NCERT Study Material for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 12 'Sanskriti' Important / key points which covers whole chapter / Quick revision notes, Textbook Question-Answers and Extra Questions /Important Questions with Answers
हमारे ब्लॉग में आपको NCERT पाठ्यक्रम के अंतर्गत कक्षा 10 (Course A) की हिंदी पुस्तक 'क्षितिज' के पाठ पर आधारित सामग्री प्राप्त होगी जो पाठ की विषय-वस्तु को समझने में आपकी सहायता करेगी। इसे समझने के उपरांत आप पाठ से संबंधित किसी भी प्रश्न का उत्तर सरलता से दे सकेंगे।
यहाँ NCERT HINDI Class 10 के पाठ - 12 'संस्कृति' के मुख्य बिंदु (Important / Key points) दिए जा रहे हैं। साथ ही आपकी सहायता के लिए पाठ्यपुस्तक में दिए गए प्रश्नों के सटीक उत्तर (Textbook Question-Answers) एवं अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर (Extra Questions /Important Questions with Answers) सरल एवं भाषा में दिए गए हैं। आशा है यह सामग्री आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
NCERT Hindi Class 10 (Course - A) Kshitij (Bhag - 2) Chapter - 12 Sanskriti (संस्कृति) Important / Key points -
संस्कृति
~ पाठ 'संस्कृति' बौद्ध भिक्षु 'भदंत आनंद कौसल्यायन' द्वारा लिखा गया है।
~ इस पाठ (निबंध) के माध्यम से लेखक ने सबसे अधिक उपयोग में लाए जाने वाले दो शब्दों को समझाने का प्रयास किया है जिनका अर्थ, लोग बहुत कम समझते हैं।
~ कभी-कभी दोनों को एक समझ लिया जाता है तो कभी अलग।
~ लेखक ने उदाहरणों के माध्यम से सभ्यता और संस्कृति के अंतर को स्पष्ट किया है -
लेखक आग के आविष्कर्ता के विषय में बात करते हुए व्यक्ति विशेष की योग्यता, प्रवृत्ति (स्वभाव) या प्रेरणा को उस व्यक्ति विशेष की संस्कृति मानते हैं अर्थात् जिस शक्ति के बल पर वह आविष्कार कर सका, उस शक्ति को लेखक ने संस्कृति कहा है।
इसी प्रकार लेखक सुई - धागे का भी उदाहरण देते हैं। जिस मनुष्य के दिमाग में सबसे पहले यह बात आई होगी कि लोहे के टुकड़े को घिसकर, उसके एक सिरे को छेद कर और छेद में धागा पिरोकर कपड़े के टुकड़ों को जोड़ा जा सकता है, उसकी यह सोच ही संस्कृति है। कहने का तात्पर्य (अर्थ) है कि जिस सोच के आधार पर आविष्कर्ता आविष्कार करता है, वह उसकी संस्कृति होती है। इसी खोज को आधार बनाकर उस क्षेत्र में होने वाला विकास सभ्यता कहलाता है।
~ संस्कृत व्यक्ति -
जो व्यक्ति अपनी बुद्धि और विवेक (समझ) से किसी नई चीज़ की खोज करता है, वह व्यक्ति वास्तविक रूप से संस्कृत व्यक्ति है और उसकी संतान या आने वाली पीढ़ियाँ, जिन्हें अपने पूर्वज से वह वस्तु बिना किसी प्रयास के ही प्राप्त हो गई, वह अपने पूर्वज की भांति इसका प्रयोग करके सभ्य भले ही बन जाए परंतु संस्कृत नहीं माना जा सकता।
~ न्यूटन - संस्कृति मानव -
न्यूटन ने अपनी बुद्धि और विवेक (समझ) से गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया और सारे संसार को इस विषय में सोचने और अध्ययन करने की दिशा प्रदान की इसलिए वह एक संस्कृत मानव है। न्यूटन द्वारा प्रतिपादित (बताए गए) सिद्धांतों एवं ज्ञान को उसके बाद की पीढ़ियों ने उससे प्राप्त किया। उन्होंने इस सिद्धांत से जुड़ी अनेक खोजें कीं। आज के वैज्ञानिक युग में भौतिक विज्ञान का विद्यार्थी न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण को तो अच्छी तरह समझता ही है लेकिन उसके साथ उसे इस दिशा में हुए अनेक और तथ्यों का भी ज्ञान है। ऐसा होने पर भी आज का भौतिक विज्ञान का विद्यार्थी, न्यूटन की अपेक्षा अधिक सभ्य कहा जाएगा लेकिन न्यूटन जितना संस्कृत नहीं क्योंकि उन्होंने न्यूटन के सिद्धांत से प्रेरणा प्राप्त करके उसी दिशा में ही कार्य किए, अपनी समझ से कोई और आविष्कार नहीं किया।
