NCERT Study Material for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 'Ek Kahani Yeh Bhi' Important / key points which covers whole chapter / Quick revision notes, Textbook Question-Answers and Extra Questions /Important Questions with Answers
हमारे ब्लॉग में आपको NCERT पाठ्यक्रम के अंतर्गत कक्षा 10 (Course A) की हिंदी पुस्तक 'क्षितिज' के पाठ पर आधारित सामग्री प्राप्त होगी जो पाठ की विषय-वस्तु को समझने में आपकी सहायता करेगी। इसे समझने के उपरांत आप पाठ से संबंधित किसी भी प्रश्न का उत्तर सरलता से दे सकेंगे।
यहाँ NCERT HINDI Class 10 के पाठ - 10 'एक कहानी यह भी' के मुख्य बिंदु (Important / Key points) दिए जा रहे हैं। साथ ही आपकी सहायता के लिए पाठ्यपुस्तक में दिए गए प्रश्नों के सटीक उत्तर (Textbook Question-Answers) एवं अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर (Extra Questions /Important Questions with Answers) सरल एवं भाषा में दिए गए हैं। आशा है यह सामग्री आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
NCERT Hindi Class 10 (Course - A) Kshitij (Bhag - 2) Chapter - 10 'Ek Kahani Yeh Bhi' (एक कहानी यह भी)
पाठ - परिचय
'एक कहानी यह भी’ लेखिका मन्नू भंडारी जी की आत्मकथा नहीं है बल्कि इस पाठ अथवा आत्मकथ्य में लेखिका ने उन व्यक्तियों और घटनाओं का वर्णन किया है जो उनके लेखकीय जीवन से जुड़े हुए हैं। अपने आत्मकथ्य के इस अंश में मन्नू जी ने अपने घर के वातावरण, माता के स्वभाव, भाई-बहन और सहेलियों के साथ खेल-कूद, मोहल्ले के लोगों से जुड़ी बातों के साथ अपने पिताजी और अपने कॉलेज की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल जी के व्यक्तित्व को विशेष रूप से चित्रित किया है। इन दोनों के व्यक्तित्व का लेखिका के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनके लेखकीय व्यक्तित्व के निर्माण में भी इन दोनों व्यक्तियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस पाठ में लेखिका ने साधारण लड़की के असाधारण बनने के बदलाव के अपने स्तरों को बहुत ही सुंदर ढंग से लिखा है। 1946-47 में देश की आज़ादी की लड़ाई में छोटे शहर की युवा होती मन्नू ने आज़ादी की लड़ाई में जिस तरह भाग लिया यह अपने-आप में उनकी एक विशिष्ट (खास) उपलब्धि है। परिवार के वातावरण के विपरीत, उनका उत्साह,तेज, संगठन - क्षमता और गलत का विरोध करने की शक्ति और तरीका दोनों ही अद्भुत हैं।
पाठ 'एक कहानी यह भी' पर आधारित पाठ्यपुस्तक के प्रश्नों (Question - Answers) के साथ अतिरिक्त प्रश्नों (Extra Question - Answers) के माध्यम से पाठ की समग्र विषयवस्तु को समझाने का प्रयास किया गया है।
पाठ्यपुस्तक में दिए गए प्रश्नों के उत्तर
(Textbook Question-Answers)
प्रश्न - अभ्यास
1. लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ा?
