NCERT Study Material for Class 10 Hindi Kritika Chapter 2 'Sana-Sana Hath Jodi' Important / key points which covers whole chapter / Quick revision notes, Textbook Question-Answers and Extra Questions /Important Questions with Answers
हमारे ब्लॉग में आपको NCERT पाठ्यक्रम के अंतर्गत कक्षा 10 (Course A) की हिंदी पुस्तक 'क्षितिज' और हिंदी पूरक पाठ्यपुस्तक 'कृतिका' के पाठ पर आधारित सामग्री प्राप्त होगी जो पाठ की विषय-वस्तु को समझने में आपकी सहायता करेगी। इसे समझने के उपरांत आप पाठ से संबंधित किसी भी प्रश्न का उत्तर सरलता से दे सकेंगे।
यहाँ NCERT HINDI Class 10 के पाठ - 2 'साना - साना हाथ जोड़ि' के मुख्य बिंदु (Important / Key points) दिए जा रहे हैं। साथ ही आपकी सहायता के लिए पाठ्यपुस्तक में दिए गए प्रश्नों के सटीक उत्तर (Textbook Question-Answers) एवं अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर (Extra Questions /Important Questions with Answers) सरल एवं भाषा में दिए गए हैं। आशा है यह सामग्री आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
NCERT Hindi Class 10 (Course - A) Kritika (Bhag - 2) Chapter - 2 Sana-Sana Hath Jodi'
~ 'साना - साना हाथ जोड़ि' लेखिका मधु कांकरिया द्वारा लिखा गया एक यात्रा - वृत्तांत है।
~ इस पाठ में लेखिका ने भारत के राज्य सिक्किम की राजधानी गंतोक (गैंगटॉक) और उसके आगे हिमालय की यात्रा का वर्णन किया है।
~ लेखिका ने इस पाठ का नाम 'साना - साना हाथ जोड़ी' एक नेपाली युवती की बोली हुई प्रार्थना से लिया है।
~ 'साना-साना हाथ जोड़ि' का अर्थ है - छोटे - छोटे हाथ जोड़कर प्रार्थना करती हूँ।
~ पाठ के आरंभ में लेखिका ने सिक्किम की राजधानी गैंगटॉक की रात की सुंदरता का वर्णन किया है। रात के समय गैंगटॉक शहर में जलती रोशनी को देखकर उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे आसमान उलटा पड़ा है और सारे तारे इस शहर की ज़मीन पर बिखरकर टिमटिमाती झालर के समान दिख रहे हैं। तारों से भरी रात ने उन्हें इतना सम्मोहित (आकर्षित) किया कि वह उस सुंदरता में खो सी गईं।
~ सुबह जब आसमान में सूर्य उदित होने लगा तब उनके होंठों पर अपने - आप उस प्रार्थना के बोल आ गए, जिसे उन्होंने उसी दिन सुबह एक नेपाली युवती से सीखा था - 'साना - साना हाथ जोड़ि, गर्दहु प्रार्थना। हाम्रो जीवन तिम्रो कौसेली' अर्थात् 'छोटे-छोटे हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रही हूँ कि मेरा सारा जीवन अच्छाइयों को समर्पित हो।'
~ मौसम साफ़ न होने के कारण लेखिका हिमालय की तीसरी सबसे बड़ी चोटी कंचनजंघा को अपनी बालकनी से तो नहीं देख सकी, परंतु तरह-तरह के खिले फूल देखकर उन्हें लगा कि वह किसी बाग में आ गई हैं।
~ वह उसी दिन गैंगटॉक से 149 किलोमीटर दूर यूमथांग देखने अपनी सहयात्री मणि और गाइड जितेन नार्गे के साथ रवाना हुई।
