NCERT Study Material for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 16 - 'Patjhad MeinTuti Pattiyan - Jhen ki Den'
हमारे ब्लॉग में आपको NCERT पाठ्यक्रम के अंतर्गत कक्षा 10 (Course B) की हिंदी पुस्तक 'स्पर्श' के पाठ पर आधारित प्रश्नों के सटीक उत्तर स्पष्ट एवं सरल भाषा में प्राप्त होंगे।
यहाँ NCERT HINDI Class 10 के पाठ - 16 'पतझर में टूटी पत्तियाँ - झेन की देन' के मुख्य बिंदु दिए गए हैं जो पूरे पाठ की विषय वस्तु को समझने में सहायक सिद्ध होंगे।
Important key points /Summary which covers whole chapter (Quick revision notes) महत्त्वपूर्ण मुख्य बिंदु जो पूरे अध्याय को कवर करते हैं (त्वरित पुनरावृत्ति नोट्स)
NCERT Class 10 Hindi Sparsh Chapter 16 'Patjhad Mein Tuti Pattiyan - Jen ki Den' - Summary in points.
~ पाठ के लेखक हैं - रवींद्र केलेकर
~ पाठ के आरंभ में लेखक बताते हैं कि उन्हें अपने एक मित्र से जापान जैसे प्रगतिशील (Advance) देश के लोगों की बीमारी के बारे में पता चलता है। लेखक के पूछने पर उनके मित्र ने उन्हें बताया कि जापान के ज़्यादातर लोगों को मानसिक (दिमागी) बीमारियाँ होती हैं। यहाँ के अस्सी प्रतिशत (80%) लोग मनोरुग्ण हैं अर्थात् तनाव (stress) के कारण मन से अस्वस्थ हैं।
~ लेखक के मित्र ने जापानी लोगों में होने वाले मानसिक रोगों के निम्नलिखित कारण बताए -
1. अमेरिका से प्रतिस्पर्धा (आगे निकलने की होड़) के कारण जापान के लोगों ने अपने जीवन की रफ़्तार बढ़ा ली है।
2. सबसे आगे निकलने के लिए जापानी लोग एक महीने में पूरा होने वाला काम एक दिन में ही पूरा करने की कोशिश करने लगे इसलिए वे न तो अपने शरीर को आराम देते हैं और न ही दिमाग को।
3. विकास की इच्छा ने उनके जीवन में भागदौड़ बढ़ा दी है। जापानी लोग हर समय काम में व्यस्त रहते हैं। वे हमेशा जल्दी में रहते हैं इसलिए वे चलते नहीं, दौड़ते हैं।
4. समय न होने के कारण कोई किसी के पास तसल्ली से बैठता नहीं, कोई बोलता नहीं, बल्कि जल्दबाज़ी में कुछ भी बकता है। इसका अर्थ यह है कि मशीन की तरह काम करने के कारण वहाँ के लोगों में भावनाएँ कम हो जाती हैं। वे किसी को कुछ भी बोलने से पहले सोचते नहीं।
5. एक - दूसरे को समय न दे पाने के कारण जापान के लोग भीड़ में भी अकेले पड़ गए हैं। वे अपने - आप से ही बातें करते रहते हैं। अकेले होने पर भी उनके दिमाग में विचार चलते रहते हैं इसलिए अपने - आप से लगातार बड़बड़ाते रहते हैं। यह स्थिति उन्हें मानसिक रोग की ओर ले जाती है।
6. मनुष्य के दिमाग की रफ़्तार वैसे ही तेज़ होती है। जापानियों द्वारा उसे 'स्पीड' का इंजन लगाने पर वह हज़ार गुना अधिक तेज़ी से दौड़ने लगता है। इसका अर्थ है कि जापान के लोग अपने दिमाग को एक सेकेंड के लिए भी आराम नहीं करने देते। अपने दिमाग को वे स्वयं काम, काम और बस काम का आदेश देते हैं।
ऊपर लिखित सभी बातों के कारण तनाव (stress) बढ़ जाता है। ऐसे में मानसिक रोग होना स्वाभाविक है।
~ जापान में चाय पीने की विधि को 'चा - नो - यू' कहते हैं।
~ जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की विशेषता -
1. लेखक शाम के समय अपने मित्र के साथ एक 'टी - सेरेमनी' में गए। जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान पर शांति (peace) का विशेष ध्यान रखा जाता है।
2. लेखक वहाँ अपने दो मित्रों के साथ गए क्योंकि वहाँ शांति बनाए रखने के लिए तीन से अधिक आदमियों को प्रवेश नहीं दिया जाता।
3. वह छह मंज़िला इमारत (six story building) की छत पर बनी एक पर्णकुटी (पत्तों की झोपड़ी) थी,जिसकी दीवारें दफ़्ती (लकड़ी की खोखली सरकने वाली दीवार, जिस पर चित्रकारी होती है) की थीं और ज़मीन पर तातामी (चटाई) बिछी हुई थी। बाहर बेढब - सा (जिसका आकार सही न हो) मिट्टी का एक बर्तन था जिसमें वहाँ चाय पीने आने वाले लोगों के हाथ - पाँव धोने के लिए पानी रखा था। लेखक और उसके मित्रों ने उस पानी से हाथ- पाँव धोए और तौलिए से पोंछकर अंदर चले गए।