उत्तर - लेखिका के व्यक्तित्व पर मुख्य रूप से दो व्यक्तियों का विशेष प्रभाव पड़ा -
पिता का प्रभाव - लेखिका ने पाठ में लिखा है कि अपने पिता के व्यक्तित्व के चित्रण द्वारा वह स्वयं यह देखना चाहती हैं कि उनके पिताजी के व्यक्तित्व की कौन सी खूबी (अच्छाई) और खामियों (कमियों) का प्रभाव उनके व्यक्तित्व पर पड़ा है। उनके पिताजी को गोरा रंग पसंद नहीं था इसीलिए वह लेखिका की तुलना, उनसे दो साल बड़ी उनकी बहन सुशीला से किया करते थे। वह खूब गोरी, स्वस्थ और हँसमुख थी। अपनी बहन से की जाने वाली तुलना और उसकी प्रशंसा ने लेखिका को हीन - भावना का शिकार बना दिया जिससे वह कभी उभर नहीं पाई। लेखिका का मानना है कि उनके पिता न जाने कितने ही रूपों में उनमें हैं - हीन-भावना के कारण कुंठाओं के रूप में, उनके द्वारा लेखिका को राजनैतिक बहसों में भाग लेने और राजनैतिक गतिविधियों के प्रति जागरूक रहने के लिए प्रेरित करने की प्रतिक्रिया के रूप में लेखिका के मन में देशभक्ति की भावना जागृत हुई और 'अपनों' द्वारा विश्वासघात किए जाने पर लेखिका का अपने पिता के समान शक्की स्वभाव हो जाने पर उनकी प्रतिच्छाया (समान छवि) के रूप में। इस प्रकार लेखिका के व्यक्तित्व पर उनके पिता के व्यक्तित्व का गहरा प्रभाव देखा जा सकता है।
शीला अग्रवाल - लेखिका की फर्स्ट ईयर की हिंदी की प्राध्यापिका (प्रोफ़ेसर) शीला अग्रवाल जी का भी लेखिका के जीवन, मुख्य रूप से उसकी सोच पर विशेष प्रभाव पड़ा। दसवीं तक लेखिका बिना किसी खास समझ के घर में होने वाली बहसें सुनती थीं और बिना चुनाव किए, बिना लेखक की अहमियत को जाने किताबें पढ़ती थी। परंतु शीला जी ने खुद चुनकर लेखिका को किताबें पढ़ने के लिए दीं, पढ़ी हुई किताबों पर बहसें कीं, सही - गलत की पहचान कराई, उनकी सोच को विकसित किया। अतः शीला अग्रवाल जी ने लेखिका के साहित्य का दायरा ही नहीं बढ़ाया था बल्कि घर की चारदीवारी में बैठकर देश की स्थिति को जानने - समझने का जो सिलसिला लेखिका के पिताजी ने शुरू किया था उन्होंने उन स्थितियों में भाग लेने के लिए लेखिका में जोश भी भर दिया अर्थात् शीला जी के प्रभाव के कारण ही लेखिका ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू किया।
2. इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोई को 'भटियारखाना' कहकर क्यों संबोधित किया है?
उत्तर - भटियारखाने का अर्थ है - जहाँ हमेशा भट्टी जलती रहती है या चूल्हा जलता रहता है। लेखिका के पिता ने रसोई को भटियारखाना इसलिए कहा था क्योंकि उनका मानना था की रसोई में काम करने से लड़कियों की क्षमता और प्रतिभा नष्ट हो जाती है। वे चूल्हे - चौके (खाना पकाने) तक ही सीमित रह जाती हैं। लेखिका के पिता उन्हें केवल घर - गृहस्थी में कुशल और पाक कला में ही निपुण न बनाकर, एक जागरूक नागरिक बनना चाहते थे। उनमें देश और समाज की समझ विकसित करना चाहते थे।
3. वह कौन-सी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर?