कहने का अर्थ यह है कि मूल विचार संस्कृति है और जिसके दिमाग में मूल विचार जन्म लेते हैं, वह व्यक्ति संस्कृत है। उस विचार का लाभ उठाने तथा उस विचार को विकसित करने वाले लोग सभ्य कहे जाएँगे।
~ लेखक के अनुसार मानव संस्कृति के मूल रूप से तीन कारण हैं -
(1) भौतिक प्रेरणा - इसका अर्थ है - संसार की बाहरी वस्तुओं की इच्छा करना या अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कोई कार्य करना। लेखक ने आग और सुई-धागे के उदाहरण द्वारा भौतिक प्रेरणा को समझाया है। जैसे - आग के आविष्कार के लिए शायद अपने पेट की भूख को शांत करने की प्रेरणा रही होगी। अपने शरीर को गर्मी और सर्दी से बचने तथा शरीर को सजाने की इच्छा, सुई - धागे के आविष्कार की प्रेरणा रही होगी।
(2) ज्ञानेप्सा अर्थात् ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा या जिज्ञासा - लेखन ने लिखा है - 'हमारी सभ्यता का एक बड़ा अंश हमें ऐसे संस्कृत आदमियों से ही मिला है, जिनकी चेतना पर स्थूल भौतिक कर्म का प्रभाव प्रधान रहा है, किंतु उसका कुछ हिस्सा हमें मनीषियों से भी मिला है जिन्होंने, तथ्य - विशेष को किसी भौतिक प्रेरणा के वशीभूत होकर नहीं, बल्कि उनके अपने अंदर की सहज संस्कृति के ही कारण प्राप्त किया है। - इस पंक्ति का अर्थ यह है कि हमें हमारी सभ्यता का एक बड़ा भाग उन संस्कृत लोगों से मिला है जिन्होंने आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आविष्कार किए, लेकिन संसार की सभी खोजें केवल भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ही नहीं की गईं। अनेक आविष्कारों के पीछे उनके तथ्यों को जानने की तीव्र इच्छा भी कारण के रूप में विद्यमान रही है। विद्वानों ने अपने अंदर की सहज संस्कृति अर्थात् अपनी सोच, नया जानने और करने की इच्छा के कारण भी अनेक आविष्कार किए और अपने ज्ञान के प्रकाश को संसार में पुरस्कार के रूप में बाँटा। कहने का अर्थ यह है कि संस्कृत व्यक्ति का दिमाग पेट भरा होने पर और तन ढँका होने पर भी निठल्ला अर्थात् खाली नहीं बैठ सकता। वह प्रकृति के हर कार्य में कारण ढूँढ़ता रहता है। उदाहरण के लिए ऐसा व्यक्ति जब खुले आकाश के नीचे सोता है और रात के जगमगते तारों को देखता है तब उसे इसलिए नींद नहीं आती क्योंकि वह मोती भरे थाल अर्थात् आसमान के तारों के रहस्य को जानना चाहता है।
(3) परोपकार की भावना - लेखक के शब्दों में - 'हमारी समझ में मानव संस्कृति की जो योग्यता आग और सुई - धागे का आविष्कार कराती है, वह भी संस्कृति है, जो योग्यता तारों की जानकारी करती है वह भी संस्कृति है और जो योग्यता किसी महामानव से सर्वस्व त्याग कराती है, वह भी संस्कृति है।' लेखक का भाव यह है कि जो योग्य व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किसी वस्तु का आविष्कार करें वह भी संस्कृत है, जो व्यक्ति अपने ज्ञान से किसी वस्तु की खोज करें वह भी संस्कृत है और जो व्यक्ति दूसरों के हित के लिए अपना सब कुछ त्याग देता है वह भी संस्कृत है। अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए लेखक ने पाठ में रोगी बच्चों को सारी रात गोद में लेकर बैठने वाली माँ का, अपनी डैस्क पर रखी डबल रोटी के सूखे टुकड़े खुद न खाकर दूसरों को खिलाने वाले रूस के क्रांतिकारी लेनिन का, संसार के मज़दूरों को सुखी देखने का सपना देखने वाले कार्ल मार्क्स का और आज से ढाई हज़ार वर्ष पहले मानवता के सुख के लिए अपना घर त्यागने वाले सिद्धार्थ का उदाहरण दिया है।
~ सभ्यता क्या है ?
