जननी जन्मभूमि पर चिरकाल से ही कवि अपने शब्द - सुमन भेंट करते रहे हैं। भारतभूमि की गौरव गाथा का यशोगान कर अनेक कवियों ने राष्ट्र के लिए अपना प्रेम प्रदर्शित किया है।
यहाँ इस पोस्ट में हम ऐसे ही सुप्रसिद्ध कवि श्री सोहनलाल द्विवेदी जी द्वारा रचित कविता मातृभूमि की व्याख्या प्रस्तुत कर रहे हैं।
कवि - श्री सोहनलाल द्विवेदी
कविता का मूलभाव / प्रसंग - कविता 'मातृभूमि', कवि श्री सोहनलाल द्विवेदी द्वारा रचित देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत कविता है। कवि ने भारत भूमि को अपनी माता के समान पूजनीय मानते हुए उसके गौरव का गुणगान किया है। इस कविता के माध्यम से कवि ने भारत की समृद्ध संस्कृति का बखान किया है। साथ ही भारत के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन करते हुए कवि स्वयं को सौभाग्यशाली अनुभव करते हैं।
व्याख्या - कवि भारत-भूमि के लिए अपना प्रेम प्रदर्शित करते हुए कहते हैं कि भारत उनकी जन्मभूमि है अर्थात् उनका जन्म भारत भूमि पर हुआ है और यह भूमि उनकी माता के समान पूजनीय है।
कवि अपने देश के गौरव का बखान करते हुए कहते हैं की भारत वर्ष की उत्तर दिशा में स्थित ऊँचा, भव्य हिमालय एक प्रहरी (पहरेदार) की तरह हमारी रक्षा कर्ता है। यह उत्तर दिशा से आने वाली ठंडी हवाओं से और आक्रमणकारियों से सदैव हमारी रक्षा करता है।भारत के सम्मान की रक्षा करने के कारण इसे भारत का मुकुट कहा जाता है। ऊँचा खड़ा हिमालय का अर्थ है - 'आत्म सम्मान के साथ खड़ा भारत।' दक्षिण दिशा में हिंद महासागर, अपनी लहरों से भारत माता के चरणों को धोकर भारत भूमि के प्रति अपनी श्रद्धा को प्रकट करता है।
भारत के मैदानी इलाकों में अनेक नदियाँ प्रवाहित होती हैं। गंगा, यमुना और सरस्वती जैसी पवित्र नदियाँ यहाँ बहती हैं और इनके संगम से भारत भूमि पवित्र हो गई है। ये नदियाँ जहाँ - जहाँ से गुज़रती हैं वहाँ की भूमि को हरा - भरा करती चलती हैं। इन नदियों के पवित्र जल के कारण इनके आस - पास हरियाली बिखर गई है।अपने गुणों के कारण ये पवित्र और जीवनदायिनी नदियाँ भारत भूमि पर जल की पूर्ति तो करती ही हैं साथ ही भारत भूमि को उपजाऊ भी बनती हैं।
कवि अपनी भारत भूमि को पुण्य भूमि कहते हैं क्योंकि इस भूमि के सम्मान की रक्षा के अनेक वीरों ने, शहीदों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है। उनके बलिदान के कारण यह भूमि पुण्य भूमि बन गई है।यह धरती स्वर्ण भूमि है, जहाँ प्रचुर मात्रा में अनाज की पैदावार होती है, जो समृद्धि का प्रतीक है।
इस गौरवशाली, वीरों की भूमि, समृद्ध भूमि पर ही मेरा जन्म हुआ है और इस भूमि से उत्पन्न अन्न ने मेरा पालन - पोषण एक माँ के समान किया है।
कवि यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि हमारा देश प्राकृतिक संपदा के संदर्भ में भी धनी है। भारत में अनेक पहाड़ियाँ हैं और इन पहाड़ियों से अनेक झरने झरते हैं। ये झरने अपनी अपार जलराशि के कारण अपने आस - पास के वातावरण को सुंदर बनाते हैं। इस कारण इस वातावरण में अनेक पशु - पक्षी आनंद के साथ विचरण करते हैं।अतः यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत है और आनंद प्रदान करने वाला है।चिड़िया का चहकना उसकी प्रसन्नता का सूचक है।
प्रकृति की मनोरम छटा आमों के बागों में भी देखने को मिलती है। जब आमों के बागों में पेड़ों पर उगे आम पक जाते हैं तब कोयल की कूक, वातावरण को और अधिक सुंदर बनाती है। साथ ही मलय पवन अर्थात् सुगंधित और स्वच्छ हवा तन - मन को आनंद और शीतलता प्रदान करती है।
भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है। यहाँ अनेक धर्मों का प्रादुर्भाव (जन्म) हुआ और अलग - अलग लोगों द्वारा विभिन्न - विभिन्न धर्मों का पालन किया जाता है इसलिए मेरा भारत, धर्म भूमि भी है। भारत देश में, जहाँ धर्म को महत्त्व दिया जाता है वहीं कर्म को भी प्रधानता दी जाती है। कर्म को पूजा माना जाता है। श्री मद् भागवत गीता में श्री कृष्ण ने भी कर्म का उपदेश दिया है। ऐसा महान देश मेरा जन्म स्थान है और माता के समान पूजनीय होने के कारण भारत भूमि मेरी मातृभूमि है।
इसी धरती पर रघुकुल में जन्मे श्री राम ने अपने आचरण से संसार के समक्ष मर्यादा पुरुषोत्तम का आदर्श प्रस्तुत किया। इसी धरती पर सीता जी ने जन्म लेकर, अपने त्याग और सद् चरित्र से, नारी की शक्ति, उसकी महानता का उदाहरण प्रस्तुत किया।
यह वह पवित्र भूमि है, जहाँ श्री कृष्ण ने अपनी बाँसुरी की तान से सभी को भाव - विभोर किया और समय आने पर युद्ध के मैदान में (कुरुक्षेत्र में) अर्जुन को गीता का पवित्र उपदेश दिया अर्थात् हृदय की भावनाओं के महत्त्व के साथ - साथ जीवन में कर्म के महत्त्व का पाठ भी इस संसार को पढ़ाया।
इसी धरती पर महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ। उनके द्वारा दिए गए उपदेशों का प्रचार - प्रसार केवल भारत में ही नहीं बल्कि अनेक देशों में फैला और उन्होंने भारत देश के यश को बढ़ाया। उन्होंने सत्य और अहिंसा का सिद्धांत सारे विश्व को प्रदान किया। महात्मा बुद्ध ने अपने ज्ञान के प्रकाश से संसार को अहिंसा और दया का सही मार्ग दिखाया।
युगों - युगों से भारत भूमि पर धर्म की रक्षा के लिए, भारत माता के मान - सम्मान के लिए अनेक युद्ध लड़े जा चुके हैं इसलिए यह भूमि युद्ध भूमि है और साथ ही साथ संसार को शांति और अहिंसा का उपदेश देने वाले महात्मा बुद्ध की भूमि है। गांधी जी ने भी सत्य और अहिंसा के मार्ग को अपनाकर स्वतंत्रता - संग्राम लड़ा था।
यह धरती मेरी जन्म भूमि है, मेरी मातृभूमि है। यह मुझे माता के समान पूजनीय है। मुझे अपनी भारत भूमि पर, इसकी संस्कृति पर गर्व है।