मौखिक अभिव्यक्ति (Oral Expression) अथवा वाचन कौशल (Speaking Skill) के अंतर्गत आशु भाषण (Ashubhashan - Extempore), भाषण (Bhashan - Speech) आदि प्रतियोगिताओं के लिए विभिन्न विषय तैयार किए जाते हैं। इन्हीं में से एक विषय है -
'सठ सुधरहिं सत्संगति पाई, पारस परस कुधात सुहाई।'
आज इस ब्लॉग में हम इसी विषय को प्रस्तुत करने जा रहे हैं -
Satth sudhrhin satsangati pai...
आइए पहले इस चौपाई का शाब्दिक अर्थ समझ लेते हैं, जिस प्रकार पारस के स्पर्श से लोहा भी सोना बन जाता है, उसी प्रकार दुष्ट भी सत्संगति पाकर सुधर जाते हैं।
माननीय अध्यापिका जी एवं मेरे प्रिय साथियों! मैं आपको बताना चाहूँगा कि सत्संगति क्या है?
अच्छे स्वभाव और श्रेष्ठ गुणों वाले व्यक्तियों के साथ उठना - बैठना ही सत्संगति कहलाता है। मनुष्य स्वभाव से ही एक सामाजिक प्राणी है। वह चाहे किसी भी आयु - वर्ग का हो, बच्चा हो, व्यस्क हो या फिर वृद्ध, वह संगति की अपेक्षा रखता है। संगति का प्रभाव मनुष्य पर सबसे अधिक पड़ता है। यही कारण है कि संगति के विषय में प्राचीन और वर्तमान सभी विचारकों ने बड़ी गंभीरता के साथ चिंतन किया है। कवि कुल शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने काव्य में सत्संगति का वर्णन बड़े ही विस्तार से किया है। एक स्थान पर तो उन्होंने लिखा है-
तात स्वर्ग अपवर्ग सुख,
धरिय तुला इक अंग।
तूल न ताहि सकल मिली,
जो सुख लव सत्संग।।
सच ही है, अच्छे लोगों की संगति मनुष्य के जीवन को बदल सकने की क्षमता रखती है। सद् विचारों से मनुष्य के संस्कारों का परिष्कार हो जाता है। उसमें धैर्य, सदाचार, ज्ञान उसे श्रेष्ठ मनुष्य बनाते हैं। वहीं दूसरी ओर बुरी संगति जीते जी नर्क के समान कष्टकारी और मनुष्य के पतन का कारण सिद्ध हो सकती है।
विद्यार्थी जीवन में तो सत्संगति का विशेष महत्त्व है क्योंकि यही वह समय है जब एक अबोध बालक में अच्छे - बुरे संस्कारों का बीजारोपण होता है और वे संस्कार आजीवन उसके चरित्र का निर्माण और विकास करते हैं। बात स्वाति नक्षत्र की बूँद की हो या फूलों की, संगति, उनके मूल्य, उनके स्थान, उनके परिणाम को निर्धारित करती है। सत्संग के सान्निध्य में तो पशु - पक्षी भी राम नाम रटने लगते हैं। अच्छे लोगों का साथ हमें अच्छाई और सच्चाई की ओर ले जाता है। हमारा मार्गदर्शन करता है।अतः हमें अपने मित्रों का चयन भी इसी सज्जनता की कसौटी पर करना चाहिए।