उत्तर - एक बार लेखिका के कॉलेज से प्रिंसिपल का पत्र आया। पत्र में लेखिका के पिताजी को कॉलेज बुलाया गया और साथ ही मन्नू पर अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की सूचना दी गई। पत्र पढ़ते ही पिताजी क्रोधित हो गए। जाने से पहले पिताजी प्रिंसिपल को मुँह दिखाने से घबरा रहे थे लेकिन जब वह आए तो बहुत खुश थे। वह बड़े गर्व के साथ यह बताने लगे की प्रिंसिपल कह रही थी कि सारे कॉलेज की लड़कियों पर मन्नू का बहुत रौब है। वे सभी मन्नू के एक इशारे पर क्लास छोड़कर मैदान में जमा होकर नारे लगाने लगती हैं। उन्होंने पिताजी से आग्रह किया कि वह मन्नू को कॉलेज न भेजें। इस पर पिताजी बड़े गर्व से कह कर आए कि यह तो पूरे देश की पुकार है। इस पर कोई कैसे रोक लगा सकता है भला? पिताजी के मुँह से ये बातें सुनकर लेखिका को न तो अपनी आंँखों पर विश्वास हो पाया और न ही अपने कानों पर।
4. लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर - लेखिका के पिताजी उस समय के सामान्य लोगों की तुलना में आधुनिक विचारों के थे। वह ऐसा मानते थे कि लड़कियों को खाना पकाने और घर के कामों के अतिरिक्त देश और समाज की समझ भी होनी चाहिए। वह लेखिका से घर पर होने वाली राजनैतिक बहसों में शामिल होने को कहते। घर पर आए विभिन्न पार्टियों के लोगों के बीच उठने - बैठने, उन्हें जानने - समझने को कहते। परंतु पिताजी की आज़ादी की सीमा यहीं तक थी। वह लेखिका को चारदीवारी में रखकर विशिष्ट बनाना चाहते थे। उस समय की स्थिति के अनुसार लेखिका भी युवाओं के साथ मिलकर सड़कों पर नारे लगाती, हड़तालें करवाती और भाषण देती थी जो पिताजी को पसंद नहीं था। शीला अग्रवाल जी के विचारों से प्रभावित होकर लेखिका अपने जीवन के निर्णय स्वयं लेने में सक्षम हो चुकी थी। किसी की दी गई आज़ादी के दायरे में चलना अब लेखिका के लिए मुश्किल था। जिन पिताजी से लेखिका डरती थी अब वैचारिक असमानता के कारण दोनों में टकराहट की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। यही स्थिति लेखिका के विवाह जैसे महत्त्वपूर्ण विषय में भी बनी रही। लेखिका ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर विवाह किया।
5. इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उसमें मन्नू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए।
उत्तर - स्वाधीनता आंदोलन के समय देश में हर तरफ़, हर व्यक्ति के मन में देशभक्ति की भावना थी। देश को आज़ादी दिलाने के लिए जगह-जगह प्रभात फेरियाँ निकाली जा रही थी, हड़तालें, जुलूस किए जा रहे थे, भाषण दिए जा रहे थे। भारत का हर युवा अपने पूरे जोश के साथ इस अभियान में जुड़ने के लिए तत्पर था। मन्नू जी भी युवा थीं और शीला अग्रवाल जी की जोशीली बातों ने उनमें भी देशभक्ति की भावना को और अधिक बढ़ा दिया था। देश के अन्य युवाओं के साथ मिलकर मन्नू जी भी हाथ उठा- उठाकर नारे लगातीं और हड़तालें कराती। आज़ाद हिंद फ़ौज के मुकद्दमे पर अंग्रेज़ों के प्रति अपना विरोध प्रदर्शित करने के लिए उन्होंने कॉलेज, स्कूल और दुकानें बंद करवाईं। पूरे विद्यार्थी-वर्ग के साथ मिलकर अजमेर के मुख्य बाज़ार के चौराहे पर धुआँधार (जोशिला) भाषण देकर युवाओं को देश की लड़ाई में भाग लेने के लिए प्रेरित किया । इस प्रकार लेखिका ने भी स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया।
