NCERT Study Material for Class 10 Hindi Kshitij Chapter- 3 'Aatmkathya' (Explanation, Textbook Question-Answers and Extra Questions /Important Questions with Answers)
हमारे ब्लॉग में आपको NCERT पाठ्यक्रम के अंतर्गत कक्षा 10 (Course A) की हिंदी पुस्तक 'क्षितिज' के पाठ पर आधारित प्रश्नों के सटीक उत्तर स्पष्ट एवं सरल भाषा में प्राप्त होंगे। साथ ही काव्य - खंड के अंतर्गत निहित कविताओं एवं साखियों आदि की विस्तृत व्याख्या भी दी गई है।
यहाँ NCERT HINDI Class 10 के पाठ - 3 'आत्मकथ्य' की व्याख्या दी जा रही है। इस कविता की व्याख्या पाठ की विषय-वस्तु को समझने में आपकी सहायता करेगी। इसे समझने के उपरांत आप पाठ से संबंधित किसी भी प्रश्न का उत्तर सरलता से दे सकेंगे। आपकी सहायता के लिए पाठ्यपुस्तक में दिए गए प्रश्नों के उत्तर (Textbook Question-Answers) एवं अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर (Extra Questions /Important Questions with Answers) भी दिए गए हैं। आशा है यह सामग्री आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
पाठ की भूमिका
हिंदी की प्रसिद्ध मासिक पत्रिका (Monthly Magazine) 'हंस' के संपादक (Editor) प्रेमचंद जी थे। हिंदी विधा - आत्मकथा को समृद्ध करने के लिए पत्रिका के 'आत्मकथा' नाम से एक विशेष अंक (special issue) निकालने की योजना बनाई गई।
जयशंकर प्रसाद जी के मित्रों ने उनसे आग्रह किया कि हंस पत्रिका में छपवाने के लिए वे भी अपनी आत्मकथा लिखें। परंतु प्रसाद जी इससे सहमत नहीं थे। उन्होंने आत्मकथा न लिखने के अनेक तर्क दिए जिसका परिणाम है उनकी यह कविता - 'आत्मकथ्य'।
यह कविता पहली बार 1932 में हंस के आत्मकथा के विशेष अंक में प्रकाशित हुई थी। छायावादी शैली में लिखी गई इस कविता में प्रसाद जी ने अपने जीवन की सच्चाई और अपने जीवन के दुख को अभिव्यक्त किया है। छायावादी शैली में लिखी, अपनी इस कविता में उन्होंने सुंदर शब्दों और बिंबों के माध्यम से अपनी बात कही है। उन्होंने बताया है उनके जीवन की कथा एक साधारण व्यक्ति के जीवन की कथा है। इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे महान और रोचक मानकर लोग किसी प्रकार का आनंद और प्रेरणा प्राप्त कर सकें।
वास्तव में जयशंकर प्रसाद जी का जीवन दुखों से भरा हुआ था। बहुत छोटी उम्र में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया था। 1908 में उनका विवाह हुआ परंतु क्षयरोग (Tuberculosis - T. B.) के कारण उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई। उसके बाद 1917 में उन्होंने दूसरा विवाह किया परंतु क्षयरोग के कारण उनका भी देहांत हो गया। लोगों के कहने पर उन्होंने अपनी इच्छा के विरुद्ध तीसरा विवाह किया किंतु उनके जीवन में प्रेम का अभाव रहा।
इस कविता में अनेक तर्क देते हुए कवि ने अपने जीवन की निराशा को अभिव्यक्त किया है और विनम्रतापूर्वक आत्मकथा न लिखने की विवशता को बताया है।
मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
शब्दार्थ -
मधुप - भौंरा (यहाँ - मन रूपी भौंरा)
घनी - मात्रा में बहुत अधिक
व्याख्या
आत्मकथा लिखने का प्रस्ताव मिलने पर कवि का मन अतीत की यादों में इस प्रकार घूमने लगता है जिस प्रकार भौंरा फूलों पर मँडराता है। अपने मन की ऐसी स्थिति देखकर कवि जयशंकर प्रसाद जी कहते हैं कि उनका मन रूपी भौंरा गुन - गुनाकर अर्थात् गुंजार करते हुए न जाने कौन-सी कहानी सुना रहा है। वे कहते हैं कि उनका जीवन रूपी वृक्ष कभी आशाओं और सुख रूपी पत्तियों से हरा - भरा था परंतु आज एक-एक पत्ती मुरझाकर गिर रही है अर्थात् सुख के पल एक-एक करके उनके जीवन से दूर होते जा रहे हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि यह कहना चाह रहे हैं कि उनका खुशहाल जीवन जो कभी हरी-भरी पत्तियों से भरा था अब दुख और निराशा से भर गया है।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे - यह गागर रीती।
किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले -
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
शब्दार्थ -
अनंत - अंतहीन
नीलिमा - नीला आकाश
असंख्य - अनगिनत
जीवन-इतिहास - जीवन का इतिहास, आत्मकथा
व्यंग्य - मलिन - खराब ढंग से निंदा (बुराई) करना