~ उनके ड्राइवर - कम - गाइड जितेन नार्गे ने उन्हें बताया कि यूमथांग यानि घाटियाँ। सारे रास्ते उन्हें हिमालय की गहरी घाटियाँ और फूलों से लदी वादियाँ मिलेंगी।
~ पाईन और धूपी के खूबसूरत नुकीले पेड़ों को देखते हुए वे लोग पहाड़ी रास्ते पर आगे बढ़ते हैं। रास्ते में उन्होंने सफ़ेद - सफ़ेद बौद्ध पताकाएँ (झंडियाँ) देखीं। लेखिका को ये पताकाएँ किसी ध्वज (झंडे) की तरह लहराती हुई, शांति और अहिंसा की प्रतीक लगी। उन पताकाओं पर मंत्र लिखे हुए थे। उनके गाइड नार्गे ने बताया कि यहाँ के लोग बौद्ध धर्म में विश्वास करते हैं। जब भी किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है, उसकी आत्मा की शांति के लिए शहर से दूर किसी भी पवित्र स्थान पर एक सौ आठ श्वेत पताकाएँ फहरा दी जाती हैं। इन्हें उतारा नहीं जाता, ये धीरे - धीरे अपने आप ही नष्ट हो जाती हैं।
किसी नए कार्य की शुरुआत में भी ऐसी रंगीन पताकाएँ लगाई जाती हैं।
~ रास्ते में थोड़ा आगे बढ़ाने पर वे लोग 'कवी-लोंग- स्टॉक नामक स्थान पर पहुँचे। गाइड जितेन नार्गे ने बताया कि यहाँ हिंदी फिल्म 'गाइड' की शूटिंग हुई थी। इसी स्थान पर तिब्बत के चीस-खे-बम्सन ने लेपचा और भुटिया, सिक्किम की इन दोनों जातियों के साथ लंबे समय से चल रहे झगड़े के बाद संधि - पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। उन्होंने स्मारक के रूप में रखे एक पत्थर को भी देखा।
~ रास्ते में लेखिका ने एक कुटिया में धर्म चक्र देखा। नार्गे ने बताया कि यह प्रेयर व्हील है। इसको घुमाने से पाप धुल जाते हैं। यह सुनकर लेखिका के मन में विचार आए कि चाहे मैदान हो या पहाड़, अनेक वैज्ञानिक प्रगतियों के बावजूद भी इस देश की आत्मा एक जैसी है अर्थात् बुद्धि के स्तर पर इतनी प्रगति करने के बाद भी लोग ऐसे अंधविश्वासों को मानते हैं। गंगा नदी को लेकर भी लोगों की यही सोच है। वे ऐसा समझते हैं कि प्रार्थना के साथ मात्र एक व्हील (चक्र) घुमा देने से या केवल गंगा नदी में स्नान कर लेने से उनके सारे बुरे कर्म अच्छे कर्मों में बदल जाएँगे।
~ ऊँचाई पर चढ़ते हुए धीरे-धीरे लेखिका को स्थानीय लोगों का दिखना बंद हो गया। बाज़ार, लोग और बस्तियाँ पीछे छूटने लगे। नीचे देखने पर घर, ताश के पत्तों जैसे छोटे-छोटे दिखने लगे। हिमालय की विशालता दिखने लगी। तब लेखिका ने हिमालय को उसके पल-पल बदलते रूप में देखा।
~ रास्ते वीरान (सुनसान), सँकरे (पतले) और घुमावदार होने लगे। गहरी खाइयाँ बादलों से भरी थीं। हरियाली के बीच कहीं-कहीं खिले फूल भी थे। हिमालय की सुंदरता ने यात्रियों को प्रभावित किया। सभी यात्री झूम-झूमकर गाने लगे - "सुहाना सफर और ये मौसम हसीं...।"
~ लेखिका एक ऋषि की तरह शांत और चुप रहकर, प्रकृति के उस भव्य रूप का आनंद ले रही थी। लेखिका ने उत्साह में जीप की खिड़की से अपना सिर निकालकर वह कभी आसमान को छूते ऊँचे पर्वतों की चोटियों को देखती तो कभी ऊपर से दूध की धार की तरह गिरते जल-प्रपातों (झरनों) को। तो कभी चाँदी की तरह चमकती सुंदर तिस्ता नदी को जो लगातार सिलीगुड़ी से उनके साथ-साथ चल रही थी।