रचना और अभिव्यक्ति
6. लेखिका ने बचपन में अपने भाइयों के साथ गिल्ली डंडा तथा पतंग उड़ाने जैसे खेल भी खेले किंतु लड़की होने के कारण उनका दायरा घर की चारदीवारी तक सीमित था। क्या आज भी लड़कियों के लिए स्थितियाँ ऐसी ही हैं या बदल गई हैं, अपने परिवेश के आधार पर लिखिए।
उत्तर - लेखिका ने बचपन में अपने भाइयों के साथ गिल्ली - डंडा तथा पतंग उड़ाने जैसे खेल भी खेले किंतु लड़कों की गतिविधियों का दायरा घर के बाहर ही अधिक रहता था और लड़कियों की सीमा घर की चारदीवारी थी। इसका कारण उस समय के लोगों की संकुचित (छोटी) सोच और लड़कियों की सुरक्षा है। आज लड़कियों की स्थिति में बहुत सुधार है। आधुनिक सोच के कारण अब लोग अपनी लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें शिक्षित बनाने में सहयोग देते हैं। वे स्वयं अपनी रक्षा कर सकें इसके प्रयास भी कर रहे हैं। साथ ही उनकी प्रतिभा को पहचान कर उन्हें अनेक खेलों को राष्ट्रीय स्तर पर खेलने के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं। गीता फोगाट, मैरी कॉम, पी. वी. सिंधु आदि महिला खिलाड़ियों ने केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपने देश का नाम रोशन किया है।
7. मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्त्व होता है। परंतु महानगरों में रहने वाले लोग प्रायः 'पड़ोस कल्चर' से वंचित रह जाते हैं। इस बारे में अपने विचार लिखिए।
उत्तर - मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसमें सामाजिक भावना और मानवीय मूल्यों का विकास समाज के बीच में रहकर ही संभव है। 'पड़ोस कल्चर' मनुष्य की इसी आवश्यकता को पूरा करने में सहायक होता है। आस-पड़ोस से संबंध मनुष्य के जीवन को पूर्णता प्रदान करते हैं। जीवन के विशेष अवसरों त्योहार आदि का मज़ा इससे दुगना हो जाता है। आवश्यकता पड़ने पर उसे सहयोग भी मिलता है। परंतु महानगरों में रहने वाले लोग' पड़ोस कल्चर' से वंचित रह जाते हैं। आधुनिक सोच के कारण मनुष्य अपने जीवन में किसी अन्य की दखलअंदाज़ी पसंद नहीं करता। अपनी ज़िंदगी अपने अनुसार जीने के लालच ने महानगरों के फ्लैट में रहने वाले लोगों को 'पड़ोस कल्चर' की इस परंपरा से दूर कर दिया है जिसके कारण लोग आत्म केंद्रित हो गए हैं। वे स्वयं दूसरों के सुख-दुख में शामिल होना पसंद नहीं करते हैं। इसी कारण अपने सुख-दुख में भी वह अकेले ही पड़ जाते हैं। पड़ोस से अलग रहने के इस भाव ने उनके जीवन को संकुचित, मजबूर और असुरक्षित बना दिया है।
8. लेखिका द्वारा पढ़े गए उपन्यासों की सूची बनाइए और उन उपन्यासों को अपने पुस्तकालय में खोजिए।
उत्तर - सुनीता (जैनेंद्र)
शेखर एक जीवनी (अज्ञेय)
नदी के द्वीप (अज्ञेय)
त्यागपत्र (जैनेंद्र)
चित्रलेखा (भगवती चरण वर्मा)
9. आप भी अपने दैनिक अनुभवों को डायरी में लिखिए।
उत्तर - छात्र स्वयं करेंगे।
अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर
(Extra Questions /Important Questions with Answers) -
1. मन्नू भंडारी के पिताजी का चरित्र चित्रण कीजिए।
अथवा
मन्नू भंडारी के पिता अंतर्विरोधों के बीच जीते थे स्पष्ट कीजिए।
अथवा