लेखक ने संस्कृति के परिणाम को सभ्यता कहा है। संस्कृत मनुष्य की संस्कृति द्वारा जो आविष्कार होता है, जो चीज़ वह अपने तथा दूसरों के लिए आविष्कृत करता है, उसे ही सभ्यता कहते हैं। हमारे खाने - पीने के तरीके, हमारे ओढ़ने - पहनने के तरीके, हमारे कहीं आने - जाने के साधन, हमारी बोली, हमारे रहन-सहन के तरीके आदि सभी हमारी सभ्यता हैं।
~ पाठ में लेखक ने संस्कृति और सभ्यता के अर्थ समझाते हुए असंस्कृति और असभ्यता के विषय में भी अपने विचार प्रकट किए हैं।
~ लेखक के अनुसार मानव संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है अर्थात् उसे बाँटा नहीं जा सकता। वह मानव जाति के लिए कल्याणकारी भी है और स्थायी (हमेशा रहने वाली) भी।
पाठ्यपुस्तक में दिए गए प्रश्नों के उत्तर
(Textbook Question-Answers)
प्रश्न - अभ्यास
1. लेखक की दृष्टि में सभ्यता और संस्कृति की सही समझ अब तक क्यों नहीं बन पाई है?
उत्तर - लेखक की दृष्टि में सभ्यता और संस्कृति की सही समाज अब तक लोगों में नहीं बन पाई है क्योंकि वह इन दोनों शब्दों के सही अर्थ नहीं जान पाए हैं। लोग इन दोनों शब्दों को एक - दूसरे का पर्याय समझकर इन्हें एक - दूसरे के स्थान पर प्रयोग करते आए हैं। इन शब्दों के साथ जब भौतिक और आध्यात्मिक जैसे विशेषण लग जाते हैं तब दोनों शब्दों का अर्थ और अधिक अस्पष्ट हो जाता है।
2. आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज क्यों मानी जाती है? इस खोज के पीछे रही प्रेरणा के मुख्य स्रोत क्या रहे होंगे?
उत्तर - आग की खोज ने आदिमानव के जीवन और उसकी जीवन शैली को बहुत अधिक प्रभावित किया। पहले, मनुष्य रात होने पर कोई भी कार्य करने में असमर्थ था परंतु आग के आविष्कार ने उसे रात के अँधेरे में देख सकने और कार्य करने में समर्थ बनाया। आग के आविष्कार से मनुष्य ने अपने-आप को भयंकर सर्दी से और जंगली जानवरों से बचाया। मनुष्य ने केवल जंगली जानवरों को मार कर खाने के स्थान पर, उन्हें और अनाज को पका कर खाना सीखा। अनाज के महत्त्व को जानकर मनुष्य में उसे उगाने की प्रेरणा जागी होगी। इस प्रकार मनुष्य समय के साथ-साथ विकास करता गया इसलिए आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज मानी जाती है।
आग की खोज के पीछे रोशनी की ज़रूरत, स्वयं को ठंड से बचाने और कच्चे माँस के स्थान पर स्वादिष्ट पका हुआ भोजन खाकर पेट की ज्वाला अर्थात् भूख को शांत करने की प्रेरणा रही होगी।
3. वास्तविक अर्थों में 'संस्कृत व्यक्ति' किसे कहा जा सकता है?