~ जब लेखक अपने मित्रों के साथ 'टी - सेरेमनी' में गया, तब 'चाजीन' ने निम्नलिखित क्रियाएँ बड़े ही गरिमापूर्ण ढंग से की-
1. लेखक और उसके मित्रों को देखकर चाजीन खड़ा हो गया और कमर झुकाकर उसने उन्हें प्रणाम किया।
2. 'दो झो'( तशरीफ़ लाइए) कहकर उनका स्वागत किया और बैठने की जगह दिखाई।
3. अँगीठी जलाई और उसपर चायदानी रखी।
4. साथ वाले कमरे में जाकर कुछ बर्तन लाया और उन्हें तौलिए से साफ़ किया।
5. चाय तैयार होने पर उसने वह प्यालों (कपों) में भरी और फिर वह प्याले लेखक और उसके मित्रों के सामने रख दिए।
ये सभी क्रियाएँ चाजीन ने इतने गरिमापूर्ण ढंग से कीं कि उसकी हर भंगिमा से लगता था मानो जयजयवंती के स्वर गूँज रहे हों अर्थात् चाजीन ने वे सभी काम बड़े सुंदर ढंग से किए और उसकी हर एक मुद्रा जय-जयवंती नाम के राग के मधुर स्वर की भांति बहुत ही मधुर और आकर्षक थी।
~ टी - सेरेमनी के दौरान लेखक के अनुभव -
लेखक अपने मित्रों के साथ एक टी - सेरेमनी में गया। उस स्थान पर इतनी शांति थी कि लेखक को चायदानी के पानी का खदबदाना (उबलना) भी सुनाई दे रहा था। वह चाय पिलाने वाले चाजीन की हर एक क्रिया से बहुत प्रभावित हुआ। चाय के प्याले में केवल दो घूँट चाय ही थी जिसे लेखक और उसके मित्रों ने करीब डेढ़ घंटे तक एक-एक बूंद करके चुस्कियाँ लेते हुए पिया।
जापान में चाय की इस विधि को चा - नो - यू कहते हैं। पहले दस - पंद्रह मिनट लेखक को कुछ अजीब - सा लगा क्योंकि उसे इस तरह चाय पीने की आदत नहीं थी। लेकिन फिर उसने महसूस किया कि उसके दिमाग की रफ़्तार धीरे-धीरे कम होती जा रही है और थोड़ी देर में उसे लगा कि दिमाग ने चलना बंद कर दिया है। लेखक को लगा कि वह अनंतकाल में जी रहा है अर्थात् उसे ऐसा अनुभव हुआ कि उसे न भूतकाल (अतीत) का ज्ञान है और न ही उसके दिमाग में भविष्य की कोई सोच है। वह केवल अभी के समय में (वर्तमान में) जी रहा है। वह केवल उस पल को महसूस कर रहा था और उस शांत वातावरण में उसे वहाँ का सन्नाटा (खामोशी) भी महसूस हो रहा था।
~ 'लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए।'
चाय पीते समय केवल वर्तमान में जीने का अनुभव करते हुए लेखक के मन में यह विचार आने लगे कि अक्सर हम उन बातों के बारे में सोचते रहते हैं जो हमारे हाथ में नहीं हैं। बीते हुए कल की गुज़री हुई अच्छी - बुरी यादें, कभी-कभी हमारे आज को प्रभावित करती हैं। उसी प्रकार भविष्य के लिए देखे गए सुंदर सपनों को पूरा करने की चिंता में हम अपना आज भी गँवा देते हैं। हम या तो भूतकाल में रहते हैं या भविष्य काल में। कहने का अर्थ यह है कि दिमाग में भरी सोच के कारण हम कभी भी अपने वर्तमान को, अपने आज को नहीं जीते जबकि वही सच है। हमें अपने आज में जीना चाहिए क्योंकि जो बीत चुका है उसे बदला नहीं जा सकता और जो अभी आया ही नहीं है उसे बेहतर बनाने के लिए भी वर्तमान को बेहतर करना ज़रूरी है। लेखक ने चाय पीते हुए उस डेढ़ घंटे में केवल अपने वर्तमान को जिया। उस दिन उन्हें अनुभव हुआ कि जीना किसे कहते हैं।
अपने अनुभव के आधार पर ही लेखक ने झेन परंपरा की सुकून और दिमागी आराम देने वाली इस देन के लिए जापान के लोगों को सौभाग्यशाली माना।
~ पाठ का उद्देश्य -
झेन परंपरा चाय पीने की एक पद्धति है जिसमें लोग कुछ समय गुज़ारकर अपनी व्यस्तता से भरे जीवन में शांति और चैन के पल पा लेते हैं। चाय की इस विधि (टी - सेरेमनी) में लेखक ने जो सुंदर अनुभव किया है, वह उससे अपने भारतीयों को भी अवगत कराना चाहते हैं जिससे वे भी इस परंपरा का लाभ उठा सकें।
इन मुख्य बिंदुओं को पढ़कर छात्र परीक्षा में दिए जाने वाले किसी भी प्रश्न का उत्तर देने में समर्थ हो सकेंगे। आशा है उपरोक्त नोट्स विद्यार्थियों के लिए सहायक होंगे।
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