'पाठ में मन्नू भंडारी के पिता कभी तो आधुनिक सोच रखने वाले सशक्त पिता के रूप में दिखाई देते हैं तो कभी संकीर्ण (छोटी) मानसिकता (सोच) वाले व्यक्ति और पिता बनकर सामने आते हैं।' - इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर - लेखिका के पिता जब इंदौर में थे तब उनका बड़ा नाम था, सम्मान था और प्रतिष्ठा थी। वे राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के साथ-साथ समाज - सुधार के काम भी करते थे। वे केवल उपदेश ही नहीं देते थे बल्कि कुछ विद्यार्थियों को अपने घर पर पढ़ाते भी थे। पहले के समय में, अपनी गतिविधियों के कारण पिताजी बड़े दरियादिल कहे जाते थे। एक ओर वे बेहद कोमल और संवेदनशील व्यक्ति थे तो दूसरी ओर बेहद क्रोधी और अहंकारी। अपने करीबी लोगों के द्वारा विश्वासघात किए जाने के कारण वे क्रोधी और शक्की स्वभाव के हो गए थे। परिस्थितियों के कारण लोगों द्वारा पहले जैसा सम्मान न मिलने, अधूरी इच्छाओं के पूरा न होने और आर्थिक तंगी के कारण लेखिका के पिताजी की सारी विशेषताएँ उनके व्यक्तित्व से गायब - सी हो गई थीं। उनकी कुंठाओं (निराशाओं) का शिकार माँ को बनना पड़ता था। वे बिना किसी गलती के लेखिका की माँ पर क्रोधित होते थे। पिताजी के व्यक्तित्व में बहुत सी कमियाँ थीं जिनमें से एक थी उनका अपने बच्चों में तुलना करना। लेखिका दिखने में काली और कमज़ोर थी। पिताजी उसकी तुलना लेखिका की बड़ी बहन सुशीला से किया करते थे जो गोरी थी। यश की लालसा लेखिका के पिता की सबसे बड़ी दुर्बलता थी। वे ऐसा मानते थे कि व्यक्ति को कुछ विशिष्ट बनकर जीना चाहिए जिससे उसे समाज में सम्मान मिले, उसका दबदबा हो। इसलिए जब लेखिका की प्रिंसिपल कॉलेज में लेखिका के रौब के बारे में बताती है और अजमेर के सबसे प्रतिष्ठित और सम्मानित डॉक्टर अंबालाल जी लेखिका के भाषण की प्रशंसा करते हैं, तब उनके क्रोधित पिता अचानक ही गर्भ का अनुभव करने लगते हैं। लेखिका के पिता उन्हें घर - गृहस्थी में कुशल और खाना बनाने में निपुण न बनाकर एक जागरूक नागरिक बनना चाहते हैं। परंतु लेखिका का देश की आज़ादी के लिए भाषण देना, उसमें भाग लेना उन्हें पसंद नहीं था। अतः लेखिका के पिता अनेक अंतर्विरोधों के साथ कभी आधुनिक सोच वाले पिता के रूप में दिखाई देते हैं तो कभी संकीर्ण मानसिकता वाले कमजोर व्यक्तित्व के रूप में सामने आते हैं।
2. लेखिका ने अपनी माँ को व्यक्तित्वविहीन क्यों कहा है?
अथवा
लेखिका अपनी माँ को अपना आदर्श क्यों नहीं बना सकीं?
उत्तर - लेखिका की माँ एक अशिक्षित (बेपढ़ी-लिखी) घरेलू स्त्री थी। धरती से भी अधिक धैर्य और सहनशक्ति होने के कारण वह पिताजी की हर ज़्यादती को अपना भाग्य समझकर सहन करती थीं। वह अपने बच्चों की हर उचित - अनुचित फ़रमाइश और ज़िद को अपना फ़र्ज़ समझकर बिना किसी का विरोध किए पूरा करती थीं। उन्होंने ज़िंदगी - भर अपने लिए कभी कुछ नहीं माँगा, न ही कुछ चाहा केवल अपनी सेवाएँ, अपना प्रेम और पूरा जीवन अपने परिवार को दिया। लेखिका और उनके भाई - बहन अपनी माँ से सहानुभूति रखते थे लेकिन उनका मजबूरी में लिपटा त्याग, बिना किसी गलती के पिताजी की डाँट - फटकार को सहन करना, गलत का विरोध न करने का उनका स्वभाव लेखिका का आदर्श नहीं बन सका। इसलिए लेखिका ने अपनी माँ को बेपढ़ी लिखी अर्थात् अपने अधिकारों के प्रति जागरूक न होने वाली और परिवार से अलग अपनी पहचान न बनने वाली व्यक्तित्व विहीन माँ कहा है।