उत्तर - जो व्यक्ति अपनी बुद्धि, विवेक (समझ) और योग्यता से किसी नई चीज़ की खोज करता है, वह व्यक्ति वास्तविक रूप से संस्कृत व्यक्ति है। उसकी संतान या आने वाली पीढ़ी, जिसे अपने पूर्वज से वह वस्तु बिना किसी प्रयास के ही प्राप्त हो गई, वह अपने पूर्वज की भांति इसका प्रयोग करके सभ्य भले ही बन जाए परंतु उसे संस्कृत नहीं माना जा सकता। लेखक ने पाठ में संस्कृत व्यक्ति के अनेक उदाहरण दिए हैं अपनी भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आविष्कार करने वाला व्यक्ति संस्कृत है, जैसे - आग और सुई - धागे का आविष्कर्ता। अपने ज्ञान, अपनी सोच से नई चीज़ें, नई खोजें करने वाला भी संस्कृत व्यक्ति है, जैसे - गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को खोजने वाला न्यूटन भी वास्तविक अर्थों में संस्कृत व्यक्ति है और जो व्यक्ति दूसरों के हित के लिए अपना सब कुछ त्याग देता है, उदाहरण के लिए - क्रांतिकारी लेनिन, माँ, कार्ल मार्क्स, महात्मा बुद्ध आदि महामानव भी संस्कृत व्यक्ति ही हैं।
4. न्यूटन को संस्कृत मानव कहने के पीछे कौन से तर्क दिए गए हैं? न्यूटन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों एवं ज्ञान की कई दूसरी बारीकियों को जानने वाले लोग भी न्यूटन की तरह संस्कृत नहीं कहला सकते, क्यों?
उत्तर - न्यूटन ने अपनी बुद्धि और विवेक (समझ) से गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया और सारे संसार को इस विषय में सोचने और अध्ययन करने की दिशा प्रदान की इसलिए वह एक संस्कृत मानव है। न्यूटन द्वारा प्रतिपादित (बताए गए) सिद्धांतों एवं ज्ञान को उसके बाद की पीढ़ियों ने उससे प्राप्त किया। उन्होंने इस सिद्धांत से जुड़ी अनेक खोजें कीं। आज के वैज्ञानिक युग में भौतिक विज्ञान का विद्यार्थी न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण को तो अच्छी तरह समझता ही है लेकिन उसके साथ उसे इस दिशा में हुए अनेक और तथ्यों का भी ज्ञान है। ऐसा होने पर भी आज का भौतिक विज्ञान का विद्यार्थी न्यूटन की अपेक्षा अधिक सभ्य कहा जाएगा लेकिन न्यूटन जितना संस्कृत नहीं। कहने का अर्थ यह है कि मूल विचार संस्कृति है और जो व्यक्ति अपनी समझ और अपनी योग्यता से किसी नई चीज़ की खोज करता है वह व्यक्ति संस्कृत है। गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के पीछे मूल सोच न्यूटन की थी इसलिए न्यूटन संस्कृत मानव है। उनके सिद्धांतों और ज्ञान को और गहराई से जानने वाले अन्य लोगों ने न्यूटन के विचारों से लाभ प्राप्त करके उन विचारों को विकसित किया इसलिए वे न्यूटन की तरह संस्कृत नहीं कहे जा सकते।
5. किन महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा?
उत्तर - प्राचीन काल में मनुष्य जंगलों में रहता था। अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उसने अपनी सोच और समझ के अनुसार आविष्कार किए। पहले के समय में अपने तन को ढँकने के लिए वह जानवरों की खाल और पत्तों का प्रयोग करता था। सुई - धागे का अविष्कार करके उसने सर्दियों में ठंड से और गर्मियों में धूप से अपने तन को बचाने की शुरुआत की होगी। अपने शरीर को सजाकर, अपनी सुंदरता को बढ़ाने के लिए भी सुई - धागे का आविष्कार हुआ होगा।
6. "मानव संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है।" किन्हीं दो प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जब -
(क) मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की गईं।
उत्तर - (i) जब मनुष्य सभ्य हुआ तब उसने सबसे पहले रहन-सहन, बोली आदि के आधार पर स्वयं को अलग-अलग समूह में बाँटना शुरू किया। इस प्रकार अलग-अलग देश बने। फिर उसने सामाजिक व्यवस्था को चलाने के नाम पर मनुष्य जाति को अनेक वर्णों में बाँटा जिससे समाज में ऊँच - नीच और अमीर - गरीब वर्ग बन गए।
(ii) धर्म को आधार बनाकर सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाले लोग मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ (कोशिश) करते रहे हैं।
(ख) जब मानव संस्कृति ने अपने एक होने का प्रमाण दिया।
उत्तर - (i) धरती पर समय-समय पर ऐसे अनेक महामानवों का जन्म होता रहा है जिन्होंने मानव जाति और मानव संस्कृति के कल्याण और उसकी रक्षा के लिए अपना सर्वस्व त्याग दिया है। पाठ में भी अनेक उदाहरण दिए गए हैं जैसे - कार्ल मार्क्स, महात्मा बुद्ध आदि।
(ii) संसार पर जब भी कोई विपदा (संकट) आई है तब मानव जाति एकजुट होकर उसका सामना करती है, जैसे - 2019 में कोविड के प्रकोप से बचने और उससे लड़ने के लिए अनेक देशों ने एक - दूसरे की सहायता की।
(iii) कला और संस्कृति एक - दूसरे से जुड़े हुए हैं। कोई भी कलाकार किसी भी धर्म का क्यों न हो, अपनी कला से पहचाना जाता है और वह सारी दुनिया में सम्मान पाता है। जिस प्रकार भारत में बिस्मिल्लाह खान, शाहरुख खान आदि को भारतवासियों का प्यार मिलता है उसी प्रकार लता मंगेशकर जी को सारे संसार से प्रेम और सम्मान प्राप्त होता है।
7. आशय स्पष्ट कीजिए -
मानव की जो योग्यता उससे आत्म - विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम उसे उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति?