~ प्रसन्न लेखिका ने हिमालय को सलामी देनी चाही कि तभी उनकी जीप 'सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल' के सामने आ खड़ी हुई। झरने की कल-कल और ठंडक ने लेखिका के मन की सारी दुर्भावनाओं को खत्म कर दिया। सत्य और सौंदर्य की अनुभूति से वह भावुक हो उठी।
~ आगे बढ़ने पर बादलों की लुका-छिपी के बीच हिमालय की शोभा हरे, पीले और कहीं पथरीले रूप में फिर दिखाई देने लगी। पल-पल बदलती और सुंदर होती प्रकृति के विराट रूप के आगे लेखिका को अपना अस्तित्व तिनके जैसा लगा। प्रकृति के उस सुंदरतम रूप को देखकर लेखिका ईश्वर की समीपता का अनुभव करने लगी। आत्मज्ञान होते ही एक बार फिर उसने प्रार्थना दोहराई - 'साना - साना हाथ जोड़ि... '
~ प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक (इस लोक से परे, ईश्वर के साथ के) आनंद में डूबी लेखिका को अचानक एक दृश्य ने अंदर तक झकझोर दिया। उन्होंने कुछ पहाड़ी औरतों को हथौड़े और कुदाल से पत्थर तोड़ते हुए देखा। कई औरतों ने पीठ पर बँधी डोको (बड़ी टोकरी) में अपने बच्चों को बाँध रखा था। स्वर्ग के समान सुंदर नज़ारों, नदी, फूलों, वादियों और झरनों के बीच भूख, मौत, गरीबी और ज़िंदा रहने की यह जंग देखकर लेखिका अत्यधिक भावुक हो गई। उन्होंने देखा मातृत्व और श्रम साधना को साथ-साथ देखकर लेखिका को बहुत दुख हुआ।
~ पूछने पर वहीं खड़े बी. आर. ओ. (बोर्ड रोड आर्गनाइजेशन) के एक कर्मचारी ने बताया कि ये पहाड़ी औरतें पहाड़ों के सँकरे रास्तों को कुदाल से चौड़ा बनाने का काम कर रही हैं। लेखिका ने जब उस कर्मचारी से पूछा कि बड़ा खतरनाक काम होता होगा यह? तब उसने कहा कि पिछले महीने तो एक की जान भी चली गई थी। उसने कहा कि बड़ा कठिन कार्य है पहाड़ों पर रास्ता बनाना क्योंकि पहले डाइनामाइट से चट्टानों को उड़ाया जाता है। फिर बड़े - बड़े पत्थरों को तोड़कर एक आकार के छोटे - छोटे पत्थरों में बदला जाता है, फिर बड़े - से जाले में उन्हें लंबी पट्टी की तरह बिठाकर कटे रास्तों पर एक बाड़े की तरह लगाया जाता है। ज़रा - सी भी गलती होने पर पहाड़ से गिरकर मरने का खतरा होता है।
~ पहाड़ी औरतों की के जीवन - संकट के बारे में जानकर लेखिका को रास्ते में सिक्किम सरकार द्वारा लगाया गया बोर्ड ध्यान आया, जिसपर लिखा था - 'एवर वंडर्ड हू डिफाइड डेथ टू बिल्ड दीज़ रोड्स' अर्थात् आप ताज्जुब करेंगे पर इन रास्तों को बनाने में लोगों ने मौत को झुठलाया है।
~ पहाड़ी औरतों को देखकर लेखिका को पलामू और गुमला के जंगलों की आदिवासी महिलाओं का ध्यान आया। वे भी पीठ पर बच्चे को कपड़े से बाँधकर पत्तों की तलाश में वन-वन भटकती थी। उन आदिवासी महिलाओं के फूले हुए पाँव और पत्थर तोड़ती पहाड़िनों के हाथों पर पड़े निशान दोनों ही यह स्पष्ट कर रहे थे कि आम जिंदगियों की कहानी एक-सी है अर्थात् दोनों के जीवन में आँसू, दर्द, अभाव एक समान हैं।
