कैसे हुआ हिंदी का जन्म ? - हिंदी भाषा के उद्भव और विकास की कहानी (भाग-1)
हिंदी भाषा का इतिहास वैदिक काल से आरंभ होता है। भारत में जिस भाषा-धारा का नाम हिंदी है, उसका प्राचीन रूप संस्कृत है। हिंदी भाषा के विशेषज्ञ डॉ. भोलानाथ तिवारी जी द्वारा लिखित लेख 'हिंदी भाषा : उद्भव, विकास और स्वरूप' में उन्होंने लिखा है कि संस्कृत भाषा का समय मोटे तौर पर 1500 ईसवी पूर्व से 500 ईसवी पूर्व तक माना जाता है। इस काल में संस्कृत बोलचाल की भाषा थी। उस बोलचाल की भाषा का ही शिष्ट और मानक रूप संस्कृत साहित्य में मिलता है।
उस समय में संस्कृत भाषा के दो रूप मिलते हैं। एक रूप वैदिक संस्कृत है जिसमें वैदिक साहित्य की रचना हुई और दूसरा, लौकिक या क्लासिकल संस्कृत है जिसमें वाल्मीकि, व्यास, भास, अश्वघोष, कालिदास आदि की रचनाएँ मिलती हैं।
संस्कृत काल के अंत तक मानक या परिनिष्ठत (पूर्णतः शुद्ध) भाषा तो एक ही थी परंतु साथ ही साथ तीन क्षेत्रीय बोलियाँ भी विकसित हो रहीं थीं। इन बोलियों को इनके क्षेत्र के आधार पर पश्चिमोत्तरी, मध्यदेशी तथा पूर्वी नाम दिया गया। संस्कृत काल से विकसित होते-होते बोलचाल की यह भाषा 500 ईसवी पूर्व के बाद बहुत बदल गई और इसे पालि की संज्ञा दी गई। इसका काल 500 ई. पू. से पहली ईसवी तक माना जाता है। बौद्ध ग्रंथों में पालि का जो रूप मिलता है, वह इस बोलचाल की भाषा का ही शुद्ध और मानक रूप है।
पालि भाषा के समय (500 ई. पू. - 01 ई. पू.) में क्षेत्रीय बोलियों की संख्या तीन से चार हो गई - पश्चिमोत्तरी, मध्यदेशी, पूर्वी तथा दक्षिणी। पहली ईसवी तक आते-आते इस बोलचाल की भाषा में थोड़ा और परिवर्तन आया और पहली ईसवी से 500 ईसवी तक का इसका रूप प्राकृत नाम से जाना जाने लगा।
प्राकृत काल में अनेक क्षेत्रीय बोलियाँ विकसित हुईं , जिनमें मुख्य रूप से शौरसेनी, पैशाची, व्राचड़, महाराष्ट्री, मागधी और अर्धमागधी थीं। प्राकृत भाषा से ही विभिन्न क्षेत्रीय अपभ्रंश रूपों का विकास हुआ। अपभ्रंश भाषा का काल मोटे तौर पर 500 ई. से 1000 ई. तक है।
डॉ. भोलानाथ तिवारी जी का मत है कि अपभ्रंश के सभी क्षेत्रीय रूपों का अपभ्रंश साहित्य में प्रयोग नहीं हुआ है। उनके अनुसार आधुनिक आर्यभाषाओं का जन्म अपभ्रंश के विभिन्न क्षेत्रीय रूपों से इस प्रकार माना जा सकता है -
उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट होता है कि हिंदी भाषा का उद्भव अपभ्रंश के शौरसेनी, अर्धमागधी और मागधी रूपों से हुआ है।
इस आधार पर कहा जा सकता है कि हिंदी भाषा का जन्म मूल रूप से संस्कृत भाषा से हुआ। बदलते समय और विकास की धारा में वह पालि, प्राकृत और अपभ्रंश की गोद में पलते तथा परिष्कृत होते हुए लगभग 1000 ईसवी में अस्तित्व में आई। अतः हिंदी भाषा का वास्तविक आरंभ 1000 ईसवी से माना जाता है।
स्रोत -
लेख - हिंदी भाषा : उद्भव, विकास और स्वरूप
लेखक - डॉ. भोलानाथ तिवारी
पुस्तक - हिंदी साहित्य का इतिहास
संपादक - डॉ. नगेंद्र