ ही तत्सम (संस्कृत के) शब्दों का सुंदर प्रयोग है।
(v) मुहावरों के प्रयोग से भाषा में चमत्कार उत्पन्न हुआ है - 'कनखी मार', आँखें चार'।
2. कवि बच्चे से आँखें फेर लेने की बात क्यों कहता है?
उत्तर- कवि को न पहचान पाने के कारण बच्चा उसे अपलक देखता रहता है। कवि को लगता है कि इस तरह अपलक देखने के कारण बच्चा थक गया होगा। उसकी सुविधा के लिए और उसे थकान से बचाने के लिए कवि उसका ध्यान अपनी ओर से हटा लेना उचित समझता है इसलिए कवि बच्चे से पूछता है कि क्या वह अपनी आँखें दूसरी ओर फेर ले।
3. कविता में कवि ने बच्चे को और उसकी माँ को धन्य क्यों कहा है ?
उत्तर- कविता में कवि ने छोटे बच्चे और उसकी माँ दोनों को धन्य कहा है। उन्होंने बच्चे को इसलिए धन्य कहा है क्योंकि ऐसी मुसकान के प्रभाव से कवि के थके-हारे, निराश जीवन में नई उमंग और उत्साह भर उठता है। उन्होंने बच्चे की माँ को इसलिए धन्य कहा है क्योंकि उसी के कारण कवि को सुंदर बालक और उसकी मुसकान देखने का अवसर मिला। साथ ही कवि की अनुपस्थिति में उसकी माँ ने ही उस बच्चे का ध्या न रखा।