उत्तर - आदिमानव जंगलों में रहता था और जंगली जानवरों से स्वयं की रक्षा के लिए उसने हथियारों का आविष्कार किया। आत्मरक्षा के लिए उसकी सोच और प्रयास के परिणाम के रूप में बनाए गए उसके हथियार संस्कृति कहे जाएँगे परंतु जब मानव अपने आविष्कार करने की योग्यता प्रेरणा और रुचि का उपयोग विनाश करने के लिए करता है तो वह असंस्कृति का रूप ले लेती है। संस्कृति का जब कल्याण की भावना से नाता टूट जाता है तब वह संस्कृति नहीं बल्कि असंस्कृति बन जाती है क्योंकि इसमें विकास के स्थान पर विनाश की सोच रहती है।
रचना और अभिव्यक्ति
8. लेखक ने अपने दृष्टिकोण से सभ्यता और संस्कृति की एक परिभाषा दी है। आप सभ्यता और संस्कृति के बारे में क्या सोचते हैं, लिखिए।
उत्तर - मेरे विचार से संस्कृति का अर्थ है किसी समाज के मूलभूत गुण। ये गुण समाज के लोगों के सोचने - विचारने, काम करने के ढंग में होते हैं। संस्कृति में ज्ञान, विश्वास, कला, नैतिकता, आदतें (रुचि) तथा सामाजिक व्यवस्था आदि शामिल होते हैं। समाज द्वारा निर्धारित संस्कृति अर्थात् ज्ञान, विश्वास, कला, नैतिकता, आदतों और सामाजिक व्यवस्था को आगे लेकर जाना उनका पालन करना ही सभ्यता है। हमारे खाने - पीने के तरीके, हमारा कपड़े पहनने का ढंग, हमारे यातायात के साधन, हमारी बोली, हमारे रहन-सहन के तरीके आदि सभी हमारी सभ्यता हैं। सभ्यता संस्कृति का अंग है अथवा संस्कृति का परिणाम है। संस्कृति से मनुष्य की मानसिक प्रगति का पता चलता है और सभ्यता से मनुष्य के भौतिक क्षेत्र की प्रकृति का पता चलता है।
अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर
(Extra Questions /Important Questions with Answers) -
1. स्थूल भौतिक कारण ही आविष्कारों का आधार नहीं हैं, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - मनुष्य ने अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अनेक आविष्कार किए। स्वयं को जीवित रखने और जंगली जानवरों तथा ठंड से सुरक्षित रखने के लिए उसने आग का आविष्कार किया। इसी प्रकार उसने सुई - धागे का और अनेक औज़ारों का भी आविष्कार किया। यही विकास का क्रम आज भी चल रहा है। परंतु संसार में ऐसे अनेक व्यक्ति भी हैं, जो भोजन और अपनी अन्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नहीं बल्कि अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए, अपने ज्ञान के आधार पर आविष्कार करते हैं, जैसे - न्यूटन के मन में प्रश्न उठा कि सेब पेड़ से नीचे ही क्यों गिरा? इसी प्रकार अपने ज्ञान के आधार पर भी लोगों ने आविष्कार किए। प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि-मुनियों ने परमात्मा का रहस्य जानने का प्रयास किया है। अतः केवल स्थूल भौतिक कारण ही आविष्कारों का आधार नहीं हैं।