उपहास - मज़ाक
दुर्बलता - कमज़ोरी
गागर रीती - खाली घड़ा, सुख रहित जीवन
रस - जीवन का सुख
विडंबना - दुर्भाग्य, दुखदायक स्थिति
सरलते - सरल स्वभाव
प्रवंचना - धोखा
व्याख्या -
हिंदी साहित्य रूपी गहरे, अंतहीन (विस्तृत) आकाश में अनगिनत लेखकों के जीवन रूपी इतिहास अर्थात् आत्मकथा उपलब्ध हैं। आत्मकथा में जीवन की घटनाओं का वर्णन ईमानदारी से करना होता है। आत्मकथा लेखन की इसी विशेषता को ध्यान में रखते हुए, आत्मकथा लिखने वाले महान रचनाकार अपने जीवन की वास्तविकता (सच्चाई) को सबके सामने प्रकट कर देते हैं। परंतु लोग इन महान लेखकों की आत्मकथा को पढ़कर उनकी कमियों का बुरी तरह से मज़ाक बनाते हैं। ऐसा लगता है कि वे अपनी कमियों को सबके सामने प्रकट करके स्वयं ही अपना मज़ाक उड़ाते हैं। कवि कहना चाहते हैं कि लोग महान लेखकों की आत्मकथा को पढ़कर उनकी कमज़ोरियों और उनके संघर्षों को जानकर उनसे सहानुभूति रखने और प्रेरणा लेने के स्थान पर उनका मज़ाक बनाने में लगे रहते हैं।
कवि अपने मित्रों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि इस कड़वी सच्चाई को जानकर की समाज में हर व्यक्ति एक - दूसरे की कमज़ोरियों का मज़ाक बनाने में लगा है, फिर भी तुम कहते हो कि मैं अपने जीवन की दुर्बलताओं अर्थात् अपनी कमज़ोरियों और दोषों को लिखकर सबके सामने प्रस्तुत कर दूँ।
कवि अपने मित्रों से पूछते हैं कि क्या अभावों से भरे मेरे जीवन की बातें सुनकर तुम्हें सुख मिलेगा ? मेरा जीवन रूपी घड़ा एकदम खाली है अर्थात् मेरे जीवन में कोई आनंद नहीं है। मेरे जीवन के दुख और खालीपन को जानकर क्या तुम्हें प्रसन्नता होगी?
कवि अपने मित्रों से कहते हैं कि यदि मैं आत्मकथा लिखूँ तो ऐसा न हो कि कोई ऐसी बात सबके सामने आ जाए कि तुम्हारे ही कारण मेरे जीवन रूपी घड़े से सुख रुपी रस खाली हुआ है अर्थात् तुम ही मेरे दुखों का कारण हो। कवि को यह आशंका है कि आत्मकथा में वर्णन की गई किसी घटना से उनके मित्रों को ऐसा न लगे कि कवि अपनी आत्मकथा में उन घटनाओं का वर्णन करके अपने मित्रों की ओर संकेत करते हुए यह कहना चाहते हैं कि मेरे जीवन से सुखों को छीनकर तुमने अपने जीवन को सुखों से भर लिया है अर्थात् मेरे जीवन को दुख से भरकर तुमने अपना जीवन सुख से भर दिया है (मेरा रस ले अपनी भरने वाले)।
जीवन में मुझसे जो भूलें हुई हैं या लोगों ने जो मुझे धोखे दिए हैं, अपनी आत्मकथा में उन्हें लिखकर मैं दूसरों को बताता रहूँ। यह तो दुर्भाग्य ही होगा कि ऐसा करके मैं अपने सरल स्वभाव की हँसी स्वयं उड़वाऊँ।आत्मकथा लिखकर कवि न तो अपने स्वभाव की सरलता का मज़ाक बनाना चाहते हैं और न ही धोखा देने वाले मित्रों को उनकी असलियत बताकर उन्हें शर्मिंदा करना चाहते हैं। आत्मकथा में जीवन की घटनाओं का पूरी ईमानदारी से उल्लेख करना होता है इसलिए कवि आत्मकथा नहीं लिखना चाहते।
कवि द्वारा कविता में कही इन बातों से उनके विशाल हृदय और विनम्र स्वभाव का पता चलता है।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की।
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
शब्दार्थ -
स्वप्न - सपना
आलिंगन - बाहों में लेना
मुसक्या कर - मुस्कुराकर
व्याख्या -
कवि कहते हैं कि चाँदनी रातों में अपनी पत्नी के साथ बीते सुख के क्षण मेरे जीवन की उज्ज्वल गाथा के समान हैं अर्थात् उके लिए वे पल उनके दुख - भरे अंधकारमय जीवन में रोशनी के समान हैं। अपनी पत्नी के साथ एकांत में (समाज से अलग रह कर अकेले में ) बिताए हुए पल, उनके साथ हँसते हुए, खुशी के साथ बीता समय वे उनके अपने हैं, निजी हैं। उन्हें वे दूसरों के साथ बाँटना नहीं चाहते।
वह सुख जिसका सपना देखते हुए मैं जाग गया वह सुख मुझे मेरे जीवन में नहीं मिला। वह तो मेरी बाँहों में आते-आते मुस्कुरा कर अर्थात् धोखा देकर भाग गया। कवि अपने जीवन में अपने प्रेम को प्राप्त न कर पाने के कारण दुखी हैं। उन्होंने अपनी पत्नी के साथ सुख से भरा जीवन जीने की जो कल्पना की थी वह उनकी मृत्यु के साथ ही समाप्त हो गई। उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे भाग्य ने उनके साथ छल (धोखा) किया है।
जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक को पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?