~ जब गाइड नार्गे ने लेखिका को दुखी देखा तब उसने कहा कि ये मेरे देश की आम जनता है। तब लेखिका ने मन में सोचा कि ये आम जनता ही नहीं, जीवन के प्रति संतुलन भी है। ये 'वेस्ट एट रिपेईंग' हैं। कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती हैं। लेखिका ने यह महसूस किया कि ये आम पहाड़ी औरतें इतनी मेहनत करके और कष्ट उठाकर पर्यटकों (यात्रियों) के लिए रास्ता बना रही हैं जिससे वे प्राकृतिक दृश्यों का आनंद ले सकें। रास्ता बन जाने से पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी और इसका असर देश की आर्थिक स्थिति पर पड़ेगा। देश प्रगति करेगा। परंतु इस जोखिम भरे काम के बदले में इन्हें बहुत ही थोड़ा मेहनताना मिलता है क्योंकि इनका बहुमूल्य योगदान किसी को भी दिखाई नहीं देता। इसलिए लेखिका ने ऐसा कहा।
~ वहाँ से जाते समय लेखिका ने देखा कि पत्थर तोड़ती वे औरतें किसी बात पर खिलखिलाकर हँस रही थीं। उन्हें हँसता देखकर सारा खंडहर ताजमहल बन गया अर्थात् उनका दुखी मन प्रसन्न हो गया।
~ थोड़ा और ऊँचाई पर चढ़ने के बाद लेखिका ने देखा कि सात-आठ साल के बच्चे स्कूल से लौट रहे थे और उनसे लिफ़्ट माँग रहे थे। जितेन नार्गे ने बताया कि यहाँ तराई में एक ही स्कूल है। दूर-दूर से बच्चे उसी स्कूल में पढ़ने जाते हैं। ये बच्चे हर रोज़ तीन - साढ़े तीन किलोमीटर की चढ़ाई चढ़कर पढ़ने के लिए स्कूल जाते हैं। शाम को अपनी माताओं के साथ जंगल से लकड़ी काटकर तथा भारी गट्ठर ढो कर लाते हैं , पानी भरते हैं और मवेशियों को चराते हैं। ये सब जानकर लेखिका को पहाड़ी जीवन की कठिनाइयों का अहसास हुआ। उन्हें लगा कि मैदानों की तुलना में पहाड़ों पर जीवन कठोर है। रास्ते और भी सँकरे होते जा रहे थे। रास्ते में कई जगह सावधानीपूर्वक चलने के निर्देश लिखे थे। वहीं उन्हें घने बालों वाले याक भी दिखे।
~ सूरज अस्त होने लगा था। लेखिका ने देखा कि कुछ पहाड़ी औरतें गायों को चराकर वापस लौट रही थीं। कुछ के सिर पर लकड़ियों के भारी गट्ठर थे। लेखिका की जीप चाय के बागानों से गुज़र रही थी तभी उन्होंने कई युवतियों को सिक्किमी परिधान बोकु पहने चाय की पत्तियाँ तोड़ते देखा। उन युवतियों की सुंदरता को देखकर लेखिका मंत्रमुग्ध हो गई।
~ यूमथांग जाते हुए लेखिका को रात लायुंग की शांत बस्ती में बितानी पड़ी। वहाँ के वातावरण की अद्भुत शांति में लेखिका के मन में ने विचार उठे कि मनुष्य ने प्रकृति की लय, ताल और गति को बिगाड़कर बहुत बड़ा अपराध किया है। हिमालय के पवित्र वातावरण में लेखिका केवल हिमालय की सुंदरता से ही प्रभावित नहीं हो रही थी बल्कि उनके मन में इस प्रकार के विचार उमड़ रहे थे इसलिए लेखिका ने यह लिखा है कि 'हिमालय मेरे लिए कविता ही नहीं, दर्शन बन गया था।'
~ अपने ही विचारों में खोई हुई लेखिका तिस्का नदी के किनारे एक पत्थर पर जाकर बैठ गई। रात के समय जितेन नार्गे ने अपने साथियों के साथ नाचना शुरू किया तो सभी यात्री गोल घेरा बनाकर नाचने लगे। लेखिका की पचास वर्ष की सहेली मणि ने ऐसा जानदार नृत्य किया कि लेखिका हैरान रह गई।
~ लायुंग के लोगों की जीविका (earning) का मुख्य साधन पहाड़ी आलू, धान की खेती और शराब का व्यापार है।
~ सी-लेवल से 1400 फीट ऊँचाई पर होने पर भी वहाँ बर्फ़ नहीं थी। लेखिका बर्फ़ देखने के लिए बेचैन थी।।
~ एक सिक्किमी नवयुवक ने बताया कि प्रदूषण के कारण स्नो-फॉल लगातार कम होता जा रहा है। अगर उन्हें बर्फ़ देखनी है तो उन्हें 'कटाओ यानी भारत का स्विट्जरलैंड' जाना चाहिए। कटाओ अभी टूरिस्ट स्पॉट नहीं बना था और यात्री उसके बारे में ज़्यादा जानते नहीं थे। इसलिए वह अपने प्राकृतिक स्वरूप में था।
~ कटाओ लायुंग से 500 फीट ऊँचाई पर था और लायुंग से लगभग दो घंटे का सफ़र था। कटाओ का पूरा रास्ता अधिक खतरनाक और धुंध से भरा था। सभी कुछ बादलों से ढक गया था। जितेन लगभग अंदाज़े से लेकिन सावधानी से गाड़ी चला रहे थे। रास्ते में चेतावनी वाले बोर्ड लगे हुए थे।
~ वहाँ पहुँचने पर ताज़ा बर्फ़ से पूरे ढके पहाड़ चाँदी से चमक रहे थे। जब नार्गे ने कटाओ को भारत का स्विट्ज़रलैंड कहा तब लेखिका की मित्र मणि ने कटाओ को स्विट्ज़रलैंड से भी अधिक ऊँचाई पर और स्विट्ज़रलैंड से भी अधिक सुंदर बताया। वहाँ चारों ओर घुटनों तक बर्फ़ बिछी थी और फिर बर्फ़बारी होने लगी अर्थात् बर्फ़ गिरने लगी ।
~ यात्री इस सुंदरता का आनंद उठाने लगे। लेखिका ने भी उस सुंदर दृश्य को अपने हृदय में समा लिया। लेखिका की इच्छा हुई कि वह भी औरों के समान बर्फ़ पर लेटे लेकिन उनके पास बर्फ़ में पहनने वाले लंबे बूट नहीं थे और कटाओ में एक भी दुकान न होने के कारण वह बूट नहीं ले सकीं। वह आध्यात्मिकता से जुड़ गई। वह विचार करने लगी कि शायद ऐसी ही सुंदरता और दिव्यता से प्रेरित होकर ऋषियों ने वेदों की रचना की होगी और जीवन के सत्यों को खोजा होगा। लेखिका का मानना था कि ऐसी पवित्र सुंदरता देखकर बड़े से बड़े अपराधी के मन में भी करुणा (दया) के कोमल भाव उत्पन्न हो सकते हैं।
~ उस पर्वतीय सौंदर्य को देखकर लेखिका की सहेली मणि के मन में भी दर्शनिकता के भाव उत्पन्न होने लगे। वह कहने लगी कि प्रकृति की जल संचय व्यवस्था कितनी अद्भुत है। वह अपने अनोखे ढंग से ही जल संचय करती हैं। यह हिमशिखर जल स्तंभ हैं पूरे एशिया के। प्रकृति सर्दियों में पहाड़ की ऊँची-ऊँची चोटियों पर बर्फ़ जमा करके जल - संग्रह कर देती हैं और गर्मी आते ही ये बर्फ़ के पहाड़ पिघल कर पानी के रूप में नदियों में मिलकर हम तक पहुँचते हैं और हमारी प्यास बुझाते हैं। मणि ने ये सब कहकर अपना शीश झुकाते हुए मानो प्रकृति को अपना आभार प्रकट किया और कहा - "जाने कितना ऋण है हम पर इन नदियों का, हिम शिखरों का।"
~ थोड़ा और आगे बढ़ने पर लेखिका को कुछ फ़ौजी छावनियाँ दिखीं। तभी उन्हें ध्यान आया कि यह बॉर्डर एरिया है। थोड़ी दूरी पर चीन की सीमा है। जब लेखिका ने एक फ़ौजी से पूछा कि " इतनी कड़कड़ाती ठंड में आप लोगों को बहुत तकलीफ़ होती होगी।" तब फ़ौजी ने हँसते हुए जवाब दिया कि "आप चैन की नींद सो सकें इसीलिए तो हम यहाँ पहरा दे रहे हैं।"