शब्दार्थ -
अरुण-कपोल - लाल गाल
मतवाली - मस्त अर्थात् मोहित करने वाली
अनुरागिनी उषा - प्रेम भरी भोर (सुबह)
निज - अपना
सुहाग मधुमाया - सुहागिन होने के मधुर भाव से भरी हुई
स्मृति पाथेय - यादों का सहारा
पथिक - राहगीर, मुसाफ़िर
पंथा - रास्ता
सीवन - सिलाई
कंथा - गुदड़ी (यहाँ - अंतर्मन)
व्याख्या -
कवि अपनी पत्नी के रूप की सुंदरता को याद करते हुए लिखते हैं कि उनकी पत्नी के गालों की लाल सुंदर छाया से प्रभावित होकर प्रेम भरी सुबह भी अपने प्रिय के प्रेम के कारण लाल हो उठती थी। भोर के समय सूरज के उगाने के कारण आकाश में जो लाली फैल जाती थी वह उनकी पत्नी के लाल गालों की छाया के कारण ही था अर्थात् उनकी पत्नी अत्यधिक सुंदर थीं।
प्रेम के अभाव के कारण दुखी कवि के लिए अपनी पत्नी की सुखद यादें ही उनके जीवन रूपी लंबे अकेले रास्ते को पार करने का एकमात्र सहारा हैं। कवि अपनी पत्नी की सुखद स्मृतियों को किसी के साथ बाँटना नहीं चाहते हैं। इन्हीं यादों के सहारे वे अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। कवि कहते हैं कि उन्होंने अपने अंतर्मन (हृदय) रूपी गुदड़ी में, अपने जीवन की सभी अच्छी बुरी यादों को छुपा कर रखा हुआ है। वे अपने मित्रों से पूछते हैं कि उन यादों से भारी गुदड़ी की सिलाई को उधेड़कर उनके मित्र क्यों देखना चाहते हैं? कहने का अर्थ यह है कि कवि अपने मन में छिपे सभी रहस्यों को छुपाए रखना चाहते हैं।
छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।
शब्दार्थ -
मौन - चुप
भोली - सरल और साधारण
व्यथा - दुख
व्याख्या -
कवि कहते हैं कि मेरा जीवन तो बहुत छोटा-सा अर्थात् साधारण है। उससे मैं बड़ी-बड़ी कथाएँ कैसे लिखूँ अर्थात् उनकी आत्मकथा में कुछ भी खास नहीं है। न ही मैंने ऐसी कोई उपलब्धि प्राप्त की है जिसे पढ़कर लोग मेरे जीवन से प्रेरणा प्राप्त कर सकें इसलिए कवि अपने मित्रों से कहते हैं कि उनके जीवन की साधारण-सी कहानी जानकर वे क्या करेंगे उन्हें कुछ विशेष प्राप्त नहीं होगा!
कवि आत्मकथा लिखने से बचने के लिए एक अन्य तर्क देते हुए कहते हैं कि वैसे भी अभी आत्मकथा लिखने का सही समय नहीं है क्योंकि उनके मन का दुख अभी थक कर मन के ही एक कोने में शांत पड़ा है। वे अपनी आत्मकथा लिखने के लिए बीते हुए जीवन को याद करके अपने दुख को फिर से जगाना नहीं चाहते हैं कवि कहते हैं कि वे अभी अपने बारे में कुछ भी कहने की मनः स्थिति में नहीं है इसलिए अच्छा यही है कि वह चुप रहकर केवल अपने मन को शांत रखते हुए अन्य लोगों की कहानियाँ और आत्मकथाओं को सुने। भाव है कि। इस समय कवि अपने दुखद अतीत को भूलने का प्रयास भी कर रहे हैं। आत्मकथा लिखने के लिए बीते जीवन को याद करके वे फिर से दुखी नहीं होना चाहते।
इस पाठ के प्रश्न - उत्तर एवं अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर शीघ्र ही अपलोड किए जाएँगे।