~ लेखिका सोचने को मजबूर हो गई कि जब इस कड़कड़ाती ठंड में हम थोड़ी देर भी यहाँ ठहर नहीं पा रहे हैं तो ये फ़ौजी कैसे अपनी ड्यूटी निभाते होंगे। यह सोचकर लेखिका का सिर सम्मान से झुक गया। उन्होंने फ़ौजी से 'फेरी भेटुला' अर्थात् फिर मिलेंगे कहकरकर विदा ली।
~ इसके बाद लेखिका और उनकी जीप लायुंग वापस लौटकर फिर यूमथांग की ओर चल पड़ी। यूमथांग की घाटियों में उस समय ढेरों प्रियुता और रूडोडेंड्रो के बहुत ही खूबसूरत फूल खिले थे। लेकिन बर्फ़ से ढके पहाड़ों को देखने के बाद यूमथांग वापस आकर उन लोगों को सब कुछ फिका फिका लग रहा था क्योंकि यूमथांग कटाओ जैसा सुंदर नहीं था।
~ चलते - चलते लेखिका ने चिप्स बेचती एक सिक्क्मी युवती से पूछा "क्या तुम सिक्किमी हो?" युवती ने जवाब दिया "नहीं, मैं इंडियन हूँ।" यह सुनकर लेखिका को बहुत अच्छा लगा कि सिक्किम के लोग भारत में मिलकर बहुत खुश हैं। सिक्किम पहले भारत का हिस्सा नहीं था। वह पहले स्वतंत्र रजवाड़ा था। लेकिन अब सिक्किम भारत में कुछ इस तरह से घुलमिल गया है ऐसा लगता ही नहीं कि, सिक्किम पहले भारत का हिस्सा नहीं था। तब वहाँ पर टूरिस्ट उद्योग इतना फला - फूला नहीं था। सिक्किम के लोग भारत का हिस्सा बनकर काफी खुश हैं।
~ जब वे लोग जीप में बैठने लगे तभी एक पहाड़ी कुत्ते ने रास्ता काट लिया। तब मणि ने बताया कि ये पहाड़ी कुत्ते सिर्फ चाँदनी रात में ही भौंकते हैं। यह सुनकर लेखिका हैरान थी।
~ यात्रा से लौटते समय भी जितेन नार्गे उन्हें तरह - तरह की जानकारियाँ देता रहा। उसने लेखिका को गुरु नानक के फुटप्रिंट वाला पत्थर भी दिखाया। नार्गे ने बताया कि ऐसा माना जाता है कि इस जगह पर गुरु नानकजी की थाली से थोड़े से चावल छिटक कर गिर गए थे और जिस जगह चावल छिटक कर गिर गए थे वहाँ अब चावल की खेती होती है।
~ करीब 3 - 4 किलोमीटर नार्गे ने बताया कि इस जगह को खेदुम कहते हैं। यह लगभग 1 किलोमीटर का क्षेत्र था। नार्गे ने बताया कि इस स्थान पर देवी-देवताओं का निवास है। यहाँ कोई गंदगी नहीं फैलाता है। जो भी गंदगी फैलाता है वह मर जाता है। उसने यह भी बताया कि हम पहाड़, नदी, झरने इन सब की पूजा करते हैं। हम इन्हें गंदा नहीं कर सकते। यदि गंदा करेंगे तो हम मर जाएँगे।
~ तब लेखिका ने कहा कि "तभी गैंगटॉक इतना सुंदर है"। नार्गे ने तुरंत कहा "गैंगटॉक नहीं मैडम गंतोक कहिए। इसका असली नाम गंतोक है। गंतोक का मतलब है पहाड़।"
~ नार्गे ने आगे बताया कि सिक्किम के भारत में मिलने के कई वर्षों बाद भारतीय आर्मी के एक कप्तान शेखर दत्ता ने इसे पर्यटन स्थल (टूरिस्ट स्पॉट) बनाने का निर्णय लिया। इसके बाद से ही सिक्किम में पहाड़ों को काटकर रास्ते बनाए जा रहे हैं। नए - नए पर्यटन स्थलों की खोज जारी है। लेखिका ने मन ही मन सोचा कि 'मनुष्य की इसी असमाप्त खोज का नाम ही तो सौंदर्य है।'
पाठ्यपुस्तक में दिए गए प्रश्नों के उत्तर
(Textbook Question-Answers)
प्रश्न - अभ्यास